रतलाम। प्रदेश के कई जिलों में बारिश शुरू हो गई है, इसके साथ ही अब सोयाबीन की बोवनी भी शुरू हो चुकी है. इस बार मानसून की गतिविधियां पिछले साल के मुकाबले जल्दी होने से अधिकांश किसानों ने सोयाबीन और कपास की जल्दी बोवनी कर दी थी. अब किसान अच्छी बारिश के इंतजार में हैं. लेकिन मालवा का सोना कहे जाने वाले 'सोयाबीन' की फसल की बुवाई को लेकर मालवा क्षेत्र के किसान परेशान हैं. अच्छी गुणवत्ता के सोयाबीन की कमी और लगातार घट रहे उत्पादन के कारण रतलाम में भी इस बार किसानों का रूझान मक्का की बुवाई में ज्यादा दिखाई दे रहा है.
सोयाबीन की तुलना में ज्यादा फायदे
रतलाम जिले में बहुतायत तौर पर सोयाबीन की फसल की बुवाई की जाती है, लेकिन इस बार मक्का की फसल का रकबा लगभग बराबर हो गया है. कुछ किसानों का मानना है की सोयाबीन से लगातार मुनाफा कम हो रहा है, वहीं मक्का की फसल लगाने से उन्हें अनाज के अलावा पशुओं के लिए चारा आदि की व्यवस्था हो जाती है. किसानों का कहना है की मक्का से सोयाबीन की तुलना में ज्यादा फायदा हो रहा है, इसी कारण वे मक्के की खेती की ओर रूख कर रहे हैं.
सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक प्रदेश है. जहां के मालवा क्षेत्र में सोयाबीन की फसल की बुवाई बड़े क्षेत्रफल में की जाती है. लेकिन इस साल यहां के किसानों को सोयाबीन के बीज की कमी का सामना करना पड़ रहा है. किसानों के पास सोयाबीन की बुवाई के लिए बीज ही उपलब्ध नहीं है. वहीं किसानों को प्रमाणित बीज उपलब्ध करवाने वाली सहकारी सोसायटियों और कृषि विभाग के बीज केंद्रों पर भी अब तक सोयाबीन का बीज उपलब्ध नहीं हो पाया है.
बीज की कमी एक बड़ा कारण
सोयाबीन का प्रमाणित बीज नहीं मिलने से किसान सहकारी सोसाइटियों और कृषि विभाग से संबंधित बीज केंद्रों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं. लेकिन सोयाबीन का बीज उपलब्ध नहीं होने से इस साल सोयाबीन की बुवाई का काम अधर में पड़ गया है. पूरे देश में सोयाबीन की फसल उत्पादन के लिए नंबर वन मध्य प्रदेश में इस साल किसान एक-एक बीज के लिए मोहताज है. हालांकि प्राइवेट बीज ऊंचे दामों पर मिल रहे हैं लेकिन उनकी कोई प्रमाणिकता नहीं है.
हाईब्रिड मक्का फायदेमंद
कृषि विभाग के अधिकारी जीएस मोहनिया ने बताया की लगातार दो तीन सालों से सोयाबीन का रेट घट रहा है, जो किसान के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है, ऐसे में किसान अगर हाईब्रिड मक्का की बोवनी करते हैं तो यह उनके लिए फायदेमंद होगा और इससे वे अच्छी उपज ले सकेंगे. मोहनिया के अनुसार किसान एक हेक्टेयर में मक्का का औसत 60 से 80 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. जीएस मोहनिया ने बताया की पिछले साल अतिवृष्टि की वजह से बीज की कमी बनी हुई है. हालांकि दूसरे जिलों से 64 हजार क्विंटल बीज की व्यवस्था प्राइवेट बीज कंपनियों के माध्यम से की गई है.
25 से 30 फीसदी तक कम हो सकता है उत्पादन
किसानों का रुख बदलने से इस बार प्रदेश मेंं 25 से 30 फीसदी तक प्रदेश में सोयाबीन की फसल पर कमी हो सकती है. वहीं किसान सोयाबीन को छोड़ मक्का और कपास पर जोर देने से इनकी उपज में खासा इजाफा हो सकता है. बहरहाल प्री मानसून की अच्छी बारिश के बाद किसान अपने खेतों की तैयारियों में जुटे हुए हैं. वहीं कुछ किसानों ने अपने पास उपलब्ध बीज की ही बुवाई शुरू कर दी है, जिसके बाद सोयाबीन के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध मालवा में इस साल सोयाबीन का रकबे में अच्छा खासी कमी की आशंका जताई जा रही है.