जबलपुर। पूरा देश इन दिनों कोरोना वायरस से जूझ रहा है, तो दूसरी तरफ आदिवासी क्षेत्रों में इस भयानक बीमारी का असर नहीं है. आदिवासियों का कहना है कि प्राकृतिक दवाइयां खाकर कोरोना वायरस से खुद को बचाया जा सकता है. प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में आदिवासी लोग महुआ का फल खाकर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर खुद कोरोना से सुरक्षित रखने की बात कह रहे हैं.
जबलपुर के आस-पास आदिवासी बाहुल्य गांवों में लोग सुबह से ही उठकर महुआ खाते हैं. आदिवासियों का मानना है कि महुआ खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिस वजह से आसानी से हम कोरोना से खुद को सुरक्षित रख सकते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि महुआ में औषधीय गुण होते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखते हैं. आदिवासियों का मानना है कि महुआ को दही के साथ खाने से सर्दी, जुखाम और बुखार जैसी बीमारियां नहीं होती है. जबकि यह शरीर को तरोताजा भी रखता है.
डॉक्टर ने भी महुआ को बताया इम्यूनिटी बूस्टर
जबलपुर में आयुष विभाग के संभागयुक्त डॉक्टर जीडी द्विवेदी कहते है कि महुआ का फल खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. अगर हर व्यक्ति रोजाना दस महुआ को उबालकर पीता हैं तो श्वास नली की सूजन खत्म हो जाती है. जिससे यह श्वास रोगियों के लिए यह फायदेमंद फल है. उन्होंने कहा कि महुआ में केल्सियम, फास्फोरस और वसा भरपूर मात्रा में होता है. जिससे इसके खाने से स्वास्थ संबंधी समस्याएं दूर होती है. यही वजह है कि आदिवासी इलाकों में आज ये औषधि कोरोना से लड़ने में सहायक हो रही है.
ग्रामीण सेनिटाइजर के रुप में भी कर रहे इस्तेमाल
आदिवासी परिवार न केवल महुआ खाकर खुद की इम्यूनिटी बढ़ा रहे हैं, बल्कि वे इसका इस्तेमाल अब सेनिटाइजर के रुप में भी कर रहे हैं. ग्रामीण महुआ के फलों को उबालकर उसका पानी सेनिटाइजर के रूप में उपयोग करते हैं. कहां जा सकता है कि महुआ के फल में इतने गुण होते हैं कि यह कोरोना वायरस जैसी घातक बीमारी से भी इंसान को चा सकता हैं.