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ईटीवी भारत पर देखिए इतिहास की अनोखी बिरासत, जबलपुर से 30 किलोमीटर दूर है रहस्यमय नकटिया

जबलपुर से 30 किलोमीटर दूर नकटिया गांव में एक रहस्यमयी पहाड़ मिला है. जहां हजारों साल पुराने पत्थर मिले हैं. खास बात यह है कि यह पत्थर आम पत्थरों की तरह नहीं है. बताया जा रहा है कि यहां मिले पत्थर आदिमानव काल के समय हैं. जिस पर शोध कराए जाने की मांग भी उठी है. ईटीवी भारत ने भी इस पहाड़ का जायजा लिया.

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Published : Jun 10, 2020, 1:10 PM IST

jabalpur news
रहस्यमय नकटिया

जबलपुर। शहर से 30 किलोमीटर दूर ईटीवी भारत ने इतिहास के एक ऐसे पन्ने को खोलने की कोशिश की, जिसकी जानकारी शायद ही किसी को हो. यहां के नकटिया गांव में पुराने पत्थरों का एक पहाड़ मिला है. जो अपने आप में अनोखा है. ईटीवी भारत आपको जबलपुर की इसी रहस्यमयी जगह से रूबरू करा रहा है. जबलपुर के पास जानकारी मिली थी कि पहाड़ों में अभी भी कुछ ऐसे गांव हैं, जहां पीने के लिए पानी नहीं है.

जबलपुर का रहस्यमय नकटिया

जाहिर सी बात है कि पानी की कमी पहाड़ों पर ज्यादा होती है तो हमने पहाड़ों का रुख किया. हमें इस बात का अंदाजा था कि सबसे ज्यादा ऊंचाई पर जो गांव होंगे, वहां पानी की भारी किल्लत होगी. लिहाजा हम जबलपुर की चरगंवा रोड से पहाड़ों की तरफ लगभग 30 किलोमीटर अंदर पहुंचे, लेकिन जब हम नकटिया गांव पहुंचे तो आदिवासियों के इस गांव में लोगों ने हमें कुछ और ही जानकारी दी.

लोगों ने बताया कि गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर पहाड़ पर एक ऐसी विरासत पड़ी है, जिसे स्थानीय लोगों के अलावा किसी ने नहीं देखा. पूछताछ में लोगों ने बताया यहां कुछ बहुत पुराने पत्थर हैं. काफी दूर चलने के बाद अचानक से एक पत्थर नजर आया जो सामान्य प्राकृतिक पत्थरों से अलग था.

जबलपुर से 30 किलोमीटर दूर है यह पहाड़
जबलपुर से 30 किलोमीटर दूर है यह पहाड़

एक जैसे है सारे पत्थर

यहां इतनी ऊंचाई पर भी एक समतल मैदान हैं. जिसके चारों तरफ पेड़ लगे हुए हैं, लेकिन पेड़ के नीचे का नाजारा आश्चर्यजनक है. यहां षटकोण आकार में कटे हुए पत्थरों का पूरा पहाड़ बना हुआ है. कुछ जगहों पर तो पत्थर इस तरह रखे हैं जैसे किसी ने इन्हे जमाया हो. जिसे देखकर हर कोई हैरान रह जाता है. बड़ा सवाल यह है कि पूरा पहाड़ जिसकी ऊंचाई लगभग 50 से 60 फीट है इस पर हजारों पत्थर बिखरे पड़े हैं. लंबाई में यह छोटे बड़े हैं, लेकिन इनकी बाकी बनावट एक सी है, जो अपने आप में अनोखा है.

एक साथ जमे हैं हजारो पत्थर
एक साथ जमे हैं हजारो पत्थर

आम आदमी के बस का काम नहीं लगता

जिस तरीके से यह पत्थर यहां पर रखे हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है, जैसे किसी ने इन्हें जमाया हो. एक-एक पत्थर का वजन कई टन के बराबर होगा. ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि इतने बजनी पत्थर उठाए कैसे गए होंगे, क्योंकि इनकी जमावट देखकर लगता है यह पत्थर एक-एक करके जमाया गया होगा. इन पत्थरों की लंबाई 8 से 10 फीट तक है. षटकोण आकार के कटे हुए हजारों काले पत्थर जिस तरीके से इनको उठाकर जमाया गया है. उससे देखकर यहां आदिमानव होने की कल्पना की गई है.

अनोखा है नकटिया गांव पर बना पहाड़
अनोखा है नकटिया गांव पर बना पहाड़

लोगों से अंजान है यह जगह

जिस जगह पर यह पत्थर पड़े हैं, यहां आस-पास कोई दूसरा गांव नहीं है, जबकि न यहां से कोई सड़क गुजरती है. यह पहाड़ काफी ऊंचाई पर होने के चलते यहां लोगों का आना जाना भी नहीं रहता, लेकिन स्थानीय लोग इसे अपनी विरासत कहते हैं. लोगों का कहना है कि यहां एक किला बनाया जा रहा था जिसे एक रात में बनाना था, लेकिन किला बन नहीं पाया और यह पत्थर यही छूट गए. हालांकि इसे लोगों की मनगढ़त कहानियां भी माना जा सकता है.

शोध कराए जाने की उठी मांग

इन पत्थरों का रहस्य अब तक अनसुलझा है. पत्थरों तक इतिहासकार और आम आदमी इसलिए नहीं पहुंच पाए, क्योंकि पहाड़ के नीचे आठ किलोमीटर पहले ही सड़क खत्म हो जाती है. अभी एक सड़क का निर्माण चल रहा है, जो इन पत्थरों से एक किलोमीटर दूर है. ऐसे में इन पत्थरों पर शोध कराए जाने की मांग भी उठी है.

जबलपुर। शहर से 30 किलोमीटर दूर ईटीवी भारत ने इतिहास के एक ऐसे पन्ने को खोलने की कोशिश की, जिसकी जानकारी शायद ही किसी को हो. यहां के नकटिया गांव में पुराने पत्थरों का एक पहाड़ मिला है. जो अपने आप में अनोखा है. ईटीवी भारत आपको जबलपुर की इसी रहस्यमयी जगह से रूबरू करा रहा है. जबलपुर के पास जानकारी मिली थी कि पहाड़ों में अभी भी कुछ ऐसे गांव हैं, जहां पीने के लिए पानी नहीं है.

जबलपुर का रहस्यमय नकटिया

जाहिर सी बात है कि पानी की कमी पहाड़ों पर ज्यादा होती है तो हमने पहाड़ों का रुख किया. हमें इस बात का अंदाजा था कि सबसे ज्यादा ऊंचाई पर जो गांव होंगे, वहां पानी की भारी किल्लत होगी. लिहाजा हम जबलपुर की चरगंवा रोड से पहाड़ों की तरफ लगभग 30 किलोमीटर अंदर पहुंचे, लेकिन जब हम नकटिया गांव पहुंचे तो आदिवासियों के इस गांव में लोगों ने हमें कुछ और ही जानकारी दी.

लोगों ने बताया कि गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर पहाड़ पर एक ऐसी विरासत पड़ी है, जिसे स्थानीय लोगों के अलावा किसी ने नहीं देखा. पूछताछ में लोगों ने बताया यहां कुछ बहुत पुराने पत्थर हैं. काफी दूर चलने के बाद अचानक से एक पत्थर नजर आया जो सामान्य प्राकृतिक पत्थरों से अलग था.

जबलपुर से 30 किलोमीटर दूर है यह पहाड़
जबलपुर से 30 किलोमीटर दूर है यह पहाड़

एक जैसे है सारे पत्थर

यहां इतनी ऊंचाई पर भी एक समतल मैदान हैं. जिसके चारों तरफ पेड़ लगे हुए हैं, लेकिन पेड़ के नीचे का नाजारा आश्चर्यजनक है. यहां षटकोण आकार में कटे हुए पत्थरों का पूरा पहाड़ बना हुआ है. कुछ जगहों पर तो पत्थर इस तरह रखे हैं जैसे किसी ने इन्हे जमाया हो. जिसे देखकर हर कोई हैरान रह जाता है. बड़ा सवाल यह है कि पूरा पहाड़ जिसकी ऊंचाई लगभग 50 से 60 फीट है इस पर हजारों पत्थर बिखरे पड़े हैं. लंबाई में यह छोटे बड़े हैं, लेकिन इनकी बाकी बनावट एक सी है, जो अपने आप में अनोखा है.

एक साथ जमे हैं हजारो पत्थर
एक साथ जमे हैं हजारो पत्थर

आम आदमी के बस का काम नहीं लगता

जिस तरीके से यह पत्थर यहां पर रखे हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है, जैसे किसी ने इन्हें जमाया हो. एक-एक पत्थर का वजन कई टन के बराबर होगा. ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि इतने बजनी पत्थर उठाए कैसे गए होंगे, क्योंकि इनकी जमावट देखकर लगता है यह पत्थर एक-एक करके जमाया गया होगा. इन पत्थरों की लंबाई 8 से 10 फीट तक है. षटकोण आकार के कटे हुए हजारों काले पत्थर जिस तरीके से इनको उठाकर जमाया गया है. उससे देखकर यहां आदिमानव होने की कल्पना की गई है.

अनोखा है नकटिया गांव पर बना पहाड़
अनोखा है नकटिया गांव पर बना पहाड़

लोगों से अंजान है यह जगह

जिस जगह पर यह पत्थर पड़े हैं, यहां आस-पास कोई दूसरा गांव नहीं है, जबकि न यहां से कोई सड़क गुजरती है. यह पहाड़ काफी ऊंचाई पर होने के चलते यहां लोगों का आना जाना भी नहीं रहता, लेकिन स्थानीय लोग इसे अपनी विरासत कहते हैं. लोगों का कहना है कि यहां एक किला बनाया जा रहा था जिसे एक रात में बनाना था, लेकिन किला बन नहीं पाया और यह पत्थर यही छूट गए. हालांकि इसे लोगों की मनगढ़त कहानियां भी माना जा सकता है.

शोध कराए जाने की उठी मांग

इन पत्थरों का रहस्य अब तक अनसुलझा है. पत्थरों तक इतिहासकार और आम आदमी इसलिए नहीं पहुंच पाए, क्योंकि पहाड़ के नीचे आठ किलोमीटर पहले ही सड़क खत्म हो जाती है. अभी एक सड़क का निर्माण चल रहा है, जो इन पत्थरों से एक किलोमीटर दूर है. ऐसे में इन पत्थरों पर शोध कराए जाने की मांग भी उठी है.

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