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जबलपुर: चक्की पीसकर बनी है पिसनहारी की मढ़िया, जाने क्या है कहानी... - 100 साल पहले गुरुकुल बना आजादी की अलख जगी

मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक महिला की कहानी, जिसने जैन मंदिरों के लिए 30 साल तक आटा पीसा और पूरी कमाई जैन मंदिर-मढ़िया बनवाने में लगा दी.

jabalpur pisanhari ki madiya jain temple story
जबलपुर पिसनहारी की मढ़िया जैन मंदिर की कहानी
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Published : Feb 20, 2022, 12:28 PM IST

जबलपुर। मध्यप्रदेश में जैन मंदिरों का इतिहास सदियों पुराना है. बहुत से ऐसे मंदिर हैं, जो कि देश-दुनिया में प्रसिद्ध है. मगर संस्कारधानी के पिसनहारी मढ़िया की कहानी सबसे रोचक है. कहा जाता है कि, यहाँ स्थित मंदिर 600 साल से भी ज्यादा पुराना है. यहां जैनियों का तीर्थ स्थल है, जिसकी कहानी जितनी रोचक है, उतनी भक्त और भक्ति करने वालों के लिए प्रेरणादायी भी है. जैन तीर्थंकरों को मानने वालों के अलावा जन सामान्य के लिए यह पूज्य स्थल है. यहां मौजूद जिनालयों की प्रतिमाएं बहुत ही आकर्षित करने वाली हैं.

नि:संतान महिला ने आटा पीसकर बनवाई मढ़िया

वर्णी गुरुकुल के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी जिनेश कुमार शास्त्री बताते है कि, जहां आज पिसनहारी की मढ़िया है, वहाँ कभी एक गुफा हुआ करती थी. जिसमें सिद्ध बाबा निवास करते थे. एक दिन नि:संतान महिला जो कि घरों में चक्की से आटा पीसने का काम करती थी, वही बाबा जी से आशीर्वाद लेने पहुंची थी. उसने सिद्ध बाबा से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा, तब उन्होंने कहा यहां एक मढ़िया का निर्माण कराओ भगवान तुम्हारी मनोकामना जरूरी पूरी करेंगे. उस महिला ने भक्ति पर विश्वास जताते हुए करीब 30 से 35 वर्षों तक आटा पीसकर जो कमाई की, पूरा पैसा जैन मंदिर या मढ़िया बनवाने में लगा दी. जब मढ़िया तैयार हो गई, तो उसके मन में वैराग्य जाग गया. तब उसने चक्की भी मंदिर में दान कर दी और दीक्षा लेकर स्वयं साध्वी बन गई. उसकी चक्की आज भी मुख्य द्वार पर भक्त की भक्ति को प्रदर्शित करने के लिए रखी हुई है.

100 साल पहले गुरुकुल बना, आजादी की अलख जगी

ब्रह्मचारी जिनेश कुमार शास्त्री के अनुसार दक्षिण भारत के जो भी जैन यात्री यहां से गुजरते थे, तो उनका पड़ाव पिसनहारी की मढ़िया में होता था. 100 साल पहले संत गणेश प्रसाद वर्णी महाराज ने यहां साधना करते हुए गुरुकुल की स्थापना की. जहां बच्चों को आधुनिक के साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाती है. इसी स्थान पर जैन साधु वर्णी महाराज और आचार्य बिनोवा भावे का मिलन हुआ था. इसी प्रांगण में सुभाषचंद बोस, वर्णी महाराज का देश को आजाद कराने के लिए एक मंच पर प्रेरणादायी सभा और भाषण हुआ था.

इसलिए नाम रखा गया पिसनहारी की मढ़िया

आजाद हिंद फौज को आर्थिक मदद देने के लिए वर्णी महाराज ने अपनी इकलौती खादी की चादर आजादी के दीवानों को सौंप दी. जिसे जैन समाज के सम्पन्न लोगों ने बोली लगाकर तीन हजार रुपए में खरीदा और एकत्रित हुई राशि आजाद हिंद फौज को देश आजाद कराने के लिए सौंप दी गई. चक्की चलाकर मढ़िया बनवाने वाली उस महिला के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए इस जैन तीर्थ का नाम पिसनहारी की मढ़िया रखा गया. इसका अर्थ होता है- एक ऐसी महिला जो हाथों से चक्की में आटा पीस रही है. आसपास के खूबसूरत दृश्यों से घिरे इस मंदिर में हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

जबलपुर। मध्यप्रदेश में जैन मंदिरों का इतिहास सदियों पुराना है. बहुत से ऐसे मंदिर हैं, जो कि देश-दुनिया में प्रसिद्ध है. मगर संस्कारधानी के पिसनहारी मढ़िया की कहानी सबसे रोचक है. कहा जाता है कि, यहाँ स्थित मंदिर 600 साल से भी ज्यादा पुराना है. यहां जैनियों का तीर्थ स्थल है, जिसकी कहानी जितनी रोचक है, उतनी भक्त और भक्ति करने वालों के लिए प्रेरणादायी भी है. जैन तीर्थंकरों को मानने वालों के अलावा जन सामान्य के लिए यह पूज्य स्थल है. यहां मौजूद जिनालयों की प्रतिमाएं बहुत ही आकर्षित करने वाली हैं.

नि:संतान महिला ने आटा पीसकर बनवाई मढ़िया

वर्णी गुरुकुल के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी जिनेश कुमार शास्त्री बताते है कि, जहां आज पिसनहारी की मढ़िया है, वहाँ कभी एक गुफा हुआ करती थी. जिसमें सिद्ध बाबा निवास करते थे. एक दिन नि:संतान महिला जो कि घरों में चक्की से आटा पीसने का काम करती थी, वही बाबा जी से आशीर्वाद लेने पहुंची थी. उसने सिद्ध बाबा से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा, तब उन्होंने कहा यहां एक मढ़िया का निर्माण कराओ भगवान तुम्हारी मनोकामना जरूरी पूरी करेंगे. उस महिला ने भक्ति पर विश्वास जताते हुए करीब 30 से 35 वर्षों तक आटा पीसकर जो कमाई की, पूरा पैसा जैन मंदिर या मढ़िया बनवाने में लगा दी. जब मढ़िया तैयार हो गई, तो उसके मन में वैराग्य जाग गया. तब उसने चक्की भी मंदिर में दान कर दी और दीक्षा लेकर स्वयं साध्वी बन गई. उसकी चक्की आज भी मुख्य द्वार पर भक्त की भक्ति को प्रदर्शित करने के लिए रखी हुई है.

100 साल पहले गुरुकुल बना, आजादी की अलख जगी

ब्रह्मचारी जिनेश कुमार शास्त्री के अनुसार दक्षिण भारत के जो भी जैन यात्री यहां से गुजरते थे, तो उनका पड़ाव पिसनहारी की मढ़िया में होता था. 100 साल पहले संत गणेश प्रसाद वर्णी महाराज ने यहां साधना करते हुए गुरुकुल की स्थापना की. जहां बच्चों को आधुनिक के साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाती है. इसी स्थान पर जैन साधु वर्णी महाराज और आचार्य बिनोवा भावे का मिलन हुआ था. इसी प्रांगण में सुभाषचंद बोस, वर्णी महाराज का देश को आजाद कराने के लिए एक मंच पर प्रेरणादायी सभा और भाषण हुआ था.

इसलिए नाम रखा गया पिसनहारी की मढ़िया

आजाद हिंद फौज को आर्थिक मदद देने के लिए वर्णी महाराज ने अपनी इकलौती खादी की चादर आजादी के दीवानों को सौंप दी. जिसे जैन समाज के सम्पन्न लोगों ने बोली लगाकर तीन हजार रुपए में खरीदा और एकत्रित हुई राशि आजाद हिंद फौज को देश आजाद कराने के लिए सौंप दी गई. चक्की चलाकर मढ़िया बनवाने वाली उस महिला के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए इस जैन तीर्थ का नाम पिसनहारी की मढ़िया रखा गया. इसका अर्थ होता है- एक ऐसी महिला जो हाथों से चक्की में आटा पीस रही है. आसपास के खूबसूरत दृश्यों से घिरे इस मंदिर में हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

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