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20वीं सदी के 'कबीर' का हर कोई है मुरीद, जिसने कलम की धार से हर बुराई पर किया वार

मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी का जबलपुर से गहरा नाता था. वे ऐसे व्यंगकार थे जिनके मुंह से निकले शब्द बाण की तरह कलेजे को छलनी कर जाते थे. जिनकी पहचान देश के चुनिंदा व्यंगकारों में होती है. जबलपुर में आज भी उनकी यादें देखने को मिलती है.

हरिशंकर परसाई जी
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Published : Jul 3, 2019, 2:48 PM IST

Updated : Nov 10, 2019, 11:01 PM IST

जबलपुर। लेखक का विचार जब शब्दों में आकार लेता है, तब सागर को भी गागर में भर देता है. फिर ये शब्द सदियों तक हर दिल में उस लेखक को जिंदा रखते हैं. लेखक जब शब्दों के सागर में डुबकी लगाता है तो ऐसा मोती खोजकर निकालता है, जिसे पहली नजर में देखकर ही हर कोई उसका मुरीद हो जाता है. ऐसे ही व्यंगकार थे हरिशंकर परसाई, जिनके मुंह से निकले शब्द बाण की तरह कलेजे को छलनी कर जाते थे. जिनकी पहचान देश के चुनिंदा व्यंगकारों में होती है. जो चार दशक बाद भी उतने ही प्रासंगिक हैं.

हरिशंकर परसाई जी का जबलपुर से था गहरा नाता

अपनी वाकपट्टुता और व्यंग से आलोचकों को खामोश कर देने वाले हरिशंकर परसाई का जबलपुर से गहरा नाता है. जबलपुर के राइट टाऊन में बने जिस किराये के मकान में हरिशंकर परसाई रहते थे. गुजरे वक्त के साथ इस घर से उनकी यादें भी मिटती गयीं, लेकिन परसाई जी वो शख्स थे, जिनकी यादें किसी चारदीवारी में कैद नहीं हो सकती थी, उनकी लेखन शैली और चुटीले अंदाज का हर कोई कायल है. यही वजह है कि चार दशक बाद भी जबलपुर की शान के तौर पर जाने जाते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार जयंत वर्मा बताते है कि हरिशंकर परसाई की लेखनी कबीर के जैसी थी. जो बड़ी से बड़ी बात एक लाइन या एक वाक्य में व्यंग के तौर पर कह जाते थे. हरिशंकर परसाई एक सरल और सहज व्यक्तित्व थे, उनका स्वाभाव मजाकिया था. ठाठ-बाट तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था. उनकी इस खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह के पसंदीदा लोगों में से एक परसाई जी ने कभी अपनी पहचान का फायदा नहीं उठाया. हरिशंकर जी की लेखनी में इतनी दूरदर्शिता थी कि उनकी तब की लिखी बातें आज भी सच नजर आती हैं.

हरिशंकर परसाई जी के व्यंगों को पढ़कर लोग उनकी तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाते. उन्हें व्यंग का ऐसा योद्धा माना जाता है, जिसने अपनी कलम से धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र के हर उस मुद्दे पर वार किया, जिसने मानवता के खिलाफ विद्रोह किया. जिसके चलते आज भी लोग उनकी इस कला के कायल हैं.

जबलपुर। लेखक का विचार जब शब्दों में आकार लेता है, तब सागर को भी गागर में भर देता है. फिर ये शब्द सदियों तक हर दिल में उस लेखक को जिंदा रखते हैं. लेखक जब शब्दों के सागर में डुबकी लगाता है तो ऐसा मोती खोजकर निकालता है, जिसे पहली नजर में देखकर ही हर कोई उसका मुरीद हो जाता है. ऐसे ही व्यंगकार थे हरिशंकर परसाई, जिनके मुंह से निकले शब्द बाण की तरह कलेजे को छलनी कर जाते थे. जिनकी पहचान देश के चुनिंदा व्यंगकारों में होती है. जो चार दशक बाद भी उतने ही प्रासंगिक हैं.

हरिशंकर परसाई जी का जबलपुर से था गहरा नाता

अपनी वाकपट्टुता और व्यंग से आलोचकों को खामोश कर देने वाले हरिशंकर परसाई का जबलपुर से गहरा नाता है. जबलपुर के राइट टाऊन में बने जिस किराये के मकान में हरिशंकर परसाई रहते थे. गुजरे वक्त के साथ इस घर से उनकी यादें भी मिटती गयीं, लेकिन परसाई जी वो शख्स थे, जिनकी यादें किसी चारदीवारी में कैद नहीं हो सकती थी, उनकी लेखन शैली और चुटीले अंदाज का हर कोई कायल है. यही वजह है कि चार दशक बाद भी जबलपुर की शान के तौर पर जाने जाते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार जयंत वर्मा बताते है कि हरिशंकर परसाई की लेखनी कबीर के जैसी थी. जो बड़ी से बड़ी बात एक लाइन या एक वाक्य में व्यंग के तौर पर कह जाते थे. हरिशंकर परसाई एक सरल और सहज व्यक्तित्व थे, उनका स्वाभाव मजाकिया था. ठाठ-बाट तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था. उनकी इस खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह के पसंदीदा लोगों में से एक परसाई जी ने कभी अपनी पहचान का फायदा नहीं उठाया. हरिशंकर जी की लेखनी में इतनी दूरदर्शिता थी कि उनकी तब की लिखी बातें आज भी सच नजर आती हैं.

हरिशंकर परसाई जी के व्यंगों को पढ़कर लोग उनकी तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाते. उन्हें व्यंग का ऐसा योद्धा माना जाता है, जिसने अपनी कलम से धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र के हर उस मुद्दे पर वार किया, जिसने मानवता के खिलाफ विद्रोह किया. जिसके चलते आज भी लोग उनकी इस कला के कायल हैं.

Intro:हरिशंकर परसाई की कर्मभूमि था जबलपुर इसी शहर में लिखा परसाई ने अपना पूरा साहित्य व्यंग्य के जरिए गंभीर मुद्दों को उठाने की शुरुआत हुई थी जबलपुर से


Body:जबलपुर सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में व्यंग के जरिए गंभीर मुद्दों पर चर्चा का दौर इन दिनों हावी है इस विधा का जन्म जबलपुर में हुआ था और इस विधा के पहले लेखक थे हरिशंकर परसाई उनकी रचनाओं पर आधारित कई नाटक आपने देखे होंगे परसाई आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने आज से लगभग 40 साल पहले हुआ करते थे

शिक्षक से बने पत्रकार
हरिशंकर परसाई का जन्म भले ही जबलपुर में ना हुआ हो लेकिन उनकी पूरी कर्मभूमि जबलपुर ही रहा हरिशंकर परसाई ने नागपुर से हिंदी में एमए किया कुछ दिनों वन विभाग की नौकरी की लेकिन लेखक का मन वन विभाग में नहीं लगा इसके बाद परसाई जबलपुर चले आए और पूरे जीवन जबलपुर में ही रहे जबलपुर के मॉडल हाई स्कूल में कुछ दिनों तक बच्चों को पढ़ाया पर सरकारी नौकरी में उनका मन नहीं लगता था उसके बाद प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक की नौकरी की पढ़ने पढ़ाने तक तो ठीक था लेकिन मन ही मन व्यवस्था समाज धर्म और लोगों के अंदर के खोखले पन की वजह से परसाई शिक्षा दे नहीं पा रहे थे लिहाजा जाओ ने तय किया अपने मन के भावों के लिए परसाई ने जबलपुर से वसुधा नाम की एक मासिक पत्रिका मैं लिखना शुरू इसके अलावा नई दुनिया में सुनो भाई साधो के नाम से उनका कॉलम मैं लिखने लगे इसके अलावा देशबंधु अखबार में भी उनका एक कॉलम आता था इसमें परसाई जी लोगों के सवालों का जवाब दिया करते थे लेकिन तरीका वही होता था व्यंग हरिशंकर परसाई ने कई कहानियां भी लिखी निबंध लिखें हालांकि सब में उनकी विधा व्यंग्य की ही रही परसाई का पूरा साहित्य दिल्ली के राजकमल प्रकाशन ने 6 खंडों में प्रकाशित किया

सरल सहज और मजाकिया व्यक्तित्व थे हरिशंकर परसाई

हरिशंकर परसाई एक सरल और सहज व्यक्तित्व थे उनका स्वाभाव मजाकिया था उन्हें ठाट बाट पसंद नहीं था ऐसा नहीं था कि वे पैसे ना कमा सकते हो उन्हें जानने वाले कहते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह उनके बड़े प्रशंसक थे और जबलपुर में आने वाला हर कलेक्टर एक बार परसाई से मिलने जरूर जाता था लेकिन हरिशंकर परसाई ने अपनी ऊंची पहुंच का कभी गलत फायदा नहीं उठाया और पूरा जीवन सादगी से रहे परसाई जी जबलपुर में नेपियर टाउन इलाके में एक किराए की घर में रहते थे परसाई जी ने शादी नहीं करवाई थी वे अपनी बहन के परिवार के साथ रहा करते थे साइकिल या साइकिल रिक्शा उनके आने जाने के साधन थे

हरिशंकर परसाई पर हुआ था हमला

एक बार हरिशंकर परसाई ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता गुरु गोलवलकर के ऊपर टिप्पणी कर दी थी जबलपुर में उन दिनों भी आर एस एस के चाहने वाले बहुत थे अपने गुरु पर टिप्पणी लोगों को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने परसाई पर हमला ही बोल दिया और इतना मारा की परसाई जी का पांव टूट गया लेकिन ऐसा नहीं है कि हमले से परसाई डर गए हो और उन्होंने लिखना बंद कर दिया हो बल्कि इसके बाद उन्होंने जो लिखा उसमें उन्हें और प्रसिद्धि मिली परसाई पर हुए हमले का पूरे देश भर में विरोध हुआ था व्यंगकार ने इसके तुरंत बाद विकलांग श्रद्धा का दौर नाम से एक पुस्तक लिखी जिसकी वजह से हरिशंकर परसाई को साहित्य अकैडमी सम्मान भी मिला

व्यंग के जरिए गंभीर मुद्दे उठाएं

समसामयिक लिखना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन यदि आपकी लेखनी 40 साल बाद भी पढ़ी जाए और ऐसा लगे कि मानो आज ही के संदर्भों में लिखा जा रहा है तो इस लेखन को हम कालजई कह सकते हैं इसी वजह से हरिशंकर परसाई देश के महान लेखकों में गिने गए हरिशंकर परसाई के व्यंग्य में हमें एक बहुआयामी प्रतिभा नजर आती है वह बेहतरीन पत्रकार से जो मौके की नजाकत समझते थे और किस समय क्या लिखना चाहिए यह जानते थे बहुत अच्छे दार्शनिक थे समाज के निचले तबके से लेकर समाज के शिखर पर बैठे लोगों के मन में क्या चल रहा है उसको अपने व्यंग के जरिए लिख सकते थे परसाई ने धार्मिक और राजनीतिक मामलों पर भी खूब लिखा

उनके कुछ कोटेशन ऐसे हैं जो कभी पुराने नहीं हुए

अर्थशास्त्र जब धर्मशास्त्र के ऊपर बैठ जाता है तब गौरक्षा आंदोलन के नेता जूतों की दुकान खोल लेते हैं

जो पानी छानकर पीते हैं आदमी का खून बिना छाने पी जाते है

बेज्जती में अगर दूसरों की भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है

जिन्हें पसीना सिर्फ गर्मी और भय से आता है वे श्रम के पसीने से बहुत डरते हैं

हरिशंकर परसाई का साहित्य निठल्ले की डायरी विकलांग श्रद्धा का दौर रानी नागफनी की कहानी पगडंडियों का जमाना वैष्णव की फिसलन तुलसीदास चंदन घिसे अपनी अपनी बीमारी इन नामों से बाजार में उपलब्ध है इसके अलावा कुछ ऐसी पुस्तकें भी हैं जिनमें उनका पूरा साहित्य समेटा हुआ है लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में लोगों के पास इस साहित्य को पढ़ने की फुर्सत कम है

मीडिया के लिए प्रासंगिक व्यक्तित्व
आज का दौर हंसी मजाक और व्यंग्य के जरिए गंभीर बातें कहने का दौर है सोशल मीडिया पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर और आज के जो लेखक हैं मैं कुछ इसी तरीके से बातें रख रहे हैं व्यंग और हंसी मजाक के जरिए गंभीर बातों को कहने की इस कला का जन्म जबलपुर में हुआ और हम पूरी जिम्मेदारी से यह कह सकते हैं की इस विधा के जन्मदाता हरिशंकर परसाई थे







Conclusion:जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार जयंत वर्मा उन दिनों जबलपुर के एक अखबार में काम किया करते थे जब हरिशंकर परसाई देश के बड़े साहित्यकार बन गए थे जयंत वर्मा बताते हैं की परसाई जी गजब का व्यक्तित्व थे

byte जयंत वर्मा वरिष्ठ पत्रकार जबलपुर
Last Updated : Nov 10, 2019, 11:01 PM IST
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