जबलपुर। लेखक का विचार जब शब्दों में आकार लेता है, तब सागर को भी गागर में भर देता है. फिर ये शब्द सदियों तक हर दिल में उस लेखक को जिंदा रखते हैं. लेखक जब शब्दों के सागर में डुबकी लगाता है तो ऐसा मोती खोजकर निकालता है, जिसे पहली नजर में देखकर ही हर कोई उसका मुरीद हो जाता है. ऐसे ही व्यंगकार थे हरिशंकर परसाई, जिनके मुंह से निकले शब्द बाण की तरह कलेजे को छलनी कर जाते थे. जिनकी पहचान देश के चुनिंदा व्यंगकारों में होती है. जो चार दशक बाद भी उतने ही प्रासंगिक हैं.
अपनी वाकपट्टुता और व्यंग से आलोचकों को खामोश कर देने वाले हरिशंकर परसाई का जबलपुर से गहरा नाता है. जबलपुर के राइट टाऊन में बने जिस किराये के मकान में हरिशंकर परसाई रहते थे. गुजरे वक्त के साथ इस घर से उनकी यादें भी मिटती गयीं, लेकिन परसाई जी वो शख्स थे, जिनकी यादें किसी चारदीवारी में कैद नहीं हो सकती थी, उनकी लेखन शैली और चुटीले अंदाज का हर कोई कायल है. यही वजह है कि चार दशक बाद भी जबलपुर की शान के तौर पर जाने जाते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार जयंत वर्मा बताते है कि हरिशंकर परसाई की लेखनी कबीर के जैसी थी. जो बड़ी से बड़ी बात एक लाइन या एक वाक्य में व्यंग के तौर पर कह जाते थे. हरिशंकर परसाई एक सरल और सहज व्यक्तित्व थे, उनका स्वाभाव मजाकिया था. ठाठ-बाट तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था. उनकी इस खासियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह के पसंदीदा लोगों में से एक परसाई जी ने कभी अपनी पहचान का फायदा नहीं उठाया. हरिशंकर जी की लेखनी में इतनी दूरदर्शिता थी कि उनकी तब की लिखी बातें आज भी सच नजर आती हैं.
हरिशंकर परसाई जी के व्यंगों को पढ़कर लोग उनकी तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाते. उन्हें व्यंग का ऐसा योद्धा माना जाता है, जिसने अपनी कलम से धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र के हर उस मुद्दे पर वार किया, जिसने मानवता के खिलाफ विद्रोह किया. जिसके चलते आज भी लोग उनकी इस कला के कायल हैं.