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विवाहित बेटी को है अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार, चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने रद्द किया पिछला आदेश

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस पी के कौरव की युगलपीठ ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि विवाहित बेटी को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार है.

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एमपी हाईकोर्ट का अहम फैसला
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Published : Apr 15, 2022, 10:24 PM IST

जबलपुर। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस पी के कौरव की युगलपीठ ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि विवाहित बेटी को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार है. इस बारे में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के दौरान उसपर फैसला सुनाते हुए बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त कर दिया है.

शहडोल निवासी दीपिका सिंह की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि उसके पिता एसईसीएल में सीनियर मैकेनिक के रूप में पदस्थ थे. सेवाकाल के दौरान 19 जुलाई 2020 को उनकी मौत हो गयी थी. पिता की मौत के बाद मां ने बेटी को अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया. जिसके जवाब में एसईसीएल की ओर से अनुकंपा नियुक्ति के स्थान पर नगद मुआवजा लेने की बात गई. उसके बाद मां ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए पुनः पत्राचार किया और प्रबंधन को बताया कि बेटी विवाहित है. इस पर बेटी के विवाहित होने के कारण अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को निरस्त कर दिया. जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी.

याचिका की सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने मृतक कर्मचारी की पत्नी को प्रतिमाह आर्थिक राशि दिये जाने के निर्णय को सही ठहराया था. जिसके बाद पीड़ित ने एकलपीठ के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी. जहां सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली डबल बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त करते हुए विवाहित बेटी को भी अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार दिए जाने का फैसला सुनाया.

जबलपुर। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस पी के कौरव की युगलपीठ ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि विवाहित बेटी को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार है. इस बारे में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के दौरान उसपर फैसला सुनाते हुए बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त कर दिया है.

शहडोल निवासी दीपिका सिंह की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि उसके पिता एसईसीएल में सीनियर मैकेनिक के रूप में पदस्थ थे. सेवाकाल के दौरान 19 जुलाई 2020 को उनकी मौत हो गयी थी. पिता की मौत के बाद मां ने बेटी को अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया. जिसके जवाब में एसईसीएल की ओर से अनुकंपा नियुक्ति के स्थान पर नगद मुआवजा लेने की बात गई. उसके बाद मां ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए पुनः पत्राचार किया और प्रबंधन को बताया कि बेटी विवाहित है. इस पर बेटी के विवाहित होने के कारण अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को निरस्त कर दिया. जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी.

याचिका की सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने मृतक कर्मचारी की पत्नी को प्रतिमाह आर्थिक राशि दिये जाने के निर्णय को सही ठहराया था. जिसके बाद पीड़ित ने एकलपीठ के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की थी. जहां सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली डबल बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त करते हुए विवाहित बेटी को भी अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार दिए जाने का फैसला सुनाया.

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