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MP High Court: 24 घंटे में उपलब्ध कराएं 453 नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता का डिजिटल डाटा, अन्यथा सभी कॉलेजों को बंद करने का आदेश हो सकता है पारित

हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने 24 घंटे के अंदर प्रदेश के 453 नर्सिंग कॉलेज की मान्यता और फैक्लटी के संबंध में पूरा डिजिटल डाटा याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराने के निर्देश जारी किए हैं. हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि, डाटा उपलब्ध नहीं कराने पर न्यायालय सभी नर्सिंग कॉलेजों को बंद करने के आदेश पारित कर सकता है. याचिका पर अगली सुनवाई 22 जुलाई को निर्धारित की गई है.

MP High Court jabalpur
हाईकोर्ट जबलपुर
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Published : Jul 20, 2022, 10:07 PM IST

जबलपुर। बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि अभी तक उन्हें डिजिटल डाटा उपलब्ध नहीं करवाया गया है. सरकार की तरफ से बताया गया कि, एग्जाम सहित अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज होने के कारण याचिका को पासवर्ड नहीं दिया गया है. सुनवाई के दौरान नर्सिंग कॉलेज एसोसिएशन की तरफ से इंटरविनर बनने का आवेदन पेश करते हुए याचिकाकर्ता का डाटा उपलब्ध नहीं करवाने का अनुरोध किया गया. युगलपीठ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को पासवर्ड देने नहीं कहा गया है. उन्हे सिर्फ डाटा उपलब्ध करवाने को कहा गया है. डाटा उपलब्ध नहीं करवाने पर न्यायालय सभी नर्सिंग कॉलेजों को बंद करने के निर्देष जारी कर सकती है.

यह था मामला: लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि, शैक्षणिक सत्र 2000-21 में प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में 55 नर्सिंग कॉलेज को मान्यता दी गई थी. मप्र नर्सिंग रजिस्ट्रेशन कौंसिल ने निरीक्षण के बाद इन कॉलजों की मान्यता दी थी. वास्तविकता में ये कॉलेज सिर्फ कागज में संचालित हो रहे हैं. ऐसा कोई कॉलेज नहीं है जो निर्धारिण मापदण्ड पूरा करता है. अधिकांश कॉलेज की निर्धारित स्थल में बिल्डिंग तक नहीं है. कुछ कॉलेज सिर्फ चार-पांच कमरों में संचालित हो रहे हैं. ऐसे कॉलेज में प्रयोगशाला सहित अन्य आवश्यक संरचना नहीं है. बिना छात्रावास ही कॉलेज का संचालन किया जा रहा है. नर्सिंग कॉलेज को फर्जी तरीके से मान्यता दिए जाने के आरोप में मप्र नर्सिंग रजिस्ट्रेशन कौंसिल के रजिस्टार को पद से हटा दिया गया था. फर्जी नर्सिंग कॉलेज संचालित होने के संबंध में उन्होंने शिकायत की थी. शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होने के कारण उक्त याचिका दायर की गई है.

दस्तावेज निरिक्षण की अनुमति: याचिका के साथ कॉलेज की सूची व फोटो प्रस्तुत किए गए थे. याचिका में कहा गया था कि जब कॉलेज ही नहीं हैं तो छात्रों को कैसे पढ़ाया जाता होगा. याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने ऐसे कॉलेजों को अनावेदक बनाने याचिकाकर्ता को निर्देश दिए थे. हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रदेश के 453 नर्सिंग कॉलेज के मान्यता संबंधित ओरिजनल दस्तावेज पेश किए गए थे. युगलपीठ ने याचिकाकर्ता को दस्तावेज के निरिक्षण की अनुमति प्रदान की थी.

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डिजिटल डाटा उपलब्ध कराने का निर्देश: पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से युगलपीठ को बताया गया कि कॉलेज के कितने पेज के दस्तावेज है, इसका उल्लेख किया जाता है. हाईकोर्ट में पेश किए गए 453 नर्सिंग कॉलेज के दस्तावेजों में 37759 पेज गायब है. 80 कॉलेज ऐसे हैं, जिसमें एक व्यक्ति उसी समय में कई स्थानों में काम किया है. दस कॉलेज में एक ही व्यक्ति एक समय में प्राचार्य था. उन कॉलेजों के बीच की दूरी सैकडों किलोमीटर है. टीचिंग स्टॉफ भी एक समय में पांच-पांच कॉलेज में एक ही समय में सेवा दे रहा था. पिछली सुनवाई के दौरान न्यायालय ने याचिकाकर्ता को डिजिटल डाटा उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए थे. एसोसिएशन के 100 कॉलेजों की तरफ से इंटरविनर बनने का आवेदन पेश किया गया है. उनके अधिवक्ता डाटा उपलब्ध करवा दें. डाटा उपलब्ध करवाने की बजाय संस्थानों का पक्ष रखा जा रहा है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता आलोक बागरेचा,सरकार की तरफ से उप महाधिवक्ता स्वापनिल गांगुली हुए. इंटरविनर बनने के लिए अधिवक्ता सिध्दार्थ राधेलाल गुप्ता ने आवेदन दायर किया.

जबलपुर। बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि अभी तक उन्हें डिजिटल डाटा उपलब्ध नहीं करवाया गया है. सरकार की तरफ से बताया गया कि, एग्जाम सहित अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज होने के कारण याचिका को पासवर्ड नहीं दिया गया है. सुनवाई के दौरान नर्सिंग कॉलेज एसोसिएशन की तरफ से इंटरविनर बनने का आवेदन पेश करते हुए याचिकाकर्ता का डाटा उपलब्ध नहीं करवाने का अनुरोध किया गया. युगलपीठ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को पासवर्ड देने नहीं कहा गया है. उन्हे सिर्फ डाटा उपलब्ध करवाने को कहा गया है. डाटा उपलब्ध नहीं करवाने पर न्यायालय सभी नर्सिंग कॉलेजों को बंद करने के निर्देष जारी कर सकती है.

यह था मामला: लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि, शैक्षणिक सत्र 2000-21 में प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में 55 नर्सिंग कॉलेज को मान्यता दी गई थी. मप्र नर्सिंग रजिस्ट्रेशन कौंसिल ने निरीक्षण के बाद इन कॉलजों की मान्यता दी थी. वास्तविकता में ये कॉलेज सिर्फ कागज में संचालित हो रहे हैं. ऐसा कोई कॉलेज नहीं है जो निर्धारिण मापदण्ड पूरा करता है. अधिकांश कॉलेज की निर्धारित स्थल में बिल्डिंग तक नहीं है. कुछ कॉलेज सिर्फ चार-पांच कमरों में संचालित हो रहे हैं. ऐसे कॉलेज में प्रयोगशाला सहित अन्य आवश्यक संरचना नहीं है. बिना छात्रावास ही कॉलेज का संचालन किया जा रहा है. नर्सिंग कॉलेज को फर्जी तरीके से मान्यता दिए जाने के आरोप में मप्र नर्सिंग रजिस्ट्रेशन कौंसिल के रजिस्टार को पद से हटा दिया गया था. फर्जी नर्सिंग कॉलेज संचालित होने के संबंध में उन्होंने शिकायत की थी. शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होने के कारण उक्त याचिका दायर की गई है.

दस्तावेज निरिक्षण की अनुमति: याचिका के साथ कॉलेज की सूची व फोटो प्रस्तुत किए गए थे. याचिका में कहा गया था कि जब कॉलेज ही नहीं हैं तो छात्रों को कैसे पढ़ाया जाता होगा. याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने ऐसे कॉलेजों को अनावेदक बनाने याचिकाकर्ता को निर्देश दिए थे. हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रदेश के 453 नर्सिंग कॉलेज के मान्यता संबंधित ओरिजनल दस्तावेज पेश किए गए थे. युगलपीठ ने याचिकाकर्ता को दस्तावेज के निरिक्षण की अनुमति प्रदान की थी.

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डिजिटल डाटा उपलब्ध कराने का निर्देश: पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से युगलपीठ को बताया गया कि कॉलेज के कितने पेज के दस्तावेज है, इसका उल्लेख किया जाता है. हाईकोर्ट में पेश किए गए 453 नर्सिंग कॉलेज के दस्तावेजों में 37759 पेज गायब है. 80 कॉलेज ऐसे हैं, जिसमें एक व्यक्ति उसी समय में कई स्थानों में काम किया है. दस कॉलेज में एक ही व्यक्ति एक समय में प्राचार्य था. उन कॉलेजों के बीच की दूरी सैकडों किलोमीटर है. टीचिंग स्टॉफ भी एक समय में पांच-पांच कॉलेज में एक ही समय में सेवा दे रहा था. पिछली सुनवाई के दौरान न्यायालय ने याचिकाकर्ता को डिजिटल डाटा उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए थे. एसोसिएशन के 100 कॉलेजों की तरफ से इंटरविनर बनने का आवेदन पेश किया गया है. उनके अधिवक्ता डाटा उपलब्ध करवा दें. डाटा उपलब्ध करवाने की बजाय संस्थानों का पक्ष रखा जा रहा है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता आलोक बागरेचा,सरकार की तरफ से उप महाधिवक्ता स्वापनिल गांगुली हुए. इंटरविनर बनने के लिए अधिवक्ता सिध्दार्थ राधेलाल गुप्ता ने आवेदन दायर किया.

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