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इस अनहोनी से मिला भगवान गणेश को एक नया नाम, बुधवार को करें विघ्नहर्ता की आराधना - lord ganesh puja wednesday

व्रत से शरीर की शुद्धि होती है और स्वाध्याय से मन की शुद्धि होती है. भारतीय सनातन संस्कृति में सबसे ज्यादा महत्व गणेश जी का है. इसलिए सबसे पहले उनको ही पूजा जाता है. बुधवार और चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है. चतुर्थी तिथि प्रत्येक मास में दो बार आती है, जिसमें गणपति की पूजा की जाती है. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी (Sankashti chaturthi 2022) कहा जाता है, और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi 2022) कहते हैं.

wednesday lord ganesh puja
बुधवार गणेश पूजा
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Published : Apr 20, 2022, 7:35 AM IST

Updated : Apr 20, 2022, 6:39 PM IST

ईटीवी भारत डेस्क: भगवान गणेश की प्रसन्नता के लिए बुधवार और चतुर्थी का व्रत करने का विधान है. बुधवार और चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है. पहले से किसी संकट की स्थिति बनी हो या किसी संकट के आने की उम्मीद हो इसके लिए बुधवार और गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए. व्रत से शरीर की शुद्धि होती है और स्वाध्याय से मन की शुद्धि होती है. संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत हर महीने में कृष्ण चतुर्थी को किया जाता है. इसमें चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी ली जाती है. यदि 2 दिन का चंद्रोदय व्यापिनी हो तो प्रथम दिन का व्रत करना चाहिए. इसमें व्रति को सुबह उठकर स्नान ध्यान कर दाहिने हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत और फूल लेकर संकल्प करना चाहिए.इस मंत्र को बोलें- मम् वर्तमान आगमिक सकल संकट निरसन पूर्ण सकल अद्विय सिद्धये संकट चतुर्थी व्रतं अहं करिष्ये.

मंत्र के साथ व्रत का संकल्प लेकर दिन भर उसे मौन रहना चाहिए. इसके बाद शाम को एक बार फिर से स्नान ध्यान कर चौकी या बेदी पर गणेश जी की स्थापना करनी चाहिए. इसके बाद गणेश जी के 16 नामों के द्वारा षोडशोपचार कर,उनका पूजन करना चाहिए. कपूर या घी की बत्ती जला कर उनकी आरती करनी चाहिए.इसके बाद मंत्र पुष्पांजलि करनी चाहिए.मंत्र- यज्ञेन यज्ञं अयजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथामानि आसन् तेह नांक महिमानः सचन्तयत्र पूर्वे साध्याः संति देवा:इस मंत्र के बाद सुपारी अक्षत जो भी सामग्री हो उसे भगवान को चढ़ा कर वहां उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद का वितरण करना चाहिए. इसके बाद चंद्रोदय होने पर चंद्रमा का भी गंध, अक्षत, फूल से विधिवत पूजन कर, चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए.

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चंद्रमा का पूजन: इस विषय में ब्रह्मांड पुराण में लिखा है कि पार्वती जी ने गणेश जी को प्रकट किया था. उस समय चंद्र, इंद्र सभी देवताओं ने आकर गणेश जी दर्शन किया, लेकिन शनिदेव इससे दूर ही रहे. इसका कारण यह है कि उनकी दृष्टि जिनके ऊपर पड़ती है, उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता है, वह काला हो जाता है. लेकिन पार्वती जी के उलाहना और ताना मारने से शनि ने बालक को देखने का निर्णय लिया. शनिदेव ने जैसे ही अपनी दृष्टि गणेश जी पर डाली गणेश जी का मस्तक उड़कर अमृतमय चंद्र मंडल में चला गया. माना जाता है कि चंद्रमा में उनका मुख आज भी पड़ा हुआ है, इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन और पूजन किया जाता है. Vinayak Chaturthi 2022

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दूसरी कथा के अनुसार पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से गणेश जी को उत्पन्न किया. वह नहाने चली गईं तो शिवजी आए. गणेश जी ने शिवजी को अंदर जाने नहीं दिया. तब शिव जी ने त्रिशूल से गणेश जी की गर्दन काट दी. त्रिशूल से गर्दन कटने के बाद गणेश जी का मस्तक चंद्रलोक में चला गया. इधर पार्वती जी की प्रसन्नता के लिए शिवजी ने हाथी के बच्चे का मुख गणेश जी को लगा दिया. ऐसा मानना है कि गणेश जी का मस्तक चंद्रमा में है. इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन किया जाता है. यह व्रत 4 या 13 वर्ष का है. इसके बाद विधि-विधान से उद्यापन करना चाहिए. Sankashti chaturthi 2022.

एकदन्त (Ekdanta) नाम : पंडित आशुतोष दामले बताते है कि पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में थे. इस गुफा के द्वार का भगवान शिव ने रखवाली के लिए बाल गणेश को खड़ा किया. इस दौरान भगवान परशुराम को द्वार पर रोक लिया. इसके बाद दोनों देवताओं में युद्ध हो गया. युद्ध में भगवान परशुराम ने बाल गणेश पर अपने हथियार परशु (फरसा) से वार कर दिया इसमें बाल गणेश का एक दांत टूट गया. इसके बाद से गणपति का एक और नाम एकदन्त प्रचलित हो गया.

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ईटीवी भारत डेस्क: भगवान गणेश की प्रसन्नता के लिए बुधवार और चतुर्थी का व्रत करने का विधान है. बुधवार और चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है. पहले से किसी संकट की स्थिति बनी हो या किसी संकट के आने की उम्मीद हो इसके लिए बुधवार और गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए. व्रत से शरीर की शुद्धि होती है और स्वाध्याय से मन की शुद्धि होती है. संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत हर महीने में कृष्ण चतुर्थी को किया जाता है. इसमें चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी ली जाती है. यदि 2 दिन का चंद्रोदय व्यापिनी हो तो प्रथम दिन का व्रत करना चाहिए. इसमें व्रति को सुबह उठकर स्नान ध्यान कर दाहिने हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत और फूल लेकर संकल्प करना चाहिए.इस मंत्र को बोलें- मम् वर्तमान आगमिक सकल संकट निरसन पूर्ण सकल अद्विय सिद्धये संकट चतुर्थी व्रतं अहं करिष्ये.

मंत्र के साथ व्रत का संकल्प लेकर दिन भर उसे मौन रहना चाहिए. इसके बाद शाम को एक बार फिर से स्नान ध्यान कर चौकी या बेदी पर गणेश जी की स्थापना करनी चाहिए. इसके बाद गणेश जी के 16 नामों के द्वारा षोडशोपचार कर,उनका पूजन करना चाहिए. कपूर या घी की बत्ती जला कर उनकी आरती करनी चाहिए.इसके बाद मंत्र पुष्पांजलि करनी चाहिए.मंत्र- यज्ञेन यज्ञं अयजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथामानि आसन् तेह नांक महिमानः सचन्तयत्र पूर्वे साध्याः संति देवा:इस मंत्र के बाद सुपारी अक्षत जो भी सामग्री हो उसे भगवान को चढ़ा कर वहां उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद का वितरण करना चाहिए. इसके बाद चंद्रोदय होने पर चंद्रमा का भी गंध, अक्षत, फूल से विधिवत पूजन कर, चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए.

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चंद्रमा का पूजन: इस विषय में ब्रह्मांड पुराण में लिखा है कि पार्वती जी ने गणेश जी को प्रकट किया था. उस समय चंद्र, इंद्र सभी देवताओं ने आकर गणेश जी दर्शन किया, लेकिन शनिदेव इससे दूर ही रहे. इसका कारण यह है कि उनकी दृष्टि जिनके ऊपर पड़ती है, उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता है, वह काला हो जाता है. लेकिन पार्वती जी के उलाहना और ताना मारने से शनि ने बालक को देखने का निर्णय लिया. शनिदेव ने जैसे ही अपनी दृष्टि गणेश जी पर डाली गणेश जी का मस्तक उड़कर अमृतमय चंद्र मंडल में चला गया. माना जाता है कि चंद्रमा में उनका मुख आज भी पड़ा हुआ है, इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन और पूजन किया जाता है. Vinayak Chaturthi 2022

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दूसरी कथा के अनुसार पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से गणेश जी को उत्पन्न किया. वह नहाने चली गईं तो शिवजी आए. गणेश जी ने शिवजी को अंदर जाने नहीं दिया. तब शिव जी ने त्रिशूल से गणेश जी की गर्दन काट दी. त्रिशूल से गर्दन कटने के बाद गणेश जी का मस्तक चंद्रलोक में चला गया. इधर पार्वती जी की प्रसन्नता के लिए शिवजी ने हाथी के बच्चे का मुख गणेश जी को लगा दिया. ऐसा मानना है कि गणेश जी का मस्तक चंद्रमा में है. इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन किया जाता है. यह व्रत 4 या 13 वर्ष का है. इसके बाद विधि-विधान से उद्यापन करना चाहिए. Sankashti chaturthi 2022.

एकदन्त (Ekdanta) नाम : पंडित आशुतोष दामले बताते है कि पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में थे. इस गुफा के द्वार का भगवान शिव ने रखवाली के लिए बाल गणेश को खड़ा किया. इस दौरान भगवान परशुराम को द्वार पर रोक लिया. इसके बाद दोनों देवताओं में युद्ध हो गया. युद्ध में भगवान परशुराम ने बाल गणेश पर अपने हथियार परशु (फरसा) से वार कर दिया इसमें बाल गणेश का एक दांत टूट गया. इसके बाद से गणपति का एक और नाम एकदन्त प्रचलित हो गया.

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Last Updated : Apr 20, 2022, 6:39 PM IST
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