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युवाओं के पास नहीं है रोजगार, पढ़े-लिखे युवा भी मजदूरी करने को विवश - इंदौर

प्रदेश में लगातार बढ़ती बेरोजगारी के कारण दिहाड़ी मजदूरों के पीठे पर अब पढ़े-लिखे युवा भी मजदूरी के लिए आ रहे हैं. इन पढ़े-लिखे मजदूरों में एमए और बीई क्वालिफाई लोग भी शामिल हैं.

मजदूरी करने को विवश पढ़े-लिखे युवा
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Published : May 2, 2019, 11:18 AM IST

इंदौर। मध्यप्रदेश में बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है. इसके कारण पढ़े-लिखे बेरोजगार रोजगार की तलाश में भटकते रहते हैं. प्रदेश की औद्योगिक राजधानी में आलम यह है कि अब पढ़े-लिखे युवा मजदूरी कर रहे हैं. वे प्रतिदिन 300 से 350 रुपए की मजदूरी पाने के लिए यहां सुबह से दोपहर तक पीठे पर खड़े होते हैं, इस पर भी बहुत मुश्किल से उन्हें रोजगार मिल पाता है. पेट की आग बुझाने के लिए अब पढ़े-लिखे युवाओं को मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

प्रदेश में लगातार बढ़ती बेरोजगारी के कारण दिहाड़ी मजदूरों के पीठे पर पढ़े-लिखे शिक्षित बेरोजगार मजदूरों की संख्या बीते 5 सालों में तेजी से बढ़ी है. इंदौर के खजराना स्थित मजदूर चौक पर आने वाले कुल मजदूरों में से प्रतिदिन 30 फीसदी मजदूरों को मजदूरी भी नहीं मिलती. इन मजदूरों में अशिक्षित मजदूरों के अलावा एमएससी और बीई डिग्री धारी भी काम की तलाश में आते हैं. यहां आने पर भी उन्हें यह पता नहीं होता कि उन्हें 300 रुपए रोजाना के हिसाब से भी कोई मजदूरी के लिए ले जाएगा या नहीं.

मजदूरी करने को विवश पढ़े-लिखे युवा

यहां प्रतिदिन की मजदूरी 300 से 350 रुपए निर्धारित है, जबकि महिला मजदूरों को दिनभर काम करने के बदले 200 से 250 रुपए ही मिलते हैं. सबसे खराब स्थिति उन मजदूरों की है, जो आसपास के ग्रामीण इलाकों से पलायन कर के यहां काम की तलाश में आए हैं, लेकिन यहां भी अधिकांश सिविल वर्क और बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट नोटबंदी के बाद से बंद होने के कारण इन मजदूरों को भी मजदूरी नहीं मिल पा रही है. वहीं सरकारी स्तर पर अधिकांश मजदूरों का श्रमिक पंजीयन होने के बाद भी अब तक इन्हें कोई लाभ नहीं मिला है.

इंदौर। मध्यप्रदेश में बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है. इसके कारण पढ़े-लिखे बेरोजगार रोजगार की तलाश में भटकते रहते हैं. प्रदेश की औद्योगिक राजधानी में आलम यह है कि अब पढ़े-लिखे युवा मजदूरी कर रहे हैं. वे प्रतिदिन 300 से 350 रुपए की मजदूरी पाने के लिए यहां सुबह से दोपहर तक पीठे पर खड़े होते हैं, इस पर भी बहुत मुश्किल से उन्हें रोजगार मिल पाता है. पेट की आग बुझाने के लिए अब पढ़े-लिखे युवाओं को मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

प्रदेश में लगातार बढ़ती बेरोजगारी के कारण दिहाड़ी मजदूरों के पीठे पर पढ़े-लिखे शिक्षित बेरोजगार मजदूरों की संख्या बीते 5 सालों में तेजी से बढ़ी है. इंदौर के खजराना स्थित मजदूर चौक पर आने वाले कुल मजदूरों में से प्रतिदिन 30 फीसदी मजदूरों को मजदूरी भी नहीं मिलती. इन मजदूरों में अशिक्षित मजदूरों के अलावा एमएससी और बीई डिग्री धारी भी काम की तलाश में आते हैं. यहां आने पर भी उन्हें यह पता नहीं होता कि उन्हें 300 रुपए रोजाना के हिसाब से भी कोई मजदूरी के लिए ले जाएगा या नहीं.

मजदूरी करने को विवश पढ़े-लिखे युवा

यहां प्रतिदिन की मजदूरी 300 से 350 रुपए निर्धारित है, जबकि महिला मजदूरों को दिनभर काम करने के बदले 200 से 250 रुपए ही मिलते हैं. सबसे खराब स्थिति उन मजदूरों की है, जो आसपास के ग्रामीण इलाकों से पलायन कर के यहां काम की तलाश में आए हैं, लेकिन यहां भी अधिकांश सिविल वर्क और बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट नोटबंदी के बाद से बंद होने के कारण इन मजदूरों को भी मजदूरी नहीं मिल पा रही है. वहीं सरकारी स्तर पर अधिकांश मजदूरों का श्रमिक पंजीयन होने के बाद भी अब तक इन्हें कोई लाभ नहीं मिला है.

Intro:प्रदेश में आपको यदि कहीं बेरोजगारी की वास्तविक दशा देखना हो तो दिहाड़ी मजदूरों के पीठे सबसे मुफीद जगह है प्रदेश की औद्योगिक राजधानी में आलम यह है की जो मजदूर प्रतिदिन 300 से साढे तीन सौ रुपए की मजदूरी पाने के लिए यहां सुबह से दोपहर तक पीठे पर खड़े होते हैं उन्हें कोई भी रोजगार देने को तैयार नहीं है लिहाजा पेट पालने के लिए यह पढ़े लिखे बेरोजगार अब मजदूरी कर रहे हैं


Body:प्रदेश में लगातार बढ़ती बेरोजगारी के कारण बिहारी मजदूरों के पीठे पर पढ़े लिखे शिक्षित बेरोजगार मजदूरों की संख्या बीते 5 सालों में तेजी से बढ़ी है फिलहाल इंदौर के खजराना स्थित मजदूर चौक की बात की जाए तो यहां आने वाले कुल मजदूरों में से प्रतिदिन 30 फ़ीसदी मजदूरों को मजदूरी भी नहीं मिलती इन मजदूरों में अशिक्षित मजदूरों के अलावा एम एस सी और बी ई डिग्री धारी मजदूर भी यहां काम की तलाश में आते हैं यहां आने पर भी उन्हें यह पता नहीं होता कि उन्हें ₹300 दिन के हिसाब से भी कोई मजदूरी के लिए ले जाएगा या नहीं फिलहाल यहां प्रतिदिन की मजदूरी 300 से 3:30 सौ निर्धारित है जबकि महिला मजदूरों को दिन भर काम करने के बदले 200 से ढाई सौ रुपए ही मिलते हैं सबसे खराब स्थिति उन मजदूरों की है जो आसपास के ग्रामीण इलाकों से पलायन कर के यहां काम की तलाश में आए हैं लेकिन यहां भी अधिकांश सिविल वर्क और बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट नोटबंदी के बाद से बंद होने के कारण इन मजदूरों को भी मजदूरी से संबंधित काम नहीं मिल पा रहा है इधर सरकारी स्तर पर यदि मजदूरों को मदद के पहलू पर गौर किया जाए तो इनमें से अधिकांश का श्रमिक पंजीयन तो है लेकिन उससे अब तक इन्हें कोई लाभ नहीं मिला है लिहाजा इस बेबसी को ही अपनी किस्मत मान चुके मजदूर यहां रोज काम की तलाश में इस उम्मीद में आते हैं कि उन्हें कोई ना कोई मजदूरी कराने जरूर ले जाएगा


Conclusion:बाइट चंद्रभान होलकर मजदूर
बाइट संजय बैरागी मजदूर
बाइट गंगाराम बामणिया मजदूर
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