इंदौर। आने वाले विधानसभा उपचुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपनी तैयारियां कर रहे हैं, लेकिन इस चुनाव में अधिक से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कराने के लिए बीजेपी ने अपनी पुरानी रणनीति को अपनाया है. चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी अपने शक्ति केंद्रों को वापस से सक्रिय कर रही है, किसी समय चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी हर विधानसभा में इन शक्ति केंद्रों को बनाया करती थी. बाद में ये शक्ति केंद्र बूथ टीम के रूप में परिवर्तित हो गए, लेकिन एक बार फिर से चुनाव के पहले इन शक्ति केंद्रों को प्रमुख रूप से विधानसभा क्षेत्र में तैनात किया गया है.
RSS के पैटर्न पर होती है बीजेपी कार्यकर्ताओं की तैनाती
चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी की रणनीति को काफी प्रभावी माना जाता है. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि बीजेपी RSS के पैटर्न पर अपने कार्यकर्ताओं की तैनाती करती है. एक बार फिर से बीजेपी ने संघ की तर्ज पर ही अपने निचले स्तर तक के कार्यकर्ता से संपर्क करने के लिए शक्ति केंद्र की स्थापना की है. ये शक्ति केंद्र हर विधानसभा के छोटे से छोटे इलाके तक बनाए जा रहे हैं. किसी भी कार्यक्रम और चुनाव की रणनीति की सूचना पहुंचाने के लिए इन शक्ति केंद्रों को भी माध्यम बनाया गया है.
मतदाता से संपर्क करने का सबसे सरल माध्यम हैं शक्ति केंद्र-
मतदाताओं से सीधे संपर्क करने के लिए बीजेपी के पास सबसे सरल माध्यम ये शक्ति केंद्र ही हैं. किसी समय इन शक्ति केंद्रों में संघ कार्यकर्ताओं को भी रखा जाता था, ताकि आसानी से हर बूथ के, हर मतदाता से संपर्क किया जा सके, लेकिन इस बार इन शक्ति केंद्रों में सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ताओं की तैनाती की जा रही है. हालांकि पूरी चुनाव रणनीति पर RSS की नजर भी बनी हुई है. यही कारण है कि जो पैटर्न किसी समय बीजेपी को गांव-गांव तक पहुंचाने में मदद करता था, उसे एक बार फिर से लागू किया गया है.
शक्ति केंद्र के कारण ही तुलसी सिलावट हारे हैं विधानसभा चुनाव
इन शक्ति केंद्र का असर विधानसभा में इतना होता था कि हर मतदाता सीधे पार्टी की गतिविधियों से जुड़ जाता था. यही कारण है कि इंदौर के वर्तमान जिला अध्यक्ष राजेश सोनकर ने 2013 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मंत्री तुलसी सिलावट को चुनाव हराया था. अब एक बार फिर मंत्री तुलसी सिलावट इसी विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं और राजेश सोनकर चुनाव जिताने की मुख्य भूमिका में हैं. इसके लिए इन्हीं शक्ति केंद्रों को वापस से सक्रिय किया गया है.
शक्ति केंद्र बदल कर बनाई गई थी बूथ टोली
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रयोग कर इन शक्ति केंद्रों को बूथ टोली में परिवर्तित कर दिया था और बूथ पर काम करने वाले लोगों की टीम तैयार की थी. हालांकि शक्ति केंद्रों को खत्म करने का असर ये भी हुआ कि प्रदेश में बीजेपी सत्ता से हाथ गवा बैठी. अब एक बार फिर सत्ता के लिए जी जान से जुटी बीजेपी ने आने वाले उपचुनाव में शक्ति केंद्रों को ही चुनाव प्रचार का प्रमुख माध्यम बनाया है.