इंदौर। अरबों रुपए खर्च कर जहां मोदी सरकार जापान और चाइना से बुलेट ट्रेन खरीदने जा रही है वहीं देश के वैज्ञानिकों ने भारत में ही 600 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली मेट्रों ट्रेन की कार्यप्रणाली विकसित कर ली है. यही नहीं, मैग्नेटिक एनर्जी से चलने वाली देश की यह पहली ट्रेन इंदौर के परमाणु प्रौद्योगिकी केंद्र में तैयार कर प्रायोगिक तौर पर चलाई भी जा रही है.
वैज्ञानिक आरएस शिंदे ने कठोर परिश्रम और सूझबूझ के साथ दुनिया की सबसे तेज, सुरक्षित और कम खर्च में इस ट्रेन को तैयार की है. वैज्ञानिकों की मानें तो भविष्य में जमीनी सतह के ऊपर चलने वाली यह दुनिया की पहली प्रदूषण और ध्वनि रहित सुरक्षित ट्रेन साबित होगी. राधा रमन्ना प्रगत परमाणु प्रौद्योगिकी केंद्र में मैग्नेटिक पटरी पर चलती यह छोटी सी बोगी भविष्य के सबसे आधुनिक और तेज रेल यातायात की कार्यप्रणाली का आगाज है.
शिंदे ने अपनी 50 वैज्ञानिकों की टीम के साथ दिन-रात मेहनत कर एक ऐसी ट्रेन का मॉडल तैयार कर लिया है, जिसमें मैग्नेटिक फील्ड पर जमीनी सतह के ऊपर यानी हवा में चलती नजर आ रही है. साथ ही यह ट्रेन जापान की बुलेट ट्रेन की तुलना में 50 फीसदी सस्ती है. वैज्ञानिकों की मानें तो मजबूत मैग्नेटिक क्षेत्र जमीन के तल से जुड़ा होने के कारण दुर्घटना की भी कोई गुंजाइश नहीं है. मैग्नेटिक ट्रेन को जल्दी कंट्रोल भी किया जा सकता है.
लिक्विड नाइट्रोजन गैस से चलेगी ट्रेन
आज परमाणु प्रौद्योगिकी केंद्र में आयोजित विज्ञान प्रदर्शनी के अवसर पर ट्रेन की कार्यप्रणाली आम जनता की जानकारी के लिए सार्वजनिक की गई. ट्रेन की सबसे बड़ी खूबी भी है कि इस ट्रेन में पेट्रोल डीजल या बिजली नहीं लगती बल्कि इसकी कार्यप्रणाली लिक्विड नाइट्रोजन गैस पर आधारित है. जिसमें न्यूनतम 116 डिग्री ठंडा कर मैग्नेटिक फील्ड तैयार किया जाता है. जिसके बाद इसे गति में तब्दील कर दिया जाता है.
वैज्ञानिकों की मानें तो जापान और चाइना के पास भी यह टेक्नोलॉजी नहीं है. फिलहाल अमेरिका भी इस टेक्नोलॉजी के प्रयोग से काफी दूर है. इसकी सफलता के बाद भारत रेल प्रणाली को विकसित करने के काफी करीब है. यही वजह है कि अब यह प्रणाली विकसित करने वाले इंदौर के वैज्ञानिकों को अब जापान सहित अन्य देशों से इस कार्य के लिए बुलाया जा रहा है.
इस सिद्धांत पर करती है काम
परमाणु ऊर्जा से तैयार होने वाले सुपरकंडक्टर को न्यूनतम 166 डिग्री ठंडा करने पर इसमें मैग्नेटिक फील्ड जनरेट किए जाता है. इसके बाद उसके प्रतिरोधक का उपयोग करते हुए रेल की पूरी यूनिट को मूवमेंट दिया जाता है. क्योंकि मैग्नेटिक फील्ड तैयार होने से क्षेत्र तैयार होने के कारण पटरी के तौर पर लगाई गई चुंबक से यह जमीनी सतह से करीब 2 इंच तक ऊपर उठी रहती है और इसी ऊंचाई पर यह दौड़ती भी नजर आती है.