इंदौर। राजधानी भोपाल के बाद मिनी मुंबई के नाम से मशहूर सूबे की आर्थिक राजधानी इंदौर को सत्ता का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है क्योंकि मालवा अंचल के मोहरे सियासी शतरंज की चाल बदलने का माद्दा रखते हैं. यहां की सियासी कमान जिस पार्टी के हाथ होती है, मालवा-निमाड़ में उसी पार्टी की सियासी पकड़ मजबूत मानी जाती है. मालवांचल का सियासी केंद्र माने जाने वाले इंदौर संसदीय क्षेत्र को प्रदेश में बीजेपी का अभेद्य किला माना जाता है, बीजेपी यहां चार दशक से लगातार जीत दर्ज करती आ रही है, इस बार पार्टी ने यहां शंकर लालवानी को मैदान में उतारा है, जिनके सामने कांग्रेस ने पंकज संघवी को उतारा है.
आजादी के बाद शुरुआती दौर में इस सीट पर कांग्रेस की मजबूत पकड़ मानी जाती थी, लेकिन बदलते वक्त के साथ धीरे-धीरे इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व खत्म होता गया और बीजेपी मजबूत होती चली गई. जो अब बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ बन चुका है. अब तक हुए 16 आम चुनावों में आठ बार बीजेपी को जीत मिली है तो 6 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि एक-एक बार कम्युनिष्ट पार्टी और लोकदल के प्रत्याशी को भी जीत मिल चुकी है. 1989 में बीजेपी की सुमित्रा महाजन ने पूर्व सीएम प्रकाशचंद्र सेठी को हराकर बीजेपी की जीत का जो सिलसिला शुरु किया था, वो अब तक जारी है. ताई के नाम से मशहूर सुमित्रा महाजन इस सीट से लगातार आठ बार जीत चुकी हैं.
इस बार यहां कुल 23 लाख 17 हजार 335 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, जिनमें 11 लाख 91 हजार 646 पुरुष मतदाता तो 11 लाख 25 हजार 491 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि थर्ड जेंडर की संख्या 180 है. इंदौर में इस बार कुल 2881 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें 562 संवेदनशील और 142 अतिसंवेदनशील हैं.
इंदौर संसदीय क्षेत्र में इंदौर-1, इंदौर-2, इंदौर-3, इंदौर-4, इंदौर-5, देपालपुर, राऊ और सांवेर विधानसभा सीटें आती हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में इन सीटों में चार पर बीजेपी और चार पर कांग्रेस को जीत मिली थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में सुमित्रा महाजन ने प्रदेश की सभी 29 सीटों में सबसे बड़ी जीत हासिल की थी. उन्होंने कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल को 4 लाख 66 हजार 901 वोटों के अंतर से हराया था. जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो यहां मराठी, ब्राह्मण और सिंधी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. जिससे दोनों ही पार्टियां इन वर्गों को साधने में जुटी हैं.
भले ही इंदौर लोकसभा सीट बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ है, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इंदौर में शानदार प्रदर्शन किया है. इसलिए इस बार इस सीट पर मुकाबला कांटे का होने की उम्मीद है. बीजेपी ने ताई की बजाय शंकर लालवानी पर भरोसा जताया है, बीजेपी का पूरा संगठन यहां जोर अजामाइश कर रहा है तो कांग्रेस के तीन-तीन मंत्री कार्यकर्ताओं की फौज के साथ मैदान में हैं. अब वोटरों के ऊपर है कि वो शंकर को महादेव बनाते हैं, या पंकज को लोकतंत्र के मंदिर में पहुंचाते हैं.