ग्वालियर: पेयजल की आपूर्ति के लिए व्यवस्थित मैनेजमेंट ग्वालियर में आज तक नहीं हो सका है. रियासत कालीन व्यवस्था पर ही आज भी शहर की पेयजल आपूर्ति का बड़ा हिस्सा निर्भर है. खास बात यह है कि ग्वालियर नगर निगम के पीएचई विभाग को ना तो पानी की सप्लाई के अनुरूप राजस्व प्राप्त होता है और ना ही नगर निगम का पीएचई विभाग हरेक इलाके में पानी पहुंचा सका है. इसके अलावा बिजली के मीटर की तरह पानी के मीटर लगाने की योजना अब बंद हो चुकी हैं.
दरअसल, ग्वालियर शहर को उस समय की 36 हजार की आबादी के लिहाज से सीवर और पानी की लाइन से जोड़ा गया था. लेकिन कालांतर में शहर की आबादी अब 15 लाख तक पहुंच चुकी है लेकिन पेयजल की आपूर्ति के लिए सिस्टम आज तक नहीं बन सका है. इतनी बड़ी आबादी को पानी पिलाने वाला एकमात्र लाइफ लाइन कहा जाने वाला तिघरा बांध है, जिससे से आधे से ज्यादा शहर को पानी की आपूर्ति होती है. इसके अलावा 2200 नलकूप विभिन्न वार्ड में पानी की सप्लाई करते हैं. ग्वालियर में अमृत योजना तहत 43 पानी टंकियों का निर्माण कराया जा रहा है .तलवार वाले हनुमान जी पर तिघरा से पाइपलाइन के जरिए लाया जाएगा. इसके अतिरिक्त चंबल प्रोजेक्ट से भी भविष्य में 150 एमएलडी पानी मिलने की संभावना है. फिलहाल जून 21 तक ग्वालियर नगर निगम को पेयजल आपूर्ति के लिए पर्याप्त उपलब्धता है.
80 हजार से ज्यादा है शहर में अवैध कनेक्शन
इसके अलावा शहर में पानी के अवैध कनेक्शनों की भरमार है. इन्हें खत्म करने में पीएचई अमला अभी तक नाकाम रहा है कई बार लोगों की पाइप लाइन से कनेक्शन काटे जाते हैं लेकिन वह कुछ समय बाद फिर जोड़ लिए जाते हैं. पीएचई की लाइनें ऐसी है कि वह नालियों से होकर गुजरती हैं बारिश में तो पीने के पानी के लिए लोगों को तरसना पड़ता है, सबसे ज्यादा हालत खराब शहर के बाहरी हिस्से यानी कैंसर अस्पताल, सेवानगर, नूरगंज सहित महल गांव, सिरोल में पानी की ज्यादा समस्या है. यह लगभग 12 माह ही नगर निगम के टैंकरों से पानी की सप्लाई होती है. नूरगंज पहाड़ी पर रहने वाले करीब 500 परिवार पहाड़ी के नीचे से पानी ले जाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि पानी ऊपर जाता नहीं है. लोग अवैध रूप से पानी मोटर लगाकर जैसे तैसे थोड़ा बहुत ऊंचाई तक पानी ले जा पाते हैं, उसके बाद फिर उन्हें पानी के लिए पैदल ही रास्ता तय करना पड़ता है. नूरगंज पहाड़ी पर रहने वाले लोगों का ज्यादा समय नीचे से पानी ऊपर ले जाने में ही बीत जाता है.
लीकेज की रोज मिलती हैं शिकायतें
ग्वालियर में पीएचई विभाग ने शहर को चार उपखंड में बांटकर सप्लाई व्यवस्था की है, लेकिन हर वार्ड में पानी का लीकेज की शिकायतें आम हैं लोगों को रोजाना ही लीकेज की शिकायत मिलती है. नगर निगम का पीएच अमला अधिकांश समय इन लीकेज को ठीक करने में ही व्यस्त रहता है.
वाटर सप्लाई के मुकाबले जलकर रेवेन्यू नहीं
इसके अलावा अवैध नल कनेक्शन भी हजारों की संख्या में हैं, जिनसे ना सिर्फ पानी की चोरी हो रही है बल्कि नगर निगम को रेवेन्यू का भी नुकसान हो रहा है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक हर घर में पानी की सप्लाई के लिए नगर निगम को 900 रुपए प्रति माह खर्च करने पड़ते हैं. इसके एवज में रोजाना पांच रुपए के हिसाब से पानी का बिल आता है. यानी 150 रुपए महीना भी लोग नहीं चुका पा रहे हैं. कुछ बड़े बकायेदारों ने इस बार 12 दिसंबर को लगी लोक अदालत में 73 लाख रुपये जलकर के रूप में जमा किया है. यदि नगर निगम इस दिशा में गंभीर हो तो रिवेन्यू कलेक्शन बढ़ सकता है.
अधिकांश लोगों के पास मासिक बिल नहीं आता है, लेकिन नगर निगम के अफसरों का दावा है कि वे डोर टू डोर सर्वे कर रहे हैं और अवैध नल कनेक्शनों के खिलाफ भी अभियान चला रहे हैं और उन्हें वैधता प्रदान कर रहे हैं. लेकिन पेयजल आपूर्ति को लेकर नगर निगम के पास कोई भी व्यवस्थित योजना नहीं है, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ रहा है. हैरानी की बात यह है कि सात साल पहले नगर निगम ने जल कर वसूलने के लिए हर वार्ड में पानी के मीटर लगाने का फैसला किया था, कुछ वार्डों में मीटरीकरण हुआ, लेकिन अब तक पूरी तरह से बंद है और मीटर के हिसाब से जलापूर्ति करना निगम के बस की बात नहीं लगती है.