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200 साल से जारी है वर्चस्व की सियासी जंग, क्योंकि सियासत महाराजा बनाम राजा है - सियासत के राजा महाराजा

ग्वालियर राजघराने और राघौगढ़ रियासत के बीच जारी सियासी लड़ाई को भी प्रदेश की राजनीति में चल रहे घमासान की बड़ी वजह माना जा रहा है. क्योंकि इन दोनों परिवारों की बीच की आपसी होड़ 200 साल से चली आ रही है. जो अब ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच है.

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ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह
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Published : Mar 18, 2020, 12:02 AM IST

Updated : Mar 18, 2020, 5:14 PM IST

ग्वालियर/गुना। मध्य प्रदेश में चल रहा सियासी घमासान यूं तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच छिंड़ा है. लेकिन प्रदेश में चल रही इस सियासी उथल-पुथल को समझना है तो इतिहास के गर्त में जाना होगा. क्योंकि ये लड़ाई सत्ता की है, लड़ाई उन दो परिवारों की है, जो इतिहास में 200 साल से एक-दूसरे के विरोधी है. हम बात कर रहे हैं सिंधिया राजघराने और राघौगढ़ रियासत की, क्योंकि मध्य प्रदेश में चल रही सत्ता की लड़ाई महाराजा सिंधिया और दिग्गी राजा के इर्द-गिर्द है. प्रदेश की राजनीति में सिंधिया राजघराने और राघौगढ़ रियासत के बीच की आपसी होड़ दशकों से चली आ रही है. जहां कभी राजा-महराजा पर भारी पड़े तो महाराजा राजा पर.

महाराजा बनाम राजा की लड़ाई

200 साल पुरानी है दोनों परिवारों की लड़ाई

इतिहास के पन्नों को खोलकर देखा जाए तो सिंधिया राजघराने का वर्चस्व चंबल से मालवा तक था. लेकिन इस क्षेत्र में आने वाली राघौगढ़ रियासत स्वत्रंत थी. तब राघौगढ़ के राजपरिवार को खीची कहा जाता था. लिहाजा राजमहल और महल के बीच हमेशा वर्चस्व की लड़ाई रही. साल 1816 में सिंधिया रियासत के महाराज दौलतराव सिंधिया ने राघौगढ़ के राजा जयसिंह को युद्ध में हराकर राघौगढ़ को ग्वालियर के अधीन कर लिया. देश में जब तक राजतंत्र रहा राघौगढ़ रियासत ग्वालियर के अधीन रही. ग्वालियर के अधीन होने की टीस खीचियों के मन में हमेशा बनी रही.

सिंधिया का राजमहल
सिंधिया का राजमहल

लोकतंत्र में भी जारी हैं जंग

1947 में देश आजाद हुआ, राजतंत्र खत्म हुआ, तो लोकतंत्र में राघौगढ़ रियासत भी आजाद हो गई. लेकिन दोनों परिवारों की लड़ाई जारी रही. दोनों परिवार सियासत में उतरें तो दोनों परिवारों की लड़ाई राजनीति में आ गई. दोनों परिवारों के सदस्य कांग्रेस में थे. 1993 में जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तो माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार थे. लेकिन इस बार महाराजा पर राजा भारी पड़े और सीएम दिग्गी राजा बने. प्रदेश में कांग्रेस पार्टी इन दो दिग्गजों के बीच गुटों में बट गई. केंद्र में सिंधिया मजबूत रहे तो प्रदेश में दिग्विजय सिंह.

राघौगढ़ रियासत
राघौगढ़ रियासत

माधवराव सिंधिया की मौत के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में अपना कद बढ़ाया. तो दिग्गी राजा फिर सतर्क हो गए. 15 साल बाद जब प्रदेश में फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम के दावेदार थे. लेकिन दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ को सीएम पद दिलाकर फिर सिंधिया पर भारी पड़े. लेकिन 18 साल से सियासत का सियासी पाठ पढ़ रहे महाराजा सिंधिया शायद इस बार हार मानने को तैयार नहीं थे. सिंधिया ने कांग्रेस में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए बीजेपी ज्वाइन की. तो उनके समर्थन में कांग्रेस के 20 विधायकों ने इस्तीफा देकर कमलनाथ सरकार को संकट में डाल दिया.

अब कमलनाथ सरकार को बचाने की जिम्मेदारी दिग्गी राजा के कंधों पर है, तो सरकार गिराने का काम बीजेपी की तरफ से महाराजा सिंधिया के जिम्मे. कभी कांग्रेस में रहते हुए राजा और महाराजा के बीच की यह अदावत अब खुलकर सामने आई आएगी. क्योंकि असल लड़ाई तब होगी जब बीजेपी की तरफ से महाराजा सिंधिया और कांग्रेस की तरफ से दिग्गी राजा आमने सामने होंगे.

ग्वालियर/गुना। मध्य प्रदेश में चल रहा सियासी घमासान यूं तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच छिंड़ा है. लेकिन प्रदेश में चल रही इस सियासी उथल-पुथल को समझना है तो इतिहास के गर्त में जाना होगा. क्योंकि ये लड़ाई सत्ता की है, लड़ाई उन दो परिवारों की है, जो इतिहास में 200 साल से एक-दूसरे के विरोधी है. हम बात कर रहे हैं सिंधिया राजघराने और राघौगढ़ रियासत की, क्योंकि मध्य प्रदेश में चल रही सत्ता की लड़ाई महाराजा सिंधिया और दिग्गी राजा के इर्द-गिर्द है. प्रदेश की राजनीति में सिंधिया राजघराने और राघौगढ़ रियासत के बीच की आपसी होड़ दशकों से चली आ रही है. जहां कभी राजा-महराजा पर भारी पड़े तो महाराजा राजा पर.

महाराजा बनाम राजा की लड़ाई

200 साल पुरानी है दोनों परिवारों की लड़ाई

इतिहास के पन्नों को खोलकर देखा जाए तो सिंधिया राजघराने का वर्चस्व चंबल से मालवा तक था. लेकिन इस क्षेत्र में आने वाली राघौगढ़ रियासत स्वत्रंत थी. तब राघौगढ़ के राजपरिवार को खीची कहा जाता था. लिहाजा राजमहल और महल के बीच हमेशा वर्चस्व की लड़ाई रही. साल 1816 में सिंधिया रियासत के महाराज दौलतराव सिंधिया ने राघौगढ़ के राजा जयसिंह को युद्ध में हराकर राघौगढ़ को ग्वालियर के अधीन कर लिया. देश में जब तक राजतंत्र रहा राघौगढ़ रियासत ग्वालियर के अधीन रही. ग्वालियर के अधीन होने की टीस खीचियों के मन में हमेशा बनी रही.

सिंधिया का राजमहल
सिंधिया का राजमहल

लोकतंत्र में भी जारी हैं जंग

1947 में देश आजाद हुआ, राजतंत्र खत्म हुआ, तो लोकतंत्र में राघौगढ़ रियासत भी आजाद हो गई. लेकिन दोनों परिवारों की लड़ाई जारी रही. दोनों परिवार सियासत में उतरें तो दोनों परिवारों की लड़ाई राजनीति में आ गई. दोनों परिवारों के सदस्य कांग्रेस में थे. 1993 में जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, तो माधवराव सिंधिया और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार थे. लेकिन इस बार महाराजा पर राजा भारी पड़े और सीएम दिग्गी राजा बने. प्रदेश में कांग्रेस पार्टी इन दो दिग्गजों के बीच गुटों में बट गई. केंद्र में सिंधिया मजबूत रहे तो प्रदेश में दिग्विजय सिंह.

राघौगढ़ रियासत
राघौगढ़ रियासत

माधवराव सिंधिया की मौत के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में अपना कद बढ़ाया. तो दिग्गी राजा फिर सतर्क हो गए. 15 साल बाद जब प्रदेश में फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम के दावेदार थे. लेकिन दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ को सीएम पद दिलाकर फिर सिंधिया पर भारी पड़े. लेकिन 18 साल से सियासत का सियासी पाठ पढ़ रहे महाराजा सिंधिया शायद इस बार हार मानने को तैयार नहीं थे. सिंधिया ने कांग्रेस में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए बीजेपी ज्वाइन की. तो उनके समर्थन में कांग्रेस के 20 विधायकों ने इस्तीफा देकर कमलनाथ सरकार को संकट में डाल दिया.

अब कमलनाथ सरकार को बचाने की जिम्मेदारी दिग्गी राजा के कंधों पर है, तो सरकार गिराने का काम बीजेपी की तरफ से महाराजा सिंधिया के जिम्मे. कभी कांग्रेस में रहते हुए राजा और महाराजा के बीच की यह अदावत अब खुलकर सामने आई आएगी. क्योंकि असल लड़ाई तब होगी जब बीजेपी की तरफ से महाराजा सिंधिया और कांग्रेस की तरफ से दिग्गी राजा आमने सामने होंगे.

Last Updated : Mar 18, 2020, 5:14 PM IST
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