ग्वालियर। मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में एक सीट ऐसी है जिस पर सबकी नजरे टिकी हैं. जो ग्वालियर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सबसे हॉट सीटों में से एक हैं. हम बात कर रहे हैं ग्वालियर विधानसभा सीट की. जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे खास समर्थक प्रद्युमन सिंह तोमर की बगावत से खाली हुई. राजशाही के दौर में देश की जानी-मानी औद्योगिक क्षेत्र वाली ग्वालियर विधानसभा सीट खास इसलिए भी हैं क्योंकि यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर है.
2018 में कांग्रेस से जीते थे प्रद्युम्न सिंह तोमर
2018 में कांग्रेस में रहे प्रद्युमन सिंह तोमर ने बीजेपी के दिग्गज नेता जयभान सिंह पवैया को 20 हजार से भी ज्यादा वोटों से चुनाव हराया था. लेकिन बदली परस्थितियों में तोमर अब बीजेपी के प्रत्याशी है. तो कांग्रेस ने उनके खिलाफ यहां कभी सिंधिया के करीबी रहे सुनील शर्मा को मैदान में उतारा है.
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ग्वालियर विधानसभा सीट का इतिहास
ग्वालियर विधानसभा सीट के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1957 से अस्तित्व में आई इस सीट पर कभी किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा. कांग्रेस और बीजेपी समय-समय पर यहां जीत दर्ज करती रही है. अब तक ग्वालियर विधानसभा सीट पर 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. जिनमें सबसे ज्यादा 6 बार जनसंघ और बीजेपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. तो पांच बार बाजी कांग्रेस के हाथ लगी. जबकि तीन बार अन्य दलों के प्रत्याशियों को जीत का स्वाद मिला.
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ग्वालियर विधानसभा के जातिगत समीकरण
ग्वालियर विधानसभा ब्राह्मण और क्षत्रिय बाहुल्य क्षेत्र हैं. लेकिन शहरी आबादी होने की वजह से इस सीट पर ओबीसी, अनुसूचित जाति के साथ अन्य जातियां भी प्रभावी भूमिका में नजर आती हैं. ब्राह्मण और क्षत्रिय लगभग 30 से 35 मतदाता है. लिहाजा बीजेपी ने क्षत्रिय वर्ग के प्रत्याशी को टिकिट दिया है. तो कांग्रेस ने ब्राह्मण वर्ग के प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.
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वही बात अगर ग्वालियर विधानसभा सीट के मतदाताओं की जाएं तो यहां कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 81 हजार 321 हैं. जिनमें 1 लाख 51 हजार 056 पुरुष मतदाता, तो 1 लाख 30 हजार 265 महिला मतदाता है. जो उपचुनाव में अपने नए विधायक का चयन करेंगे.
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जनता देगी जबावः सुनील शर्मा
कांग्रेस प्रत्याशी सुनील शर्मा पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. उनका कहना है कि प्रद्युम्न सिंह तोमर ने ग्वालियर विधानसभा सीट की जनता के साथ धोखा किया है. इसलिए इस बार जनता ही उन्हें जबाव देगी. क्योंकि यह जनता का चुनाव है. सुनील शर्मा ने कहा कि बीजेपी सरकार ने ग्वालियर में विकास के सभी काम रोक दिए हैं. इसलिए इस बार अब जनता बीजेपी को मौका नहीं देगी.
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जनता का सेवक हूंः प्रद्युम्न सिंह तोमर
वही बीजेपी प्रत्याशी प्रद्युम्न सिंह तोमर कहते हैं कि वह चुनाव से मतलब नहीं रखते. वे तो जनता के सेवक है और जनता की सेवा करना ही उनका काम है. तोमर ने कहा कि 15 महीने की कमलनाथ सरकार ने ग्वालियर के साथ धोखा किया है. वे कभी ग्वालियर में आए तक नहीं. इसलिए जो धोखा उन्होंने ग्वालियर की जनता से किया है. उसका बदला लेना ही उनका लक्ष्य है.
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राजनीतिक जानकारों की राय
ग्वालियर विधानसभा सीट के सियासी समीकरणों पर राजनीतिक जानकार देवश्री माली कहते हैं कि ग्वालियर विधानसभा सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाली सीट हैं. सिंधिया जब कांग्रेस में थे तब सुनील शर्मा उनके खास समर्थक थे. तो प्रद्युम्न सिंह तोमर भी उनके समर्थक है. सिंधिया के बीजेपी छोड़ने से तोमर उनके साथ आ गए. लेकिन सुनील शर्मा कांग्रेस में ही रहे हैं. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा किया मुकाबला सिंधिया वर्सेज सिंधिया ही है.
तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर
संघ के प्रभाव वाली ग्वालियर विधानसभा सीट पर 2008 के चुनाव में कांग्रेस के प्रद्युमन सिंह तोमर 2 हजार 90 वोट से चुनाव जीते थे. लेकिन 2013 में उन्हें जयभान सिंह पवैया से हार का सामना करना पड़ा. 2018 में तोमर ने वापसी करते हुए पवैया को पटखनी दी और कमलनाथ सरकार में मंत्री बने. लेकिन वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ विधायकी से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए और शिवराज सरकार में मंत्री पद रहते हुए तीसरी बार चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं.
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तोमर के लिए प्रचार कर रहे पवैया
खास बात यह है कि ग्वालियर में कभी एक दूसरे के सबसे कट्टर विरोधी रहे जयभान सिंह पवैया और प्रद्युम्न सिंह तोमर अब एक साथ नजर आ रहे हैं. दोनों मिलकर प्रचार भी कर रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे कट्टर समर्थक प्रद्युम्न सिंह तोमर के मैदान में होने से यह सीट उनकी प्रतिष्ठा से भी जुड़ी हैं लिहाजा तोमर को जीत दिलाने की जिम्मेदारी सिंधिया जिम्मे हीं है. तो कांग्रेस के सुनील शर्मा के पक्ष में कमलनाथ की टीम जुटी है. हालांकि दोनों प्रत्याशियों में किस्मत किसकी चमकेगी इसका पता तो तीन नवंबर को ही पता चलेगा.