भोपाल. राजनीति में सौजन्य मुलाकातें और दो नेताओं का एक दूसरे के लिए अचानक बढ़ा सद्भाव क्या प्रदेश की सियासत में सुनामी ला सकता है. इसे हाल ही में सामने आई कैलाश विजयवर्गीय और ज्योतिरादित्य सिंधिया के मजबूत होते याराने की तस्वीरों और इसी तरह 2018 के बाद सिंधिया और शिवराज की उन मुलाकातों को री कॉल करते हुए देखा जाए. तो माना जाता है कि इन्हीं मुलाकातों में सिंधिया के दलबल के साथ दलबदल की पटकथा लिख ली गई थी. जानकार यह भी मानते हैं कि बीजेपी की सबसे पॉवरफुल बॉडी संसदीय बोर्ड से सीएम शिवराज की विदाई के बाद यह साफ संदेश दे दिया गया है कि पार्टी आलाकमान शिवराज को मध्यप्रदेश की राजनीति तक ही सीमित रखने का इरादा रखता है, लेकिन इसी दौरान मध्यप्रदेश में एक के बाद एक घटे सियासी घटनाक्रम और सौजन्य मुलाकातें क्या किसी और सुनामी का संकेत दे रही हैं.
सिंधिया कैलाश दोस्ती का दांव बीजेपी में नई दोस्ती का दम: प्रदेश में पिछले दिनों में बीजेपी के दो दिग्गज नेताओं की नजदीकियां सुर्खियां बनी हुई हैं. कैलाश विजयवर्गीय के गढ माने जाने वाले इंदौर पहुंचे ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश क्रिक्रेट एसोसिएशन के कार्यक्रम में मंच से उतरकर नीचे बैठे विजयवर्गीय को आदर के साथ स्टेज पर ले गए. इसके पहले भी वे विजयवर्गीय के निवास पर मुलाकात के लिए गए थे. यहां अपने बेटे महाआर्यमन से विजयवर्गीय के पैर छू कर आशीर्वाद भी दिलाया. जिसके बाद से मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इन मुलाकातों को भविष्य की सियासत में नए गठजोड़ के तौर पर देखा जा रहा है. खास बात है इन मुलाकातों की टाइमिंग और वो यह कि बीजेपी संसदीय बोर्ड से शिवराज सिंह की विदाई के बाद ये दोस्ती गहरी हो रही है. दूसरी खास बात ये भी है कि दोनों ही नेता शिवराज के करीबियों में नहीं गिने जाते हैं.
सिंधिया कैलाश दोस्ती का दांव मंत्रियों के नौकरशाही पर हमले,पीछे ताकत किसकी: पंचायत मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया ने जिस तरह से मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस को लेकर जो आरोप लगाये और सीएम को शिकायती चिट्ठी लिखी. वह कई सवाल छोड़ गई है. नौकरशाही पर तानाशाह हो जाने का आरोप लगाने वाले मंत्री सिसौदिया सिंधिया समर्थक हैं. जिसके बाद सवाल यह उठ रहा है कि मुख्य सचिव की सीएम से शिकायत करना...ये मंत्री की अपनी बेबाकी थी या उन्होंने किसी की बात को आगे बढ़ाया है. इसके बाद सिसौदिया ने अपने प्रभार वाले शिवपुरी जिले के एसपी पर कार्रवाई के लिए कलेक्टर को जो चिट्ठी लिखी यह इस बात का संकेत है कि बीजेपी में गुटों की लकीर गहरी होती जा रही है. इस बीच पीएचई मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव भी सहकारिता संस्था में नियुक्ति पर आपत्ति जता चुके हैं. एक के बाद एक दो मंत्रियों की अफसरशाही से नाराज़गी और उसकी टाइमिंग आने वाली समय में प्रदेश की राजनीति को लेकर बहुत कुछ संकेत देती है. हर दांव पेंच से बेअसर दिखते हैं शिवराज: प्रदेश के दिग्गज नेताओं के बीच की सियासी मुलाकातों और मंत्रियों के सरकार पर प्रत्यक्ष और परोक्ष हमले जैसे शिवराज पर बेअसर बने हुए हैं. जमीन से जुड़े हुए नेता के तौर पर वे अपनी लकीर लंबी करने की राजनीति में भरोसा रखते हैं. शिवराज आसानी से कभी अपने पत्ते नहीं खोलते. संसदीय बोर्ड से शिवराज को हटाए जाने के जिस फैसले को शिवराज के लिए झटके की तरह पेश किया जा रहा था तब मीडिया से बातचीत में खुद शिवराज ने बड़े इत्मिनान से खुद को बीजेपी का सच्चा कार्यकर्ता बताते हुए पार्टी से अपनी करीबी अपने बयान से जाहिर कर दी. उन्होंने कहा कि पार्टी मुझे अगर दरी बिछाने का भी काम देगी तो मैं तैयार हूं. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. शिवराज की ये साफगोई, जमीन से जुड़ा नेता होना और जनता के बीच उनकी लोकप्रियता, राजनीति के दांव ही हैं जो चार पारी से एमपी में उन्हें सत्ता का सरताज बनाए हुए हैं.