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100 करोड़ के आभूषणों से होगा कन्हैया और राधाजी का श्रृंगार, इस बार ऑनलाइन होंगे दर्शन

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Published : Aug 11, 2020, 9:41 PM IST

देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां शुरु हो गई है. इस बार ग्वालियर के गोपाल मंदिर में भी भगवान के जन्मोत्सव के आयोजन की तैयारियां अंतिम दौर में है. यहां हर साल भगवान का 100 करोड़ रुपए से भी से ज्यादा के जेवरातों से श्रृंगार किया जाता है. लेकिन कोरोना के चलते इस बार गोपाल मंदिर में भक्तों को ऑनलाइन ही दर्शन मिलेंगे.

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कन्हैया का श्रृंगार

ग्वालियर। जन्माष्टमी का त्यौहार आते ही कन्हैया के दरबार सजने लगे हैं. कोरोनाकाल की वजह से इस बार भले ही जन्माष्टमी की रौनक थोड़ी कम दिखाई दे रही है. लेकिन कान्हा के जन्मोत्सव का अपना एक अलग अंदाज होता है. ग्वालियर के 100 वर्ष पुराने गोपाल मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व बेहद खास तरीके से मनाया जाता है. सिंधिया रियासत कालीन मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की प्रतिमा को करोड़ों रुपए के जेवरातों से सजाया जाता है.

100 करोड़ के आभूषणों से सजेंगे कन्हैया

ग्वालियर के फूलबाग में स्थित सिंधिया कालीन 100 वर्ष पुराने इस मंदिर में मौजूद राधा कृष्ण की मूर्तियों को जन्माष्टमी पर खास जेवरातों से सजाया जाता है. प्रतिमाओं को रत्न जड़ित आभूषणों से सुसज्जित किया जाता है. जिनकी कीमत लगभग 100 करोड रुपए से भी ज्यादा है. देश की स्वतंत्रता के पहले तक भगवान इन्हीं जेवरातों से श्रृंगारित रहते थे. लेकिन देश आजाद होने के बाद से जेवरात बैंक के लॉकर में कैद पड़े थे, जो 2007 में नगर निगम की देखरेख में आए तब से लेकर हर जन्माष्टमी पर राधा कृष्ण की प्रतिमा को इन बेशकीमती जेवरात पहनाए जाते हैं. जन्माष्टमी के दिन सुरक्षा व्यवस्था के बीच इन बातों को लॉकर से निकालकर राधा और गोपाल जी का श्रृंगार किया जाता हैं.

1991 में हुई थी मंदिर की स्थापना

ग्वालियर के गोपाल मंदिर की स्थापना 1991 में तत्कालीन शासक माधवराव प्रथम ने कराई थी. उन्होंने भगवान की पूजा के लिए चांदी के बर्तन और पहनाने के लिए रत्न जड़ित सोने के आभूषण बनवाए थे. भगवान के इन जेवरातों में सफेद मोती का पंचगढ़ी हार, सात लड़ी का हार, जिसमें 62 मोती और 55 पन्ने जड़े गए है. कन्हैया और राधारानी के लिए सोने का मुकुट. जिसमें पुखराज जड़े हैं. राधाजी के लिए सोने के जुमखे, सोने की नथ, कंठी, चूड़िया और कड़े शामिल हैं. यही वजह है कि भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. इनमें देशी ही नहीं बल्कि विदेशी भक्त भी भगवान के इस रुप को निहारने आते हैं.

इस बार ऑनलाइन होंगे दर्शन

इस बार कोरोना संक्रमण के चलते भक्त भगवान राधा और गोपाल जी के दर्शन मंदिर में जाकर नहीं कर पाएंगे. यही वजह है कि मंदिर की कमेटी ने जन्माष्टमी के मौके पर दर्शन के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की है. भक्तों का कहना है कि हर बार भगवान की इस रूप को निहारने के लिए जन्माष्टमी के मौके पर आते हैं क्योंकि पूरे विश्व में भगवान का ऐसा रूप देखने को नहीं मिलता है. लेकिन इस बार कोरोना वायरस चलते मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन नहीं हो पाएंगे और इस बार सिर्फ ऑनलाइन ही दर्शन कर होंगे.

जन्माष्टमी के मौके पर ग्वालियर के गोपाल मंदिर में कान्हा का अनोखा रुप देखने को मिलता है. जहां करोड़ों के जेवरों से सजे कन्हैया और राधाजी को देखकर हर कोई मंत्रमुग्थ हो जाता है. हालांकि कोरोना की वजहसे इस बार भक्त ऑनलाइन भगवान के दर्शन करेंगे. लेकिन फिर ग्वालियर के गोपाल मंदिर में कन्हैया के स्वागत की तैयारिया जोरो पर है.

ग्वालियर। जन्माष्टमी का त्यौहार आते ही कन्हैया के दरबार सजने लगे हैं. कोरोनाकाल की वजह से इस बार भले ही जन्माष्टमी की रौनक थोड़ी कम दिखाई दे रही है. लेकिन कान्हा के जन्मोत्सव का अपना एक अलग अंदाज होता है. ग्वालियर के 100 वर्ष पुराने गोपाल मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व बेहद खास तरीके से मनाया जाता है. सिंधिया रियासत कालीन मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की प्रतिमा को करोड़ों रुपए के जेवरातों से सजाया जाता है.

100 करोड़ के आभूषणों से सजेंगे कन्हैया

ग्वालियर के फूलबाग में स्थित सिंधिया कालीन 100 वर्ष पुराने इस मंदिर में मौजूद राधा कृष्ण की मूर्तियों को जन्माष्टमी पर खास जेवरातों से सजाया जाता है. प्रतिमाओं को रत्न जड़ित आभूषणों से सुसज्जित किया जाता है. जिनकी कीमत लगभग 100 करोड रुपए से भी ज्यादा है. देश की स्वतंत्रता के पहले तक भगवान इन्हीं जेवरातों से श्रृंगारित रहते थे. लेकिन देश आजाद होने के बाद से जेवरात बैंक के लॉकर में कैद पड़े थे, जो 2007 में नगर निगम की देखरेख में आए तब से लेकर हर जन्माष्टमी पर राधा कृष्ण की प्रतिमा को इन बेशकीमती जेवरात पहनाए जाते हैं. जन्माष्टमी के दिन सुरक्षा व्यवस्था के बीच इन बातों को लॉकर से निकालकर राधा और गोपाल जी का श्रृंगार किया जाता हैं.

1991 में हुई थी मंदिर की स्थापना

ग्वालियर के गोपाल मंदिर की स्थापना 1991 में तत्कालीन शासक माधवराव प्रथम ने कराई थी. उन्होंने भगवान की पूजा के लिए चांदी के बर्तन और पहनाने के लिए रत्न जड़ित सोने के आभूषण बनवाए थे. भगवान के इन जेवरातों में सफेद मोती का पंचगढ़ी हार, सात लड़ी का हार, जिसमें 62 मोती और 55 पन्ने जड़े गए है. कन्हैया और राधारानी के लिए सोने का मुकुट. जिसमें पुखराज जड़े हैं. राधाजी के लिए सोने के जुमखे, सोने की नथ, कंठी, चूड़िया और कड़े शामिल हैं. यही वजह है कि भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. इनमें देशी ही नहीं बल्कि विदेशी भक्त भी भगवान के इस रुप को निहारने आते हैं.

इस बार ऑनलाइन होंगे दर्शन

इस बार कोरोना संक्रमण के चलते भक्त भगवान राधा और गोपाल जी के दर्शन मंदिर में जाकर नहीं कर पाएंगे. यही वजह है कि मंदिर की कमेटी ने जन्माष्टमी के मौके पर दर्शन के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की है. भक्तों का कहना है कि हर बार भगवान की इस रूप को निहारने के लिए जन्माष्टमी के मौके पर आते हैं क्योंकि पूरे विश्व में भगवान का ऐसा रूप देखने को नहीं मिलता है. लेकिन इस बार कोरोना वायरस चलते मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन नहीं हो पाएंगे और इस बार सिर्फ ऑनलाइन ही दर्शन कर होंगे.

जन्माष्टमी के मौके पर ग्वालियर के गोपाल मंदिर में कान्हा का अनोखा रुप देखने को मिलता है. जहां करोड़ों के जेवरों से सजे कन्हैया और राधाजी को देखकर हर कोई मंत्रमुग्थ हो जाता है. हालांकि कोरोना की वजहसे इस बार भक्त ऑनलाइन भगवान के दर्शन करेंगे. लेकिन फिर ग्वालियर के गोपाल मंदिर में कन्हैया के स्वागत की तैयारिया जोरो पर है.

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