ग्वालियर। किले की चट्टानों को तराश कर बनाई गई जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं ऐतिहासिक महत्व के साथ ही जैन धर्मावलंबियों के लिए एक अनूठा तीर्थ स्थल है. 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के शासनकाल में जैन श्रावकों द्वारा गोपाचल पर्वत पर भगवान पार्श्वनाथ केवली और 24 तीर्थंकर की 9 इंच से लेकर 57 फुट ऊंची तक प्रतिमाएं बनाई गई थीं, जो पद्मासन और खड़ी मुद्राओं में हैं. इन्हें देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं.
ग्वालियर के ऐतिहासिक किले में बनी इन जैन प्रतिमाओं को तेहरवीं शताब्दी का बताया जाता है. जब यहां 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान का शासन काल था. उस समय इन प्रतिमाओं को किले की बेहद दुर्गम चट्टानों को तराश कर बनाया गया.
ये प्रतिमाएं अपने आप में अनूठी हैं. जिनका आज के समय में निर्माण करना भी अकल्पनीय है. गोपाचल पर्वत पर 26 गुफाएं हैं, जिसमें भगवान पार्श्वनाथ और 24 तीर्थंकर की प्रतिमाएं विभिन्न मुद्राओं में हैं. कहा जाता है कि 1528 में मुस्लिम आक्रांता बाबर यहां आया था, उसने इन प्रतिमाओं को खंडित करने के आदेश दिए थे, लेकिन उसके सैनिकों की इस कोशिश में आंखों की रोशनी चली गई थी. बाद में बाबर भी यहां आया उसने भी भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा को खंडित करने की कोशिश की, लेकिन जब उसकी आंखों की रोशनी गई तो उसने किसी की सलाह पर भगवान से माफी मांगी और भविष्य में कभी जैन प्रतिमाओं को हाथ नहीं लगाने की प्रतिज्ञा की. तब उसकी और उसके सैनिकों की आंखों की रोशनी आई थी.
जैन समाज का इन प्रतिमा के लिए विशेष महत्व है. यहां भगवान केवली और पार्श्वनाथ की प्रतिमाओं के अलावा 24 तीर्थंकर विभिन्न मुद्राओं में हैं. हर रविवार को यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. लेकिन लॉकडाउन का असर यहां भी हुआ है. कम संख्या में ही अब लोग गोपाचल पर्वत पर इन प्रतिमाओं को निहारने आते हैं. वहीं जैन धर्मावलंबी यहां अपनी मुरादों की पूर्ति के लिए अक्सर आते हैं.