ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाके में राजा मिहिर भोज की जाति को लेकर गहराए विवाद के लिए उच्च न्यायालय ग्वालियर की खंडपीठ के निर्देश पर संभागायुक्त आशीष सक्सेना की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है, जिसने आमजनों से राजा मिहिर भोज की जाति के संदर्भ में साक्ष्य मांगे गए हैं. ग्वालियर और मुरैना में स्थापित सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के निचले हिस्से में लगी शिला पट्टिका में गुर्जर जाति का उल्लेख है, इसी बात को लेकर दो वर्गों में विवाद हो गया. मुरैना में तो दोनों वर्गों में संघर्ष तक की स्थिति बनी, उपद्रवियों ने वाहनों में तोड़फोड़ की.
साक्ष्य देने के लिए दिया गया 4 अक्टूबर तक का समय
ग्वालियर के चिरवाई नाके पर स्थापित सम्राट मिहिर भोज आशीष सक्सेना की अध्यक्षता में एक जाँच कमेटी गठित की गई है. प्रशासन की ओर से कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति, समाज या समुदाय यदि सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के संबंध में कोई साक्ष्य, प्रमाण या ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत करना चाहता हो तो वह कलेक्ट्रेट के कक्ष क्रमांक-209 स्थित अनुविभागीय दंडाधिकारी लश्कर अनिल बनबारिया के कार्यालय में चार अक्टूबर को सायंकाल पांच बजे तक उपलब्ध करा सकता है.
ज्ञात हो कि मुरैना में भी सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा लगी है. इस प्रतिमा के निचले हिस्से में शिला पट्टिका में सम्राट की जाति गुर्जर बताई गई है. इसके बाद से विवाद की स्थिति है, ग्वालियर में भी तनाव बढ़ने पर चिरवाई नाका स्थित प्रतिमा की सुरक्षा के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया गया है.
हाईकोर्ट के आदेश पर कलेक्टर ने बनाई कमेटी
पिछले ग्वालियर के चिरवाई नाके पर राजा मिहिर भोज के प्रतिमा का अनावरण किया गया था. जिसके बाद उनकी जाति को लेकर क्षत्रिय और गुर्जर समाज के बीच संघर्ष की स्थिति बन गई. इस विवाद का असर ग्वालियर के अलावा आसपास के मुरैना और भिंड़ जिलों में भी पड़ने से स्थिति बिगड़ने लगी. इस मामले में ग्वालियर कलेक्टर को हाईकोर्ट ने एक कमेटी बनाने के आदेश दिए. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कोर्ट ने प्रतिमा पर लगी शिला पट्टिका ढंकने के आदेश दिए. जिसके बाद विवाद और बढ़ गया.
इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद
ग्वालियर में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा लगाई गई थी. इस प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर लिखे गुर्जर शब्द लिखा था, जिस पर ही विवाद शुरू हुआ. गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले गुर्जर शब्द लगाने को लेकर ठाकुर समाज के लोगों ने जगह-जगह महापंचायत की थी. इसके बाद इस विवाद की लपटें मुरैना जिले तक पहुंची. अब हाईकोर्ट ने इस मामले में दखल दिया है.
'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी
सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया. उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है.
इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे. इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है. जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे. इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ऐसा माना जाता है कि ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था.
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चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.
सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सियासत
सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर या राजपूत बताए जाने को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका इतिहास से मतलब कम, राजनीति से ज्यादा है, मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर थे, इसमें ऐतिहासिकता कम राजनीति ज्यादा हो रही है. इतिहास तो यही कहता है कि आज के जो गूजर या गुज्जर-गुर्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा है. दूसरी बात, यह गुर्जर-प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था. ऐसे में विवाद की बात होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन अब लोग कर रहे हैं तो क्या ही कहा जाए.
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गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक थे सम्राट मिहिर भोज
भिंड जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ई में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालत और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा को कायम किया था जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.
क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं
पुरातत्व अधिकारी ने आगे बताया कि मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार राजा थे, क्योंकि जितने राजाओं ने शासन किया है वे सभी क्षत्रिय थे, और क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं. हालांकि वे राजपूत क्षत्रिय थे. क्योंंकि गुर्जर क्षेत्र का नाम था. वीरेंद्र पांडेय कहते हैं कि इतिहास में लोगों ने क्षेत्र के हिसाब से जातियां बनाई थी.