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बीहड़ का रॉबिनहुड! एक फौजी क्यों बन गया चंबल का सबसे खूंखार डाकू, 23 हत्याएं और 500 किडनैपिंग का रिकॉर्ड - डाकू माधो सिंह की कहानी

ईटीवी भारत की खास सीरीज में आज हम आपको चंबल की सबसे खूंखार डकैत की कहानी बताएंगे. यह डकैत चंबल के बीहड़ों में रोबिनहुड के नाम से जाना जाता था. जो पहले फौजी था, फिर बागी हो गया और बाद में खूंखार डकैत बन गया. हम बात कर रहे हैं दस्यु माधो सिंह की. जिसने 11 साल चंबल के बीहड़ में राज किया. (chambal dacoit madho singh story)

chambal dacoit madho singh story
बीहड़ का रॉबिनहुड!
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Published : Jan 9, 2022, 1:01 PM IST

ग्वालियर । वो एक फौजी था, कंपाउंडर था और जादूगर भी. उसने करीब 11 साल बीहड़ में बंदूक के दम पर अपनी सरकार चलाई. कहते हैं कि उसकी अंगुलियां राइफल पर जितनी तेज चलती थी, उससे भी तेज उसका दिमाग चलता था. कुछ लोग उसे चंबल का रॉबिनहुड भी कहते थे. वो था डाकू माधो सिंह. उस पर 23 मर्डर और 500 से ज्यादा अपहरण का आरोप था. (madho singh an army man became terror of chambal)

chambal dacoit madho singh story
एक सैनिक क्यों बन गया बागी ?

जन्माष्टमी के दिन हुआ माधव सिंह का जन्म

मध्यप्रदेश में चम्बल की दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के आगरा में बाह तहसील है. यहां बीहड़ से सटा गढ़िया बघरेना गांव है. इसी गांव में किसान पोप सिंह भदोरिया के घर पर एक बच्चे का जन्म हुआ. जन्माष्टमी का दिन था. बच्चे का नाम रखा गया भगवान कृष्ण के नाम पर यानि माधव सिंह. प्यार से लोग उसे माधो-माधो कहने लगे. पोप सिंह की तीसरी संतान माधो सिंह शुरू से ही पढ़ाई लिखाई में अच्छा था. बचपन से ही उसे कुछ बड़ा करने का जुनून था.

सेना में कंपाउंडर का काम किया

1954 में माधो सिंह सेना में हवलदार बन गया. उसकी पोस्टिंग राजपूताना राइफल्स की 17वीं बटालियन में हुई. वो मेडिकल कोर में कंपाउडर का काम करने लगा. यहां माधो सिंह घायल जवानों का इलाज करने लगा.

माधो सिंह के ठाठ बाठ गांव के कुछ लोगों को अखरने लगे

नौकरी लगने के बाद माधो सिंह ठाठ-बाठ में रहने लगा. उसका परिवार भी गांव में धीरे-धीरे संपन्न होने लगा. यही ठाठ-बाठ गांव के कुछ लोगों को अखरने लगा. सेना में नौकरी करते हुए माधो सिंह को 7 साल पूरे हो चुके थे. इसी बीच गांव में उससे जलने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी. इसके साथ ही बढ़ते जा रहे थे उसके और उसके परिवार के खिलाफ षडयंत्र.

झूठे केस में माधो सिंह को हुई जेल

1959 में माधो सिंह लंबी छुट्टी लेकर अपने गांव आया था. इसी दौरान गांव के कुछ लोगों ने पिनाहट थाने में माधो सिंह के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया. इसके चलते माधो सिंह को सेना की नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा. वो घर वापस लौट आया. वापस लौटते ही माधो सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. कुछ दिन वो जेल में रहा.(chambal behad madho singh dacoit )

डॉक्टर के रूप में माधो सिंह बना गरीबों का मसीहा

जेल से बाहर आने के बाद माधो सिंह को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे. माधो सिंह के पास सेना के मेडिकल कोर का अनुभव था. अपने पैतृक गांव के पास ही भदरौली में उसने क्लीनिक खोली . वो गरीबों का फ्री में इलाज करता था. धीरे-धीरे माधो सिंह यहां भी गरीबों का मसीहा बनता जा रहा था. दुश्मनों को यह भी रास नहीं आ रहा था. वो किसी ना किसी बहाने से उससे उलझते रहते. उसके खिलाफ चोरी का मामला दर्ज करवा दिया.

chambal dacoit madho singh story
दबंगों ने जीने नहीं दिया

माधो सिंह पर गांव के दबंगों ने किया अत्याचार

उसके पास इलाज करवाने चोरी छिपे डाकू मोहर सिंह भी आता था. लेकिन माधो सिंह उसे पहचान नहीं सका. डाकू मोहर सिंह को पता चला कि गांव के कुछ लोग माधो सिंह को परेशान करते हैं. उसके कहने पर माधो सिंह को न्याय दिलाने के लिए गांव में पंचायत हुई. पंचायत में ही उसके दुश्मनों ने माधो सिंह के पक्ष के एक व्यक्ति पर हमला कर दिया. लेकिन पुलिस ने इस मामले में माधो और घायल व्यक्ति को ही मुजरिम बना दिया.

बदले की आग में माधो सिंह पहुंच गया बीहड़

बढ़ते अत्याचार और बेईमान पुलिस के कारण माधो सिंह ने चंबल में उतरने के लिए मन बना लिया. वो अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए डाकू बन गया. जब इसकी जानकारी डकैत मोहर सिंह तोमर को लगी तो माधो सिंह को उसने अपने पास बुला लिया.

chambal dacoit madho singh story
बदले की आग में पहुंच गया बीहड़

दुश्मनों की बिछा दी लाशें

चंबल के बीहड़ में पहुंचने के बाद डकैत माधो सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक रात वो अपने गांव में पहुंचा . उसने अपने तीन दुश्मनों को गोलियों से भून दिया. गांव में एक साथ तीन लोगों की हत्या के बाद सन्नाटा छा गया. पुलिस भी सकते में आ गई. ठीक इसके डेढ़ साल बाद ही माधो सिंह ने गांव में घुसकर फिर से चार दुश्मनों को गोलियों से छलनी करके अपना हिसाब किताब बराबर कर लिया.चंबल में अब माधो सिंह का सिक्का चलने लगा.

chambal dacoit madho singh story
चंबल में माधो सिंह की दहशत बढ़ने लगी

साथी मारा गया, माधो सिंह का गिरोह बढ़ता गया

1965 में माधो सिंह ने अपने साथी और चंबल का एक और खूंखार डकैत मोहर सिंह को खो दिया था. कुछ दिनों तक वो शांत रहा. वो अब पुलिस मुठभेड़ में घायल डाकुओं का इलाज करने लगा. इससे उसके कई विरोधी भी उसके मुरीद हो गए. डाकुओं के कई गिरोह माधो सिंह के साथ जुड़ गया. धीरे-धीरे माधो सिंह चंबल का सबसे खूंखार डाकू बन गया. माधो सिंह की गैंग में 80 से 90 खूंखार डाकू आ चुके थे. माधो सिंह की रणनीति,सटीक निशानेबाजी और अच्छे व्यवहार से खुश होकर चंबल घाटी के एक और खूंखार डाकू जग्गा सिंह ने खुश होकर उसे इनाम में राइफल तोहफे में दी. इसके बाद माधो सिंह ने करीब दर्जनभर हत्याएं और उसके बाद सैकड़ों अपहरण किए.

chambal dacoit madho singh story
11 साल चंबल में रही माधो सिंह की सरकार

माधो सिंह बन गया खौफ का दूसरा नाम

उस दौरान माधो सिंह की गैंग के पास 12 रायफल,15 स्टेनगन और विदेशी माउजर थे. कहा जाता है कि डाकू माधो सिंह ऐसा इकलौता डाकू था जिसकी उंगलियां राइफल पर जितनी तेज चलती थी, उससे भी तेज उसका दिमाग चलता था. इस कारण माधो सिंह के पास जाने से पुलिस खौफ खाती थी. (robin hood of chambal madho singh dacoit)

1971 में माधो सिंह के 13 साथी मारे गए

कई बार राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की पुलिस से उसकी मुठभेड़ हुई, लेकिन पुलिस को हर बार मुंह की खानी पड़ी. लेकिन साल 1971 में पुलिस ने माधो सिंह की गैंग के सबसे बड़े भरोसेमंद कल्ला, बाबू, चिंतामण बाबू सहित 13 डकैतों को मार गिराया. लेकिन माधो सिंह अभी भी पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस ने उस पर इनाम बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपए कर दिया.

11 साल तक आतंक मचाने के बाद बदला मन

11 साल तक चंबल में खुद की सरकार चलाने वाले खूंखार डकैत माधो सिंह पर 23 हत्याएं, 500 से ज्यादा अपहरण का आरोप थे. वो भी अब बीहड़ की जिंदगी से ऊब चुका था. साल 1970 में माधो सिंह ने बीहड़ छोड़ने का फैसला किया. उसने अपने एक खास व्यक्ति के जरिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण से बात की. 14 और 16 अप्रैल साल 1972 को माधो सिंह ने मुरैना जिले की जोरा में गांधी आश्रम में गांधी प्रतिमा के सामने हथियार डाल दिए. उसके साथ 521 डाकुओं ने भी सरेंडर कर दिया.

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यूं हुआ आतंक का अंत

सजा काटने के बाद सिखाने लगा जादू

आत्म समर्पण करने के बाद माधो सिंह को जेल हो गई. मुंगावली की खुली जेल में उसने सजा काटी. सजा पूरी होने के बाद वह लोगों को जादू का खेल सिखाने लगा. 10 अगस्त साल 1991 को लंबी बीमारी के बाद माधो सिंह की मौत हो गई.

ग्वालियर । वो एक फौजी था, कंपाउंडर था और जादूगर भी. उसने करीब 11 साल बीहड़ में बंदूक के दम पर अपनी सरकार चलाई. कहते हैं कि उसकी अंगुलियां राइफल पर जितनी तेज चलती थी, उससे भी तेज उसका दिमाग चलता था. कुछ लोग उसे चंबल का रॉबिनहुड भी कहते थे. वो था डाकू माधो सिंह. उस पर 23 मर्डर और 500 से ज्यादा अपहरण का आरोप था. (madho singh an army man became terror of chambal)

chambal dacoit madho singh story
एक सैनिक क्यों बन गया बागी ?

जन्माष्टमी के दिन हुआ माधव सिंह का जन्म

मध्यप्रदेश में चम्बल की दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के आगरा में बाह तहसील है. यहां बीहड़ से सटा गढ़िया बघरेना गांव है. इसी गांव में किसान पोप सिंह भदोरिया के घर पर एक बच्चे का जन्म हुआ. जन्माष्टमी का दिन था. बच्चे का नाम रखा गया भगवान कृष्ण के नाम पर यानि माधव सिंह. प्यार से लोग उसे माधो-माधो कहने लगे. पोप सिंह की तीसरी संतान माधो सिंह शुरू से ही पढ़ाई लिखाई में अच्छा था. बचपन से ही उसे कुछ बड़ा करने का जुनून था.

सेना में कंपाउंडर का काम किया

1954 में माधो सिंह सेना में हवलदार बन गया. उसकी पोस्टिंग राजपूताना राइफल्स की 17वीं बटालियन में हुई. वो मेडिकल कोर में कंपाउडर का काम करने लगा. यहां माधो सिंह घायल जवानों का इलाज करने लगा.

माधो सिंह के ठाठ बाठ गांव के कुछ लोगों को अखरने लगे

नौकरी लगने के बाद माधो सिंह ठाठ-बाठ में रहने लगा. उसका परिवार भी गांव में धीरे-धीरे संपन्न होने लगा. यही ठाठ-बाठ गांव के कुछ लोगों को अखरने लगा. सेना में नौकरी करते हुए माधो सिंह को 7 साल पूरे हो चुके थे. इसी बीच गांव में उससे जलने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी. इसके साथ ही बढ़ते जा रहे थे उसके और उसके परिवार के खिलाफ षडयंत्र.

झूठे केस में माधो सिंह को हुई जेल

1959 में माधो सिंह लंबी छुट्टी लेकर अपने गांव आया था. इसी दौरान गांव के कुछ लोगों ने पिनाहट थाने में माधो सिंह के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया. इसके चलते माधो सिंह को सेना की नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा. वो घर वापस लौट आया. वापस लौटते ही माधो सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. कुछ दिन वो जेल में रहा.(chambal behad madho singh dacoit )

डॉक्टर के रूप में माधो सिंह बना गरीबों का मसीहा

जेल से बाहर आने के बाद माधो सिंह को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे. माधो सिंह के पास सेना के मेडिकल कोर का अनुभव था. अपने पैतृक गांव के पास ही भदरौली में उसने क्लीनिक खोली . वो गरीबों का फ्री में इलाज करता था. धीरे-धीरे माधो सिंह यहां भी गरीबों का मसीहा बनता जा रहा था. दुश्मनों को यह भी रास नहीं आ रहा था. वो किसी ना किसी बहाने से उससे उलझते रहते. उसके खिलाफ चोरी का मामला दर्ज करवा दिया.

chambal dacoit madho singh story
दबंगों ने जीने नहीं दिया

माधो सिंह पर गांव के दबंगों ने किया अत्याचार

उसके पास इलाज करवाने चोरी छिपे डाकू मोहर सिंह भी आता था. लेकिन माधो सिंह उसे पहचान नहीं सका. डाकू मोहर सिंह को पता चला कि गांव के कुछ लोग माधो सिंह को परेशान करते हैं. उसके कहने पर माधो सिंह को न्याय दिलाने के लिए गांव में पंचायत हुई. पंचायत में ही उसके दुश्मनों ने माधो सिंह के पक्ष के एक व्यक्ति पर हमला कर दिया. लेकिन पुलिस ने इस मामले में माधो और घायल व्यक्ति को ही मुजरिम बना दिया.

बदले की आग में माधो सिंह पहुंच गया बीहड़

बढ़ते अत्याचार और बेईमान पुलिस के कारण माधो सिंह ने चंबल में उतरने के लिए मन बना लिया. वो अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए डाकू बन गया. जब इसकी जानकारी डकैत मोहर सिंह तोमर को लगी तो माधो सिंह को उसने अपने पास बुला लिया.

chambal dacoit madho singh story
बदले की आग में पहुंच गया बीहड़

दुश्मनों की बिछा दी लाशें

चंबल के बीहड़ में पहुंचने के बाद डकैत माधो सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक रात वो अपने गांव में पहुंचा . उसने अपने तीन दुश्मनों को गोलियों से भून दिया. गांव में एक साथ तीन लोगों की हत्या के बाद सन्नाटा छा गया. पुलिस भी सकते में आ गई. ठीक इसके डेढ़ साल बाद ही माधो सिंह ने गांव में घुसकर फिर से चार दुश्मनों को गोलियों से छलनी करके अपना हिसाब किताब बराबर कर लिया.चंबल में अब माधो सिंह का सिक्का चलने लगा.

chambal dacoit madho singh story
चंबल में माधो सिंह की दहशत बढ़ने लगी

साथी मारा गया, माधो सिंह का गिरोह बढ़ता गया

1965 में माधो सिंह ने अपने साथी और चंबल का एक और खूंखार डकैत मोहर सिंह को खो दिया था. कुछ दिनों तक वो शांत रहा. वो अब पुलिस मुठभेड़ में घायल डाकुओं का इलाज करने लगा. इससे उसके कई विरोधी भी उसके मुरीद हो गए. डाकुओं के कई गिरोह माधो सिंह के साथ जुड़ गया. धीरे-धीरे माधो सिंह चंबल का सबसे खूंखार डाकू बन गया. माधो सिंह की गैंग में 80 से 90 खूंखार डाकू आ चुके थे. माधो सिंह की रणनीति,सटीक निशानेबाजी और अच्छे व्यवहार से खुश होकर चंबल घाटी के एक और खूंखार डाकू जग्गा सिंह ने खुश होकर उसे इनाम में राइफल तोहफे में दी. इसके बाद माधो सिंह ने करीब दर्जनभर हत्याएं और उसके बाद सैकड़ों अपहरण किए.

chambal dacoit madho singh story
11 साल चंबल में रही माधो सिंह की सरकार

माधो सिंह बन गया खौफ का दूसरा नाम

उस दौरान माधो सिंह की गैंग के पास 12 रायफल,15 स्टेनगन और विदेशी माउजर थे. कहा जाता है कि डाकू माधो सिंह ऐसा इकलौता डाकू था जिसकी उंगलियां राइफल पर जितनी तेज चलती थी, उससे भी तेज उसका दिमाग चलता था. इस कारण माधो सिंह के पास जाने से पुलिस खौफ खाती थी. (robin hood of chambal madho singh dacoit)

1971 में माधो सिंह के 13 साथी मारे गए

कई बार राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की पुलिस से उसकी मुठभेड़ हुई, लेकिन पुलिस को हर बार मुंह की खानी पड़ी. लेकिन साल 1971 में पुलिस ने माधो सिंह की गैंग के सबसे बड़े भरोसेमंद कल्ला, बाबू, चिंतामण बाबू सहित 13 डकैतों को मार गिराया. लेकिन माधो सिंह अभी भी पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस ने उस पर इनाम बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपए कर दिया.

11 साल तक आतंक मचाने के बाद बदला मन

11 साल तक चंबल में खुद की सरकार चलाने वाले खूंखार डकैत माधो सिंह पर 23 हत्याएं, 500 से ज्यादा अपहरण का आरोप थे. वो भी अब बीहड़ की जिंदगी से ऊब चुका था. साल 1970 में माधो सिंह ने बीहड़ छोड़ने का फैसला किया. उसने अपने एक खास व्यक्ति के जरिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण से बात की. 14 और 16 अप्रैल साल 1972 को माधो सिंह ने मुरैना जिले की जोरा में गांधी आश्रम में गांधी प्रतिमा के सामने हथियार डाल दिए. उसके साथ 521 डाकुओं ने भी सरेंडर कर दिया.

chambal dacoit madho singh story
यूं हुआ आतंक का अंत

सजा काटने के बाद सिखाने लगा जादू

आत्म समर्पण करने के बाद माधो सिंह को जेल हो गई. मुंगावली की खुली जेल में उसने सजा काटी. सजा पूरी होने के बाद वह लोगों को जादू का खेल सिखाने लगा. 10 अगस्त साल 1991 को लंबी बीमारी के बाद माधो सिंह की मौत हो गई.

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