ग्वालियर। भाद्रपद की अमावस्या की शुरुआत हो चुकी है. 26 शुक्रवार और 27 अगस्त को भाद्रपद की अमावस्या का इन दोनों दिनों में विशेष महत्व है. यही वजह है कि दोनों दिन शनि मंदिरों पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखने को मिलेगी. शनिचरी अमावस्या पर हम आपको ऐसे शनि मंदिर के बारे में बताएंगे जो त्रेता कालीन मंदिर है, और मान्यता है कि प्रभु हनुमान ने लंका से जब शनि देव को फेंका था तो शनिदेव इसी पर्वत पर आकर गिरे थे. तभी से यहां शनि धाम की स्थापना की गई. जिसकी महिमा पूरे विश्व में है. (Bhadrapada Amavasya 2022) (Shani Amavasya Daan)
मुरैना में ऐंती पर्वत पर स्थित है शनि मंदिर: मुरैना जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर ग्राम ऐंती के पर्वत पर भगवान शनिदेव का त्रेताकालीन मंदिर स्थित है. मंदिर की प्राचीनता इसकी गवाह है. मंदिर में दो फुट ऊंची भगवान शनिदेव की प्रतिमा है. इस प्रतिमा के विषय में बताया जाता है कि यह प्रतिमा त्रेतायुगीन है. मंदिर के बाहर लगे शिलालेख और पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में रावण ने शनिदेव को बंधक बना लिया था, उस समय जब हनुमानजी लंका दहन करने के लिए वहां पहुंचे थे, तब उन्होंने शनि को वहां देखा और शनि की आज्ञानुसार उन्हें वहां से मुक्त कराकर लंका से बहुत दूर फेंका था. मान्यता है कि शनिदेव इसी ऐंती पर्वत पर आकर गिरे थे. तभी से यह मंदिर बना हुआ है. 1982 में पुरातत्व विभाग की सर्वे टीम ने यह पाया था कि यह मंदिर ईसा से 600 साल पहले का है. कहा तो यह भी जाता है संवत 1734 में महादजी सिंधिया मुरैना के इसी मंदिर में रखी एक सिला का एक हिस्सा अपने साथ अहमद नगर ले गए थे. बाद में यह सिला एक किसान को गंगा नदी में मिली थी, जिसे उसने तकरीबन 100 साल पहले सिंगणापुर में स्थापित किया था. (Shani Dev Puja)
कैसे हुआ मंदिर का निर्माण: शनि पर्वत पर शनिदेव की प्रतिमा की स्थापना चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने कराई थी. भगवान शनि देव की प्रतिमा के सामने ही हनुमान की प्रतिमा भी स्थापित कराई गई थी. यह दोनों प्रतिमाएं विश्व में इकलौती और दुर्लभ मानी जाती हैं. इस मंदिर का जीर्णाद्धार विक्रम समवद्ध 1806 में तत्कालीन महाराज सिंधिया के मामा दौलतराव सिंधिया ने कराया था. ऐंती पर्वत उनकी जागीर के अंतर्गत आता था. मंदिर निर्माण के दौरान दौलतराव सिंधिया ऐंती और आसपास के गांव से शासकीय खजाने को होने वाली कमाई की पूरी राशि शनि मंदिर के निर्माण और देखरेख पर खर्च करते थे. वर्तमान में मंदिर एमपी सरकार की संपत्ति होकर औकाफ के अधीन है. मंदिर कमेटी के अध्यक्ष जिला कलेक्टर हैं. (Shanishchari Amavasya Upay)
शिंगणापुर में स्थापित शनि शिला यहीं से गई थी: महाराष्ट्र के शिंगणापुर में भी प्रसिद्ध शनि मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि शिंगणापुर में प्रतिष्ठित शनि शिला भी सन 1817 के लगभग इसी ऐंती ग्राम स्थित शनि पर्वत से ले जाई गई थी. जो वहां खुले आकाश में विशाल चबूतरे पर स्थापित है. कहा जाता है कि शिंगणापुर में स्थापित शनि शिला का आधा हिस्सा आज भी मुरैना स्थित ऐंति पर्वत के शनि मंदिर पर है. लाखों श्रदालु यहां शनि देव के दर्शन करने के साथ ही शनि शिला के भी दर्शन करते हैं.
कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न: मुरैना के इस शनि मंदिर में प्रत्येक शनिश्चरी अमावस्या को विशाल मेला आयोजित किया जाता है. इसमें देश के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश के श्रद्धालुओं सहित श्रीलंका, वर्मा, तिब्बत, नेपाल जैसे देशों से सैकडों श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं. अधिकांश शनिश्चरी अमावस्या पर देश, विदेश के लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं. शनि भगवान को काली वस्तुएं प्रिय है. इसलिए श्रद्धालु अपने बाल, पुराने वस्त्र, पुराने जूते का दान करते हैं. भगवान शनि को लोहा, उडद की दाल, काले तिल भी चढ़ाए जाते हैं. शनिदेव का अभिषेक सरसों के तेल से किया जाता है. भगवान शनि को तेल प्रिय है. इसकी भी एक कथा प्रचलित है. भगवान शनि का समय दोपहर बाद का होने के कारण श्रद्धालु शाम से देर रात तक दर्शन और अभिषेक करते हैं. मुरैना के इस मंदिर की प्रसिद्धि देश, विदेश तक पहुंच गए हैं.