छिंदवाड़ा। मौसम का अनुमान लगाने के लिए भले ही आधुनिक तरीके आ गए हों, लेकिन कई बार ये सटीक नहीं बैठते. आज भी ऐसा तरीका है, जहां किसान अक्षय तृतीया के दिन ही पता लगा लेते हैं कि मौसमी बारिश कितनी होगी और उनकी फसल कैसी होगी. जानिए क्या है देशी जलवायु परीक्षण स्कीम.
मिट्टी के ढ़ेलों से बारिश का अनुमान: किसान मिट्टी के ढ़ेले गीले होने के आधार पर किस महीने में कितनी बारिश होगी, पता लगाते हैं. मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान बारह धरती माता को ऊपर ले कर आए थे. इसी शुभ दिन के मौके पर किसान आने वाले 4 महीनों में बारिश का अंदाजा लगाते हैं, ताकि पता चल सके कि उनकी फसल कैसी होगी. अक्षय तृतीया के दिन किसान मिट्टी की चार ढ़ेले (क्यूब) अपने खेतों से लाते हैं और सभी मिट्टी के ढेलों का महीनों के हिसाब से नामकरण करते हैं. जिसमें आषाढ़, सावन, भादो और क्वार का महीना होता है.
ठंडा पानी पीकर होती है खेती की शुरुआत: मिट्टी की ढ़ेलों के ऊपर नए घड़े में पानी भरकर पूजा करते हैं. आषाढ़ से ही बारिश का सीजन माना जाता है, स्थानीय लोगों का मानना है कि इन 4 महीनों के ढ़ेलों में जो ढ़ेला सबसे ज्यादा गीला होता है, उस हिसाब से इस महीने में कितनी बारिश होगी इस सटीक अनुमान होता है. इसी के हिसाब से किसान फिर अपनी फसलों की तैयारी करते हैं. आज भी ग्रामीण इलाकों में मान्यता है कि अक्षय तृतीया तक नए घड़े का पानी नहीं पीना चाहिए. इसी दिन नए घड़े की पूजा कर उसका पानी पीना शुरू किया जाता है, इस वजह से गांव में मौसमी बीमारियों का डर भी नहीं रहता. अक्षय तृतीया की पूजन के बाद किसान अपने खेतों की बारिश के सीजन के लिए तैयारियां शुरु कर देते हैं.
गागर, पलाश और आम के पत्ते की होती है पूजा: अक्षय तृतीया के दिन ही रंगोली से सजे घड़े, जिसे गागर कहा जाता है, उसमें पानी भरा जाता है. सनातन धर्म में मान्यता है कि आम के पत्तों से पूजा की जानी चाहिए. इसलिए आम के पत्ते, पलाश के पत्ते सहित आम का पन्ना और महिलाओं के द्वारा हाथों से बनाई गई आटे की सेवइयां से इस दिन भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर किसान अपनी फसलों की तैयारी में जुट जाते हैं.