भोपाल। कोरोना काल में जहां लोग एक दूसरे से मिलने और एक दूसरे की मदद करने में कतरा रहे थे, उस समय आशा कार्यकर्ताओं ने जरुरतमंदों की मदद की. मध्यप्रदेश की दो आशा कार्यकर्ताओं के समर्पण और यूनीक आइडिया की दुनिया आज कायल है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO Honor MP ASHA Workers) को भारत में चल रहा आशा कार्यकर्ता प्रोग्राम पसंद आया. इसके बाद देश के हर राज्य से दाे आशा कार्यकर्ताओं को सम्मानित करने का फैसला किया गया. हाल में डब्ल्यूएचओ (WHO के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेब्रेयेसस ने इसकी घोषणा की. इनके लिए मध्यप्रदेश से भी दो आशा कार्यकर्ताओं को चुना गया है. भोपाल के बैरसिया तहसील के नलखेड़ा गांव की एक आशा कार्यकर्ता और दूसरी बड़वानी की दिव्यांग आशा को डब्ल्यूएचओ सम्मानित करेगा.
आशा कार्यकर्ताओं को जल्द मिलेगा सम्मान: मध्यप्रदेश की दो आशा कार्यकर्ताओं को अब दुनियाभर में पहचान मिलेगी. सम्मानित होने वाली आशा अर्चना कुशवाहा और आशा भगवती यादव आज काफी खुश है, उन्हे हजारों के बीच से चुना गया. दोनों आशा कार्यकर्ताओं ने विपरीत परिस्थितियों में समर्पण, सेवाभाव और यूनीक आइडिया से डब्ल्यूएचओ का दिल जीत लिया. ये पुरस्कार वैश्विक स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने, क्षेत्रीय स्वास्थ्य मुद्दों के लिए नेतृत्व और प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करने के लिए दिए जा रहे हैं. केंद्र सरकार की ओर से इसकी लिस्ट भी जारी कर दी गई है. (WHO Global Leaders Award) (barwani divyang asha wins global award)
मैं नलखेड़ा गांव में आशा कार्यकर्ता हूं. मैं साल 2020 में इस कार्यक्रम से जुड़ी. मैंने कोरोना संकट के दौरान अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाई. इस दौरान लोगों को कोरोना से बचाने के लिए नारे भी खुद ही गढ़े. इसके बाद गांव की दीवार पर मैंने लिखा भी की वैक्सीनेशन शुरू हो गया है जाकर लगवा लें. गांव के बुजुर्ग टीका लगवाने को तैयार नहीं हो रहे थे, इसलिए मैंने दीवार पर लिखकर सभी को जागरुक किया. मैंने दिपावली के पहले गांव में 60 साल से अधिक उम्र की बुजुर्ग महिलाओं को एक-एक साड़ी और 10-10 दीपक उपहार में दिए. साथ ही वैक्सीनेशन का महत्व बताते हुए उनसे लगवाने की अपील भी की. इससे गांव के लोग टीका लगवाने के लिए तैयार हो गए. मेरे काम की तारीफ कलेक्टर से लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अफसर कर चुके हैं.
- अर्चना कुशवाहा, आशा कार्यकर्ता
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दिव्यांग होने से पति ने दिया तलाक: भगवती यादव बड़वानी की हैं और एक हाथ से अपना पूरा काम करती हैं. यही बात डब्ल्यूएचओ (WHO Honor MP ASHA Workers) को इतनी पसंद आई कि सम्मानित किए जाने के लिए उन्हे विशेष तौर पर बुलाया गया है. भगवती बचपन से एक हाथ से दिव्यांग हैं. पति ने इसका गलत फायदा उठाया. उनका पति उन्हें पीटता था, एक हाथ न होने का ताना देकर अत्याचार करता था. उन्होंने बताया कि उनका पति मायके से पैसे लाने को कहता था. बेटा 6 साल का था, तब पति ने तलाक दे दिया. इसके बाद मायके आकर रहने लगी. उन पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं, इसलिए उन्होने अलग से सिलाई का काम शुरू किया. साल 2006 में गांव में आशा की नियुक्ति हुई. उस समय पैसों की जरूरत थी. बताया गया कि आशा बनने से 150 रुपए रोज मिलेंगे, इसलिए वो इस सेवा भाव के काम से जुड़ गई. आज उन्हे एक नई पहचान मिली है और साथ ही सबसे बड़ा स्मान दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य संगठन से.
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