देहरादून: मान्यता है कि देवभूमि उत्तराखंड के पर्वत और नदियां सदियों से मानव सभ्यता को आकर्षित करती रही हैं. यह दार्शनिक और धार्मिक आकर्षण इतना प्रबल है कि यहां के प्राकृतिक और दिव्य सौंदर्य को महसूस करके हर कोई इसका हो जाता है. ऐसी ही कहानी इंदौर के रंगकर्मी और मीडिया कर्मी रहे ओम द्विवेदी की भी है. ओम द्विवेदी नर्मदा परिक्रमा और देवभूमि के दर्शन के बाद अब स्थाई रूप से दार्शनिक एवं धार्मिक तीर्थयात्री बन चुके हैं. वे अब देवभूमि और नर्मदा परिक्रमा के दिव्य दर्शन के महत्व को अब अपने शब्दों में पूरी दुनिया में प्रचारित कर रहे हैं. (Indore Om Dwivedi)
दरअसल, दो दशक तक हिंदी रंगमंच में एकल अभिनय के अलावा मीडिया के क्षेत्र में प्रतिष्ठित पदों पर रहे 51 वर्षीय ओम द्विवेदी को 2 साल पहले संयोगवश नर्मदा से जुड़े साहित्य पढ़ने के साथ नर्मदा परिक्रमा वासियों को करीब से जानने का मौका मिला. वह अपने आप ही उनसे प्रेरित हो गए. इसके बाद उन्होंने भी नर्मदा की पैदल परिक्रमा करने का निर्णय लिया. इसके बाद उन्होंने 5 महीने की कठिन 3600 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा पूरी की. जिसके बाद वे नर्मदा तट के प्राकृतिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन के मुरीद हो गए. इसी दरमियान कुछ साधु-संतों और प्रकृति प्रेमियों से भी उनकी भेंट हुई.
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जिसके बाद उन्होंने उत्तराखंड चार धाम यात्रा के रोमांचक प्रसंग सुने. तब उन्होंने देवभूमि की यात्रा करने का भी संकल्प लिया. इसके बाद उन्होंने अपने परिवार की सहमति से कोविड-19 के बाद उत्तराखंड की चार धाम यात्रा शुरू की. करीब 3 महीने 3 दिन की इस यात्रा में उन्हें देवभूमि उत्तराखंड से जुड़े कई अनजाने क्षेत्रों और रहस्य की पहचान हुई. इसके बाद उन्होंने खुद पैदल चलते हुए ऋषिकेश, यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ बदरीनाथ होते हुए पुनः ऋषिकेश तक यात्रा की. इसी बीच उन्हें पांच केदार, सप्त बदरी और पंच प्रयाग के दर्शन किये.
8 महीने 3 दिन की यात्रा ने बदली जिंदगी: दरअसल, धार्मिक तीर्थ यात्रा के दौरान पैदल चलते हुए जीवन के तमाम खट्टे मीठे अनुभवों के साथ परिक्रमा वासी को अपने जीवन का वह दर्शन भी समझ में आता है. जिसमें उसे महसूस होता है कि सीमित संसाधनों में कैसे प्रकृति प्रदत्त संसाधनों पर निर्भर रहते हुए परिक्रमा के दौरान जीवन गुजारना है. इसके अलावा मार्ग में ईश्वर की बनाई प्रकृति की अनुपम धरोहर के साथ धार्मिक कृतियों और नदियों के तटों पर मौजूद संस्कृतियों और मानव जीवन के अलग-अलग रूपों का धर्म के सत्य से साक्षात्कार भी होता है.
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ओम द्विवेदी मानते हैं कि नर्मदा परिक्रमा के साथ देवभूमि की परिक्रमा भी कुछ ऐसा ही एहसास कराती है. जिसमें मनुष्य मोह माया से विरक्त होकर ईश्वर प्रदत्त व्यवस्था का हिस्सा बनकर धर्म की राह पकड़ लेता है. कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ है. अब स्थिति यह है वह एक यायावरी जीवन जीने के इच्छुक हैं. अपनी भविष्य की योजना को लेकर ओम द्विवेदी बताते हैं कि देवभूमि में सप्त बदरी के दर्शन के बाद द्वारिका और ब्रज धाम की चौरासी कोस की यात्रा चतुर्मास के बाद शुरू होगी. इसके अलावा गिरनार की परिक्रमा करेंगे. ओम द्विवेदी के मुताबिक भगवान पशुपतिनाथ पर जल अर्पित करने के लिए वे काशी या महाकाल से पैदल तीर्थ यात्रा भी शुरू करेंगे भविष्य में भी पैदल चलते हुए वे भारत भ्रमण योजना भी बना रहे हैं.