भोपाल। सुषमा स्वराज के निधन की खबर सुनते ही मध्यप्रदेश में भी शोक की लहर दौड़ गई. हंसमुख, मिलनसार, सादगी भरे स्वभाव वाली सुषमा दीदी, मध्यप्रदेश के लोगों को हमेशा याद रहेगी. सुषमा स्वराज का जितना नाता अपनी जन्म भूमि से था. उतना ही गहरा नाता उनका देश के दिल यानी मध्यप्रदेश से था.
एमपी है वो प्रदेश है जिसने सुषमा स्वराज को उनके राजनीतिक करियर के स्वर्णिम दौर में पहुंचाया. पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की विश्वस्त नेता सुषमा स्वराज 2009 में विदिशा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हुए रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी. विदिशा की जनता ने भी उन्हें सिर आंखों पर बैठाया और बीजेपी की इस दिग्गज महिला नेत्री को 4 लाख से भी ज्यादा वोटों से जिताकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजा. सुषमा स्वराज विदिशा से चुनाव जीतकर लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं.
2014 में भी विदिशा की जनता ने जमकर उन पर अपना प्यार लुटाया. इस बार देश में बीजेपी की सरकार बनी. जिसमें स्वराज को विदेश मंत्री बनाया गया. जिस सीट का प्रतिनिधित्व कभी पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. उसी सीट पर सुषमा स्वराज ने जीत के नए कीर्तिमान रचीं. इस बार स्वास्थ्य खराब होने के चलते सुषमा स्वराज ने विदिशा से चुनाव भले ही न लड़ा हो. लेकिन बीजेपी प्रत्याशी रमाशंकर भार्गव के समर्थन में प्रचार करने जरुर पहुंची. उन्होंने कहा मध्यप्रदेश मेरा घर है. वे चुनाव भले ही नहीं लड़ रहीं लेकिन अपने घर से दूर भी नहीं जा रही हैं.
मध्यप्रदेश के लोग उन्हें सुषमा दीदी के नाम से पुकारते थे. वो जब भी भोपाल आतीं, लोगों से मुलाकात जरुर करती. प्रदेश के पूर्व मुखिया शिवराज सिंह चौहान उन्हें अपनी बहन मानते थे. सादगी भरी सुषमा दीदी के निधन की खबर जैसे ही प्रदेश के लोगों को लगी मध्यप्रदेश में भी शोक की लहर दौड़ गई. क्योंकि वो भारतीय राजनीति एक ऐसा चमकता हुआ सितारा थीं. जिन्होंने अपने सियासी सफर में एक से बढ़कर एक मुकाम हासिल किए हैं.
सुषमा अब एक ऐसे सफर पर निकल चुकी हैं. जहां से शायद ही भी वो कभी वापस लौटें. लेकिन सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति की वो स्तंभ थी. जिन्हें लोग कभी भूल नहीं पाएंगे. मध्यप्रदेश और देश के सियासी इतिहास में सुषमा स्वराज का योगदान हमेशा याद किया जाएगा. आज प्रदेश का हर नागरिक उन्हें अपने श्रृद्धा सुमन अर्पित कर रहा है.