भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में रंग प्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रृंखला 'अभिनयन' में आज जितेन्द्र टटवाल उज्जैन के निर्देशन में माच 'राजा भर्तृहरि' का प्रसारण संग्रहालय के यूट्यूब चैनल पर हुआ. मालवा की पारंपरिक लोकनाट्य शैली (माच) में इस प्रस्तुति को राजा भर्तृहरि के राज-पाठ त्याग कर सन्यासी होने की कहानी को मंच पर प्रस्तुत किया गया है.
राजा भर्तृहरि अपने प्रधानमंत्री से हाल-चाल पूछते हैं. पूछने पर पता चलता है कि उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी है. मनुष्य तो मनुष्या जीव-जंतु भी सुखी हैं. बकरी और शेर एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं. इसके बाद राजा निश्चिन्त होकर शिकार के लिये निकलते हैं. शिकार से लौटने के बाद राजा बहुत उदास हो जाते हैं. रानी द्वारा कारण पूछने पर राजा रानी पिंगला से कहते हैं, जंगल के जीवों के सत्यी को देखकर मैं आश्चार्यचकित और व्याकुल हूं. नाटक में एक भील का प्रवेश होता है, जो राजा से मदद की गुहार लगाता है.
राजा उसकी मदद करने के लिये जंगल की ओर प्रस्थान करते हैं. रास्ते में राजा अपने मंत्री से अपनी उलझन का वास्ती देकर अपनी रानी पिंगला से झूठ बोलने के लिये कहते हैं कि एक पागल शेर ने मुझे मार दिया है. अब महाराज इस दुनिया में नहीं रहे. मंत्री द्वारा रानी को ऐसा कहने पर रानी किले के ऊपर से कूदकर अपनी जान दे देती हैं. उधर जंगल में राजा को एक श्याामवर्ण हिरण अपनी सौ पत्नियों के साथ विचरण करता हुआ दिखाई देता है. जिसका राजा द्वारा वध कर दिया जाता है. अपने पति के मारे जाने के बाद मृगनियां राजा को श्राप देकर सतीज हो जाती हैं. उसी समय राजा को अपनी पत्नि के प्राण त्याागने की सूचना मिलती है. जिसे सुन राजा दुखी हो जाता है और सन्यास धारण कर लेता है. इसी घटना क्रम में राजा की भेंट गुरू गोरखनाथ से होती है. राजा उन्हें पूरा किस्सा सुनाता है. गुरु गोरखनाथ अपने तपोबल से हिरण और राजा की पत्नि पिंगला को जीवन दान दे देते हैं.