भोपाल। हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि के त्योहार का विशेष महत्व होता है. सोमवार से शारदीय नवरात्रि 2022 की शुरुआत हो (Shardiya Navratri 2022) रही है. नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. ऐसे में कौन-कौन से माता के प्रिय भोग हैं, जिन्हें लगाकर जातक उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं, इसके बारे में पंडित विष्णु राजोरिया से जानिए. इनके अनुसार 9 दिन माता को अलग-अलग भोग लगाए जाते हैं. पहला दिन शैलपुत्री का होता है तो आइए जानते हैं क्या है माता शैलपुत्री का प्रिय भोग.
क्या है शैलपुत्री के पीछे की कहानी: शारदीय नवरात्र के 9 दिन तक भक्त माता की उपासना में लीन रहेंगे. 9 दिनों तक अलग-अलग रूपों में माता की पूजा और अर्चना की जाएगी. ऐसे में पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा होती है. पर्वतराज हिमालय के घर में जन्मी माता शैलपुत्री प्रथम देवी है. मान्यता है कि भगवान शिव और सती का जब विवाह हुआ था तब दक्ष प्रजापति ने अपने घर पर एक यज्ञ रखा था. लेकिन इसमें शिव जी को आमंत्रित नहीं किया. ऐसे में माता सती उस यज्ञ में जाने के लिए विचलित होती रही और शिव से जाकर पिता के घर यज्ञ में जाने की बात कही. लेकिन महादेव ने कहा कि किसी के यहां से जब तक निमंत्रण नहीं आता तब तक उस जगह पर नहीं जाना चाहिए. बावजूद इसके सती शिवजी की बात को नजरअंदाज करते हुए, यह कहते हुए यज्ञ में जाने के लिए हिमालय की ओर निकल गई कि पिता के घर बेटी बिना बुलाए भी जा सकती है. लेकिन जब वह दक्ष प्रजापति के यहां पहुंची तो वहां किसी ने उनका सत्कार नहीं किया. यहां तक कि उनकी बहनें भी उनसे बात नहीं कर रहीं थीं. ऐसे में भगवान भोलेनाथ के लिए भी वहां कोई आसान नहीं था. इससे दुखी होकर माता सती क्रोध में आ गई और इस अपमान का दंश नहीं झेल पाई और वहां चल रहे यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी. इसके बाद भगवान शंकर क्रोधित हो गए और पूरे यज्ञ को ही तहस-नहस कर दिया. लेकिन माता सती जब दोबारा जन्म लेकर हिमालय पर्वत के यहां पैदा हुई तो उनका नाम शैलपुत्री हुआ. माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, जिस पर वह सवार होकर आती हैं.
शैलपुत्री को कौन सा भोग है प्रिय: पंडित विष्णु राजोरिया के अनुसार माता दुर्गा को हर रोज अलग-अलग प्रसाद या भोग लगते हैं. ऐसे में अगर जातक अपना शुभ चाहते हैं तो माता को भोग में अवश्य ही यह प्रसाद लगाएं. पहला दिन शैलपुत्री का होता है. माता को पहले दिन ताजा मक्खन और घी का प्रसाद लगाना चाहिए. घी को रोगों से मुक्ति का कारक भी माना जाता है. पंडित विष्णु राजोरिया के अनुसार जो भी ताजा मक्खन या घी को प्रसाद के रूप में माता को अर्पित करता है, इससे उस मनुष्य के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं.
कलश स्थापना का मुहूर्त: शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से लेकर 5 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. इसकी शरुआत प्रतिपदा तिथि को अखंड ज्योति और कलश स्थापना के साथ होती है. 26 सितंबर को सुबह 6 बजकर 28 मिनट से लेकर 8 बजकर 1 मिनट तक कलश स्थापना कर सकेंगे. घटस्थापना के लिए साधकों को पूरा 1 घण्टा 33 मिनट का समय मिलेगा. इस दिन सुबह 11 बजकर 54 मिनट से लेकर 12 बजकर 42 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा. यानी अभिजीत मुहूर्त में भी आपको कलश स्थापित करने के लिए 48 मिनट का समय मिलेगा. जबकि शाम को 4.15 से 5.44 और रात्री में 7.15 से 10.53 तक कलश स्थापित किया जा सकता है.