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Shankaracharya wasiyat Controversy अखाड़ा परिषद के महंत बोले- हम उन्हें शंकराचार्य नहीं मानते ना मानेंगे - अखाड़ा परिषद

ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत का विवाद और गहरा गया है. निरंजनी अखाड़ा परिषद के महंत श्रीरवींद्रपुरी महाराज ने नए शंकराचार्यों की नियुक्ति पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि यह नियुक्तियां परंपरा के मुताबिक और शास्त्र सम्मत नहीं हैं. रवींद्रपुरी ने कहा कि अविमुक्तेश्वरानंद को लेकर कहा कि उनके खिलाफ एक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं. इसलिए यह नियुक्ति उचित नही है. रवींद्रपुरी ने कहा है वे उन्हें शंकराचार्य नहीं मानते और न कभी मानेंगे. Shankaracharya controversy, swaroopanand saraswatis will, swaroopanand wasiyat, avimukteshwaranand

swaroopanand wasiyat
शंकराचार्य वसीयत विवाद
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Published : Sep 24, 2022, 9:25 PM IST

भोपाल। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद की वसीयत का विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है. शुक्रवार को संतों की उपस्थिति में उनकी वसीयत का वाचन किया गया, लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इसे अमान्य ठहराया है. ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की नियुक्ति को 12 दिन बाद अखाड़ा परिषद ने शास्त्रों के विपरीत बताया है. यह विरोध अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्रपुरी महाराज ने दर्ज करवाया है.

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शंकराचार्य वसीयत विवाद

जो हुआ वो परंपरा के मुताबिक: जिसपर अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि हमारे यहां जो भी हुआ है, वह शास्त्र और परंपराओं के मुताबिक ही हुआ है और नियुक्तियां भी विधि सम्मत हैं. शंकराचार्य की वसीयत के मुताबिक उनके दोनों पीठ के उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिए गए हैं. इस मुद्दे पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निजी सचिव रहे सुबोधानंद महाराज का कहना है की वसीयत और शंकराचार्यों की नियुक्ति पर सवाल उठाने वाले लोग नासमझ हैं. उन्हें ना तो शास्त्रों का ज्ञान है और ना ही परंपरा का. जब एक पिता अपने बेटे को उत्तराधिकारी बना सकता है तो फिर एक गुरु अपने शिष्य को क्यों नहीं बना सकता और इसी परंपरा का पालन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने किया है.

संतो के सामने पढ़ी गई स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत, निज सचिव सुबोधानंद बोले- उत्तराधिकारियों पर कोई विवाद नहीं

8 साल पहले ही लिख दी थी वसीयत: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने 8 साल पहले ही अपनी वसीयत लिख दी थी. इस वसीयत के मुताबिक द्वारकाधीश और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति उन्होंने सदानंद सरस्वती महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की कर दी थी. जिसपर विवाद सामने आया है. शुक्रवार को शंकराचार्य की षोड़सी के मौके पर उपस्थित हुए रविंद्रपुरी महाराज ने इन नियुक्तियों पर आपत्ति जताई है.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की आपत्ति: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत श्रीरविंद्रपुरी जी महाराज ने निरंजनी अखाड़े में मीडिया से बात की. जानें किसका क्या कहना है

महंत श्री रविंद्रपुरी जी- 'शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के देहावसान के अगले दिन ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति हुई है, यह गलत है. शंकराचार्य की नियुक्ति जिसने भी की है, उनको ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है.

अविमुक्तेश्वरानंद - देश में सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार है. जहां तक नियुक्ति का सवाल है, तो वह विधि सम्मत है.

महंत श्री रविंद्रपुरी जी - शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का षोडशी भंडारा व दूसरी सनातनी परंपरा अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इसी बीच में नए शंकराचार्यों की नियुक्ति की घोषणा कर दी गई. यह सनातन परंपरांओं के विरुद्ध है.

अविमुक्तेश्वरानंद-हमारे यहां सब शास्त्र सम्मत और परंपराओं के मुताबिक हुआ है.

महंत श्री रविंद्रपुरी जी- 1941 में स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती की नियुक्ति जूना अखाड़ा व अन्य अखाड़ों की अध्यक्षता में हुई थी. शंकराचार्य उसी संन्यासी को बनाया जाएगा जो शंकराचार्य के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने वाला हो. स्वयं कैलाशवासी शंकराचार्य जगतगुरु स्वरूपानंद सरस्वती ने भी यही कहा था.

अविमुक्तेश्वरानंद -शंकराचार्य जी के मठ की जो प्रक्रिया है, वह मठ के लोगों को पता है. अखाड़ों की प्रक्रिया को अखाड़े से जुड़े लोग जानते हैं. ऐसा नहीं होगा कि अखाड़ों की प्रक्रिया ही शंकराचार्य जी के मठ में भी लागू हो.

महंत श्री रविंद्रपुरी जी - संन्यासी अखाड़ों की उपस्थिति में शंकराचार्य की घोषणा होती है.वे जल्दबाजी में की गई शंकराचार्य की नियुक्ति का विरोध करते हैं.

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शंकराचार्य वसीयत विवाद

अविमुक्तेश्वरानंद- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने 8 साल पहले ही अपनी वसीयत लिख दी थी. इस वसीयत के मुताबिक द्वारकाधीश और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति उन्होंने सदानंद सरस्वती महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की कर दी थी. लिहाजा विवाद करने का कोई सवाल खड़ा नहीं होता है जो लोग इस तरह के विवाद खड़े कर रहे हैं वह खुद भी परंपराओं का पालन नहीं करते.

हम उन्हें शंकराचार्य नहीं मानते,न मानेंगे : इस पूरे मामले पर महंत रविंद्र पुरी महाराज ने मीडिया को बताया कि आदि गुरु शंकराचार्य की उपाधि सनातन धर्म और परंपरा की सर्वोच्च उपाधि है. जिस पर विधि विधान के साथ नियुक्ति होती हैं. उन्होंने कहा कि जल्दबाजी में अखाड़ों को बिना विश्वास में लिए स्वयं घोषणा कर दी जाती है, यह उचित नहीं है. रविंद्रपुरी महाराज ने कहा- स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से जुड़ा हुआ उत्तराखंड के जोशी मठ का एक विवाद अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. ऐसे में हम इस नियुक्ति का विरोध करते हैं और उनके साथ नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हम उन्हें शंकराचार्य नहीं मानते हैं और न आगे मानेंगे. उन्होंने किसी भी अखाड़े को अपने पक्ष में नहीं लिया.

भोपाल। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद की वसीयत का विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है. शुक्रवार को संतों की उपस्थिति में उनकी वसीयत का वाचन किया गया, लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इसे अमान्य ठहराया है. ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की नियुक्ति को 12 दिन बाद अखाड़ा परिषद ने शास्त्रों के विपरीत बताया है. यह विरोध अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्रपुरी महाराज ने दर्ज करवाया है.

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शंकराचार्य वसीयत विवाद

जो हुआ वो परंपरा के मुताबिक: जिसपर अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि हमारे यहां जो भी हुआ है, वह शास्त्र और परंपराओं के मुताबिक ही हुआ है और नियुक्तियां भी विधि सम्मत हैं. शंकराचार्य की वसीयत के मुताबिक उनके दोनों पीठ के उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिए गए हैं. इस मुद्दे पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निजी सचिव रहे सुबोधानंद महाराज का कहना है की वसीयत और शंकराचार्यों की नियुक्ति पर सवाल उठाने वाले लोग नासमझ हैं. उन्हें ना तो शास्त्रों का ज्ञान है और ना ही परंपरा का. जब एक पिता अपने बेटे को उत्तराधिकारी बना सकता है तो फिर एक गुरु अपने शिष्य को क्यों नहीं बना सकता और इसी परंपरा का पालन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने किया है.

संतो के सामने पढ़ी गई स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत, निज सचिव सुबोधानंद बोले- उत्तराधिकारियों पर कोई विवाद नहीं

8 साल पहले ही लिख दी थी वसीयत: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने 8 साल पहले ही अपनी वसीयत लिख दी थी. इस वसीयत के मुताबिक द्वारकाधीश और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति उन्होंने सदानंद सरस्वती महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की कर दी थी. जिसपर विवाद सामने आया है. शुक्रवार को शंकराचार्य की षोड़सी के मौके पर उपस्थित हुए रविंद्रपुरी महाराज ने इन नियुक्तियों पर आपत्ति जताई है.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की आपत्ति: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत श्रीरविंद्रपुरी जी महाराज ने निरंजनी अखाड़े में मीडिया से बात की. जानें किसका क्या कहना है

महंत श्री रविंद्रपुरी जी- 'शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के देहावसान के अगले दिन ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति हुई है, यह गलत है. शंकराचार्य की नियुक्ति जिसने भी की है, उनको ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है.

अविमुक्तेश्वरानंद - देश में सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार है. जहां तक नियुक्ति का सवाल है, तो वह विधि सम्मत है.

महंत श्री रविंद्रपुरी जी - शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का षोडशी भंडारा व दूसरी सनातनी परंपरा अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इसी बीच में नए शंकराचार्यों की नियुक्ति की घोषणा कर दी गई. यह सनातन परंपरांओं के विरुद्ध है.

अविमुक्तेश्वरानंद-हमारे यहां सब शास्त्र सम्मत और परंपराओं के मुताबिक हुआ है.

महंत श्री रविंद्रपुरी जी- 1941 में स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती की नियुक्ति जूना अखाड़ा व अन्य अखाड़ों की अध्यक्षता में हुई थी. शंकराचार्य उसी संन्यासी को बनाया जाएगा जो शंकराचार्य के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने वाला हो. स्वयं कैलाशवासी शंकराचार्य जगतगुरु स्वरूपानंद सरस्वती ने भी यही कहा था.

अविमुक्तेश्वरानंद -शंकराचार्य जी के मठ की जो प्रक्रिया है, वह मठ के लोगों को पता है. अखाड़ों की प्रक्रिया को अखाड़े से जुड़े लोग जानते हैं. ऐसा नहीं होगा कि अखाड़ों की प्रक्रिया ही शंकराचार्य जी के मठ में भी लागू हो.

महंत श्री रविंद्रपुरी जी - संन्यासी अखाड़ों की उपस्थिति में शंकराचार्य की घोषणा होती है.वे जल्दबाजी में की गई शंकराचार्य की नियुक्ति का विरोध करते हैं.

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शंकराचार्य वसीयत विवाद

अविमुक्तेश्वरानंद- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने 8 साल पहले ही अपनी वसीयत लिख दी थी. इस वसीयत के मुताबिक द्वारकाधीश और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति उन्होंने सदानंद सरस्वती महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की कर दी थी. लिहाजा विवाद करने का कोई सवाल खड़ा नहीं होता है जो लोग इस तरह के विवाद खड़े कर रहे हैं वह खुद भी परंपराओं का पालन नहीं करते.

हम उन्हें शंकराचार्य नहीं मानते,न मानेंगे : इस पूरे मामले पर महंत रविंद्र पुरी महाराज ने मीडिया को बताया कि आदि गुरु शंकराचार्य की उपाधि सनातन धर्म और परंपरा की सर्वोच्च उपाधि है. जिस पर विधि विधान के साथ नियुक्ति होती हैं. उन्होंने कहा कि जल्दबाजी में अखाड़ों को बिना विश्वास में लिए स्वयं घोषणा कर दी जाती है, यह उचित नहीं है. रविंद्रपुरी महाराज ने कहा- स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से जुड़ा हुआ उत्तराखंड के जोशी मठ का एक विवाद अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. ऐसे में हम इस नियुक्ति का विरोध करते हैं और उनके साथ नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हम उन्हें शंकराचार्य नहीं मानते हैं और न आगे मानेंगे. उन्होंने किसी भी अखाड़े को अपने पक्ष में नहीं लिया.

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