भोपाल। श्रावण मास में महादेव की पूजा का विधान है. देश भर में शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनको श्रद्धा भाव से पूजा जाता है. जिनमें से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर (Mahakaleshwar Jyotirlinga) है, ये मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है. उज्जैन के भगवान महाकालेश्वर (Mahakaleshwar Jyotirlinga) की ख्याति दूर-दूर तक है. इस भव्य ज्योतिर्लिंग की स्थापना पर एक कथा प्रचलित है. कथा इस प्रकार है-
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा (Mahakaleshwar Jyotirlinga Katha)
अवंती नाम से एक रमणीय नगरी था, जो भगवान शिव को बहुत प्रिय था. इसी नगर में एक ज्ञानी ब्राह्मण रहते थे, जो बहुत ही बुद्धिमान और कर्मकांडी ब्राह्मण थे. साथ ही ब्राह्मण शिव के बड़े भक्त थे. वह हर रोज पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी आराधना किया करते थे. ब्राह्मण का नाम वेद प्रिय था, जो हमेशा वेद के ज्ञान अर्जित करने में लगे रहते थे. ब्राह्मण को उसके कर्मों का पूरा फल प्राप्त हुआ था.
रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक का राक्षस रहता था. इस राक्षस को ब्रह्मा जी से एक वरदान मिला था. इसी वरदान के मद में वह धार्मिक व्यक्तियों पर आक्रमण करने लगा था. उसने उज्जैन के ब्राह्मणों पर आक्रमण करने का विचार बना लिया. इसी वजह से उसने अवंती नगर के ब्राह्मणों को अपनी हरकतों से परेशान करना शुरू कर दिया.
उसने ब्राह्मणों को कर्मकांड करने से मना करने लगा. धर्म-कर्म का कार्य रोकने के लिए कहा, लेकिन ब्राह्मणों ने उसकी इस बात को नहीं ध्यान दिया. हालांकि राक्षसों द्वारा उन्हें आए दिन परेशान किया जाने लगा. इससे उबकर ब्राह्मणों ने शिव शंकर से अपने रक्षा के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया.
ब्राह्मणों के विनय पर भगवान शिव ने राक्षस के अत्याचार को रोकने से पहले उन्हें चेतावनी दी. एक दिन राक्षसों ने हमला कर दिया. भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए. नाराज शिव ने अपनी एक हुंकार से ही दूषण राक्षस को भस्म कर दिया. भक्तों की वहीं रूकने की मांग से अभीभूत होकर भगवान वहां विराजमान हो गए. इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ा गया, जिसे हम महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं.
दक्षिणमुखी हैं महाकाल (Dakshinmukhi Mahakal)
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों को दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं. महाकालेश्वर मंदिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में बंटा है. ऊपरी हिस्से में नाग चंद्रेश्वर मंदिर है, नीचे ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे नीचे जाकर महाकाल मुख्य ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजे हैं. यहीं आपको भगवान शिव के साथ ही गणेशजी, कार्तिकेय और माता पार्वती की मूर्तियों के भी दर्शन होते हैं. इसके साथ ही यहां एक कुंड भी है माना जाता है कि इसमें स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं.
महाकाल नाम का रहस्य (Story Behind The Name Mahakal)
ईश्वर तर्क से परे हैं. फिर भी इनसे जुड़े दो तर्क हैं. चूंकि महाकाल में भस्म आरती होती है और ये कहा जाता है कि चिता की राख भस्मस्वरूप शिवलिंग को अर्पित की जाती है इसलिए माना जाता है कि महाकाल का संबंध मृत्यु से है. दूसरे तर्क के अनुसार , काल का मतलब मृत्यु और समय दोनों होते हैं और ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में पूरी दुनिया का मानक समय यहीं से निर्धारित होता था इसलिए इसे महाकालेश्वर नाम दे दिया गया.
महाकाल है इस नगर के राजा, सो यहां किसी और की क्या बिसात? (Why Ministers Don't Want To Stay Here)
पुराने समय से ही कोई अति लोकप्रिय राजनेता, मंत्री या राजा यहां पर रात में ठहरना अपने करियर के लिए ठीक नहीं समझते. समय के साथ ऐसे कई उदाहरण भी मिलते हैं जहां एक रात का ठहराव उनके पद पर भारी पड़ गया. माना जाता है कि विक्रमादित्य के समय से ही इस मंदिर के पास और शहर में कोई राजा या मंत्री रात नहीं गुजारता. लंबे समय तक कांग्रेस और फिर भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया जो ग्वालियर के राजा भी हैं वो भी आज तक यहां रात को नहीं रुके हैं. इतना ही नहीं, देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी जब मंदिर के दर्शन करने के बाद रात में यहां रुके थे तो उनकी सरकार अगले ही दिन गिर गई थी.
ऐसे ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री वी एस येदियुरप्पा भी जब उज्जैन में रुके थे तो उन्हें कुछ ही दिनों के अंदर इस्तीफा देना पड़ा था. इस रहस्य को कुछ लोग संयोग मानते हैं तो कुछ लोगों के मुताबिक एक लोककथा के अनुसार भगवान महाकाल ही इस शहर के राजा हैं और उनके अलावा कोई और राजा यहां नहीं रह सकता है.