भोपाल | मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2018 के समय अचानक राजनीतिक दलों के लिए चुनौती का सबब बन चुकी सपाक्स पार्टी कुछ ही महीनों के बाद दो भागों में बंटी नजर आने लगी है. दरअसल विधानसभा चुनाव 2018 और लोकसभा चुनाव 2019 में सपाक्स ने जितने भी उम्मीदवार मैदान में उतारे, सभी के सभी पूरी तरह से फेल साबित हुए.
एक समय सामान्य पिछड़ा अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था ( सपाक्स) , सपाक्स समाज ने मध्यप्रदेश में आरक्षण का मुद्दा उठाकर अच्छा खासा समर्थन हासिल किया था. उस समय भारी संख्या में लोगों का जुड़ाव इस संगठन से हो रहा था. लेकिन जैसे ही इसी नाम से राजनीतिक दल की स्थापना की गई . उसके बाद से ही यहां पर उठापटक का दौर शुरू हो गया. आखिरकार सामान्य पिछड़ा अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था (सपाक्स ) ने अपना नाता सपाक्स पार्टी से हमेशा के लिए तोड़ लिया है.
⦁ सपाक्स संस्था के प्रांतीय सचिव भानु तोमर का कहना है कि नाता उनसे तोड़ा जाता है जिससे जुड़ा हो.
⦁ सपाक्स से कोई नाता नहीं समर्थन था- भानु तोमर
⦁ सपाक्स संस्था ने समर्थन राजनीतिक पार्टी सपाक्स से वापस लिया
⦁ ना चुनाव लड़ना चाहते हैं, न ही राजनीतचि में आना है- सपाक्स समाज
⦁ जिन लोगों को सपाक्स पार्टी में पद दिया गया था उन्होंने भी पद से दिया इस्तीफा
सपाक्स संस्था और सपाक्स पार्टी में लोकसभा चुनाव के दौरान ही खटपट शुरू हो गई थी. क्योंकि समाज से जुड़े हुए लोग किसी भी रूप में राजनीति नहीं करना चाहते थे. लेकिन जिस प्रकार से सपाक्स समाज का नाम राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, उसे लेकर संस्था के लोग नाराज थे और धीरे-धीरे संस्था से जुड़े हुए सभी पदाधिकारियों ने सपाक्स पार्टी से अपना रिश्ता हमेशा के लिए खत्म कर दिया.