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12 साल में कानून बना, नियम अब भी अटके, आखिर कैसे रुकेगी निजी स्कूलों की मनमानी

देशभर में कोरोना के चलते स्कूल बंद है. लेकिन कोरोनाकाल में निजी स्कूलों की मनमानियों की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. छात्रों के अभिभावकों से जबरन फीस वसूली की जा रही है. बावजूद इसके प्रदेश सरकार प्राइवेट स्कूलों पर कोई प्रभावी कार्रवाई ही नहीं कर रही.

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भोपाल न्यूज
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Published : Sep 8, 2020, 7:59 PM IST

भोपाल। कोरोना संक्रमण के दौरान प्राइवेट स्कूलों की मनमानियां जमकर सामने आई हैं, लेकिन इसके बाद भी प्रदेश सरकार प्राइवेट स्कूलों पर कोई प्रभावी कार्रवाई ही नहीं कर सकी. यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है क्योंकि निजी स्कूलों पर नियंत्रण के लिए सरकार ने कानून तो बना लिया, लेकिन इसके नियम लगभग दो साल बाद भी नहीं बन पाए. स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा पूर्व में तैयार किए गए नियमों में एक बार फिर संशोधन कर उन्हें विधि विभाग को मंजूरी के लिए भेजा गया है. लेकिन इन नियमों को अब तक विधि विभाग की तरफ से मंजूरी नहीं मिली है.

कब थमेगी निजी स्कूलों की मनमानी

12 सालों में बन पाया सिर्फ कानून

मध्यप्रदेश में निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वसूली जाने और बच्चों के अभिभावकों को परेशान किए जाने की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2008 में कानून बनाने की घोषणा की थी. घोषणा पर अमल नहीं हुआ तो वर्ष 2012 में नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शन मंच ने मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने 2 जनवरी 2013 को स्कूल शिक्षा विभाग को नोटिस भेज कर सरकार का पक्ष पूछा. जवाब में कहा गया कि हम नियम बना रहे हैं. 12 अप्रैल 2014 को एक बार फिर हाईकोर्ट ने सरकार को तीन माह का वक्त दिया. समय सीमा में कार्यवाही नहीं हुई तो हाईकोर्ट ने विभाग की प्रमुख सचिव को फिर नोटिस जारी किया.

आखिरकार 2015 में स्कूल शिक्षा विभाग के तत्कालीन राज्यमंत्री दीपक जोशी ने कमेटी गठित करने की घोषणा की और फीस नियंत्रण की गाइडलाइन जारी कर दी गई. लेकिन कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मार्च 2016 में सरकार ने इस पर कानून बनाने के लिए हाई पावर कमेटी गठित की. पांच दिसंबर 2017 को मध्यप्रदेश निजी विद्यालय फीस विधेयक 2017 विधानसभा में पारित हुआ 28 फरवरी 2018 को सरकार ने इसे कानून के रुप में लागू किया. कानून तो बन गया लेकिन इसके नियम नहीं बन सके. जबकि 28 सितंबर 2019 को जबलपुर हाईकोर्ट ने नियम बनाने के लिए सरकार को 4 हफ्ते का मौका दिया था.

नियम बनकर तैयारः स्कूल शिक्षा मंत्री

जब इस मामले में प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि नियम के प्रस्ताव में कुछ संशोधन किया गया है और इसके बाद अनुमोदन के लिए विधि विभाग भेजा गया है. विधि विभाग की स्वीकृति मिलने के बाद जल्द ही इसे लागू किया जाएगा. जबकि इन नियमों के अटकने का एक कारण कांग्रेस सरकार रही. क्योंकि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इन नियमों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया. अब हम जल्द ही इन नियमों को लागू करेंगे.

प्राईवेट स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए बनाए गए प्रावधान

  • फीस बढ़ाने के लिए स्कूल को आमदनी और खर्च दिखाने होंगे
  • प्राइवेट स्कूल किसी खास दुकान से सिलेबस और स्कूल की सामग्री खरीदने के लिए पेरेंट्स पर दबाव नहीं डाल सकते
  • सहायक संचालक स्तर के अधिकारी निजी स्कूलों का औचक निरीक्षण करेंगे
  • प्राइवेट स्कूल हर साल 10 प्रतिशत से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकते
  • ज्यादा फीस वसूले जाने की शिकायत पर स्कूल प्रबंधन पर 2 लाख तक का जुर्माना और कानूनी कार्रवाई होगी.
  • दूसरी बार शिकायत मिलने पर जुर्माने की राशि दोगुनी होगी

भोपाल। कोरोना संक्रमण के दौरान प्राइवेट स्कूलों की मनमानियां जमकर सामने आई हैं, लेकिन इसके बाद भी प्रदेश सरकार प्राइवेट स्कूलों पर कोई प्रभावी कार्रवाई ही नहीं कर सकी. यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है क्योंकि निजी स्कूलों पर नियंत्रण के लिए सरकार ने कानून तो बना लिया, लेकिन इसके नियम लगभग दो साल बाद भी नहीं बन पाए. स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा पूर्व में तैयार किए गए नियमों में एक बार फिर संशोधन कर उन्हें विधि विभाग को मंजूरी के लिए भेजा गया है. लेकिन इन नियमों को अब तक विधि विभाग की तरफ से मंजूरी नहीं मिली है.

कब थमेगी निजी स्कूलों की मनमानी

12 सालों में बन पाया सिर्फ कानून

मध्यप्रदेश में निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वसूली जाने और बच्चों के अभिभावकों को परेशान किए जाने की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2008 में कानून बनाने की घोषणा की थी. घोषणा पर अमल नहीं हुआ तो वर्ष 2012 में नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शन मंच ने मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने 2 जनवरी 2013 को स्कूल शिक्षा विभाग को नोटिस भेज कर सरकार का पक्ष पूछा. जवाब में कहा गया कि हम नियम बना रहे हैं. 12 अप्रैल 2014 को एक बार फिर हाईकोर्ट ने सरकार को तीन माह का वक्त दिया. समय सीमा में कार्यवाही नहीं हुई तो हाईकोर्ट ने विभाग की प्रमुख सचिव को फिर नोटिस जारी किया.

आखिरकार 2015 में स्कूल शिक्षा विभाग के तत्कालीन राज्यमंत्री दीपक जोशी ने कमेटी गठित करने की घोषणा की और फीस नियंत्रण की गाइडलाइन जारी कर दी गई. लेकिन कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मार्च 2016 में सरकार ने इस पर कानून बनाने के लिए हाई पावर कमेटी गठित की. पांच दिसंबर 2017 को मध्यप्रदेश निजी विद्यालय फीस विधेयक 2017 विधानसभा में पारित हुआ 28 फरवरी 2018 को सरकार ने इसे कानून के रुप में लागू किया. कानून तो बन गया लेकिन इसके नियम नहीं बन सके. जबकि 28 सितंबर 2019 को जबलपुर हाईकोर्ट ने नियम बनाने के लिए सरकार को 4 हफ्ते का मौका दिया था.

नियम बनकर तैयारः स्कूल शिक्षा मंत्री

जब इस मामले में प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि नियम के प्रस्ताव में कुछ संशोधन किया गया है और इसके बाद अनुमोदन के लिए विधि विभाग भेजा गया है. विधि विभाग की स्वीकृति मिलने के बाद जल्द ही इसे लागू किया जाएगा. जबकि इन नियमों के अटकने का एक कारण कांग्रेस सरकार रही. क्योंकि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इन नियमों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया. अब हम जल्द ही इन नियमों को लागू करेंगे.

प्राईवेट स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए बनाए गए प्रावधान

  • फीस बढ़ाने के लिए स्कूल को आमदनी और खर्च दिखाने होंगे
  • प्राइवेट स्कूल किसी खास दुकान से सिलेबस और स्कूल की सामग्री खरीदने के लिए पेरेंट्स पर दबाव नहीं डाल सकते
  • सहायक संचालक स्तर के अधिकारी निजी स्कूलों का औचक निरीक्षण करेंगे
  • प्राइवेट स्कूल हर साल 10 प्रतिशत से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकते
  • ज्यादा फीस वसूले जाने की शिकायत पर स्कूल प्रबंधन पर 2 लाख तक का जुर्माना और कानूनी कार्रवाई होगी.
  • दूसरी बार शिकायत मिलने पर जुर्माने की राशि दोगुनी होगी
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