ETV Bharat / city

मरने से पहले रावण ने लक्ष्मण को दी थी ये 3 सीख, आज भी कारगर है ये बातें - विद्वान रावण

ऋषि और राक्षसी माता-पिता की संतान रावण महाप्रतापी, महातेजस्वी, पराक्रमी तथा विद्वान होने के बावजूद भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, हिंसा जैसे अवगुणों ने रावण से स्वयं और उसके कुल का नाश करवा दिया. महर्षि वाल्मीकि रावण के गुणों को स्वीकारते हुए उसे चारो वेदों का महान ज्ञाता और विद्वान बताते हैं. रावण के दरबार में उसको देखते ही हनुमान जी मुग्ध हो जाते हैं.

great ravana
विद्वान रावण
author img

By

Published : Oct 15, 2021, 4:31 PM IST

हैदराबाद। हम जानते हैं कि रावण अहंकारी, बुरा और दुराचारी असुर सम्राट था. भले ही रावण कितना ही राक्षसी प्रवृत्ति का क्यों न रहा हो, पर उसके गुणों को अनदेखा नहीं किया जा सकता. ऐसा माना जाता है कि रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था, वह महाप्रतापी, महातेजस्वी, पराक्रमी तथा विद्वान था. ज्ञान का अथाह भंडार था, रावण और उसके जैसा विद्वान पंडित इतिहास में न कभी हुआ था और शायद ही कभी होगा. रावण के माता-पिता भी अपने-अपने कुल और सामाजिक परिवेश में एक विशिष्ट स्थान रखते थे.

सारस्वत ब्राह्मण पुलत्स्य ऋषि का पौत्र था रावण, राक्षसी माता कैकसी और ऋषि विश्रवा की संतान रावण ने अपनी छाप विभिन्न हर क्षेत्र में छोड़ी. ऋषि और राक्षसी माता-पिता की संतान होने कारण दो परस्पर विरोधी तत्वों ने रावण के मन-मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डाला, इसलिए महाप्रतापी, महातेजस्वी, पराक्रमी तथा विद्वान होने के बावजूद भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, हिंसा जैसे अवगुणों ने रावण से स्वयं और उसके कुल का नाश करवा दिया. राम जी ने लक्ष्मण को रावण के पास नीति ज्ञान ग्रहण करने के लिए भेजा था.

महर्षि वाल्मीकि रावण के गुणों को स्वीकारते हुए उसे चारो वेदों का महान ज्ञाता और विद्वान बताते हैं, जब हनुमान जी रावण के दरबार में प्रवेश करते हैं, तब के बारे में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है कि...

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।

अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥

रावण को देखते ही हनुमान जी मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि 'रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षण युक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता'

सब ने अकबर के नवरत्नों के बारे में सुन रखा है, जिनमें उस काल के सभी श्रेष्ठ विद्वान लोग थे. इस तरह की परंपरा की नींव रावण ने ही रखी थी, रावण के दरबार में सभी बुद्धिजीवी, कुशल कारीगर, श्रेष्ठजन थे, रावण ने उनको अपने आश्रय में रखा था. रावण ने स्वयं सीता को अपना जो परिचय दिया था, वह उसके ज्ञान, श्रेष्‍ठता, पराक्रम का बखान था.

श्रेष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक सुषेण, कुशल संगीतज्ञ, गुप्‍तचर, श्रेष्ठ परामर्शदाताओं को रावण ने अपने साथ रखा था. अपने तपोबल के जरिए उसने बहुत सारी शक्तियां अर्जित कर ली थी. रावण ने जादू, इंद्रजाल, सम्मोहन, तंत्र-मंत्र और न जाने कितने प्रकार के ग्रंथों की रचना की थी.

रावण कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुविद और रणनीतिकार तथा कई विद्याओं का जानकार था. शिव तांडव स्त्रोत 'जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम...' रावण की ही देन है.

भगवान शिव जब क्रोध में होते हैं तब तांडव नृत्य करते हैं, परंतु रावण द्वारा रचित सुंदर स्त्रोत का वाचन सुन भगवान शिव ने प्रसन्नता पूर्वक नृत्य किया और यही स्रोत शिव तांडव स्त्रोत कहलाया. भगवान शिव ने रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे चंद्रहास नामक तलवार दी, जो युद्ध के समय हाथ में रहने पर रावण को अजेय बनाती थी.

ये भी पढ़े - एमपी में घट रहा राम का कद! रावण प्रेमियों की बढ़ रही संख्या, दशहरे पर नहीं होता पुतला दहन

रावण की विद्वता और नीति कुशलता को भगवान राम ने स्वयं स्वीकार किया था. राम जी ने भाई लक्ष्मण को रावण के अंतिम समय से पहले उससे कुछ ज्ञान लेने की सलाह दी थी.

रावण द्वारा लक्ष्मण को बताई गई थी ये बातें

रावण ने मरते समय लक्ष्मण को तीन शिक्षाएं दी थी, जिसमें पहली शिक्षा थी कि 'शत्रु और रोग कैसे भी हों, चाहे छोटे से छोटे या कमजोर ही क्यों न हो, लेकिन ये भी मौत के कारण बन सकते हैं'.

लक्ष्मण को रावण ने दूसरी बात बताई थी कि 'अपनी गुप्त बात किसी को भी नहीं बताना चाहिए, चाहे वह कितना ही विश्वासपात्र क्यों न हो.

रावण के द्वारा तीसरी बात बताई गई थी कि शुभ कार्य जल्दी करने का प्रयास करना चाहिए और अशुभ कार्य को जहां तक संभव हो टालना ही चाहिए.

हैदराबाद। हम जानते हैं कि रावण अहंकारी, बुरा और दुराचारी असुर सम्राट था. भले ही रावण कितना ही राक्षसी प्रवृत्ति का क्यों न रहा हो, पर उसके गुणों को अनदेखा नहीं किया जा सकता. ऐसा माना जाता है कि रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था, वह महाप्रतापी, महातेजस्वी, पराक्रमी तथा विद्वान था. ज्ञान का अथाह भंडार था, रावण और उसके जैसा विद्वान पंडित इतिहास में न कभी हुआ था और शायद ही कभी होगा. रावण के माता-पिता भी अपने-अपने कुल और सामाजिक परिवेश में एक विशिष्ट स्थान रखते थे.

सारस्वत ब्राह्मण पुलत्स्य ऋषि का पौत्र था रावण, राक्षसी माता कैकसी और ऋषि विश्रवा की संतान रावण ने अपनी छाप विभिन्न हर क्षेत्र में छोड़ी. ऋषि और राक्षसी माता-पिता की संतान होने कारण दो परस्पर विरोधी तत्वों ने रावण के मन-मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डाला, इसलिए महाप्रतापी, महातेजस्वी, पराक्रमी तथा विद्वान होने के बावजूद भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, हिंसा जैसे अवगुणों ने रावण से स्वयं और उसके कुल का नाश करवा दिया. राम जी ने लक्ष्मण को रावण के पास नीति ज्ञान ग्रहण करने के लिए भेजा था.

महर्षि वाल्मीकि रावण के गुणों को स्वीकारते हुए उसे चारो वेदों का महान ज्ञाता और विद्वान बताते हैं, जब हनुमान जी रावण के दरबार में प्रवेश करते हैं, तब के बारे में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है कि...

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।

अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥

रावण को देखते ही हनुमान जी मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि 'रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षण युक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता'

सब ने अकबर के नवरत्नों के बारे में सुन रखा है, जिनमें उस काल के सभी श्रेष्ठ विद्वान लोग थे. इस तरह की परंपरा की नींव रावण ने ही रखी थी, रावण के दरबार में सभी बुद्धिजीवी, कुशल कारीगर, श्रेष्ठजन थे, रावण ने उनको अपने आश्रय में रखा था. रावण ने स्वयं सीता को अपना जो परिचय दिया था, वह उसके ज्ञान, श्रेष्‍ठता, पराक्रम का बखान था.

श्रेष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक सुषेण, कुशल संगीतज्ञ, गुप्‍तचर, श्रेष्ठ परामर्शदाताओं को रावण ने अपने साथ रखा था. अपने तपोबल के जरिए उसने बहुत सारी शक्तियां अर्जित कर ली थी. रावण ने जादू, इंद्रजाल, सम्मोहन, तंत्र-मंत्र और न जाने कितने प्रकार के ग्रंथों की रचना की थी.

रावण कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुविद और रणनीतिकार तथा कई विद्याओं का जानकार था. शिव तांडव स्त्रोत 'जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम...' रावण की ही देन है.

भगवान शिव जब क्रोध में होते हैं तब तांडव नृत्य करते हैं, परंतु रावण द्वारा रचित सुंदर स्त्रोत का वाचन सुन भगवान शिव ने प्रसन्नता पूर्वक नृत्य किया और यही स्रोत शिव तांडव स्त्रोत कहलाया. भगवान शिव ने रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे चंद्रहास नामक तलवार दी, जो युद्ध के समय हाथ में रहने पर रावण को अजेय बनाती थी.

ये भी पढ़े - एमपी में घट रहा राम का कद! रावण प्रेमियों की बढ़ रही संख्या, दशहरे पर नहीं होता पुतला दहन

रावण की विद्वता और नीति कुशलता को भगवान राम ने स्वयं स्वीकार किया था. राम जी ने भाई लक्ष्मण को रावण के अंतिम समय से पहले उससे कुछ ज्ञान लेने की सलाह दी थी.

रावण द्वारा लक्ष्मण को बताई गई थी ये बातें

रावण ने मरते समय लक्ष्मण को तीन शिक्षाएं दी थी, जिसमें पहली शिक्षा थी कि 'शत्रु और रोग कैसे भी हों, चाहे छोटे से छोटे या कमजोर ही क्यों न हो, लेकिन ये भी मौत के कारण बन सकते हैं'.

लक्ष्मण को रावण ने दूसरी बात बताई थी कि 'अपनी गुप्त बात किसी को भी नहीं बताना चाहिए, चाहे वह कितना ही विश्वासपात्र क्यों न हो.

रावण के द्वारा तीसरी बात बताई गई थी कि शुभ कार्य जल्दी करने का प्रयास करना चाहिए और अशुभ कार्य को जहां तक संभव हो टालना ही चाहिए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.