नरसिंहपुर। पौराणिक महत्व के सांस्कृतिक आयोजन आधुनिकता के दौर में पीछे छूटते जा रहे हैं. जिनसे हमारी युवा पीढ़ी भी धीरे-धीरे दूर होती जा रही है. ऐसे में नरसिंहपुर के सिमरिया गांव में पिछले 75 वर्षों से बुंदेलखंडी देसी रामलीला का आयोजन ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है. जिसे देखने लोगों की भारी भीड़ जुटती है.
इस रामलीला की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह लोकल भाषा में और ग्रामीण संसाधनों तथा ग्रामीण कलाकारों द्वारा ही प्रस्तुत की जाती है. जहां आज भी राम की लीला का भक्ति भाव के साथ सम्पूर्ण रामायण का नाटकीय रुप नवरात्रि के अवसर पर यहां दिखाया जाता है. बताया जाता है की यहा पर चलने वाली रामलीला कोई नई नहीं है, पिछले लगभग 75 सालो इस रामलीला का मंचन लगातार चलता जा रहा है. यहा पर जिस परिवार के लोग राम लीला में नटकीय रूप कर रहे हैं. वह अपने बच्चो को भी रामलीला सीखा रहे है ताकी यह लीला खत्म ना हो ओर आंगे चलती रहे.
वैसे भी आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी पुरानी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं ऐसे में गांव का प्रयास यही है कि हम आने वाले पीढ़ियों को पुरानी संस्कृति से अवगत कराते चले आए. आधुनिकता के दौर में रामलीला को देखकर लोग अपनी संस्कृति से जुड़ाव महसूस करते हैं और रामलीला से आने वाली पीढ़ी भी भारतीय संस्कृति को पहचान रही है. पिछले 75 सालों से सिमरिया गांव में चल रही इस रामलीला के देखने लोग दूर-दूर से चले आते जहां भगवान श्रीराम के जयघोष से पूरा नौ दिनों तक गुजायमान रहता है.