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इस गांव में 75 वर्षों से हो रहा है बुंदेलखंडी रामलीला का मंचन, नवरात्रि में जयश्री राम का होता है जयघोष - नवरात्रि पर रामलीला

भले ही आज के दौर में रामलीला की जगह टीवी ने ले ली हो. लेकिन ग्रामीणों अंचलों में अब भी रामलीला लोगों को भगवान की लीलाओं से अवगत कराती है. भले ही पौराणिक महत्व के सांस्कृतिक आयोजन आधुनिकता के दौर में पीछे छूटते जा रहे हो और युवा पीढ़ी उनसे दूर होती जा रही है. लेकिन नरसिंहपुर जिले के सिमरिया गांव वर्षों पुरानी संस्कृति को अब भी सहेजा जा रहा है.

बुंदेलखंडी रामलीला
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Published : Oct 8, 2019, 11:40 AM IST

Updated : Oct 8, 2019, 1:08 PM IST

नरसिंहपुर। पौराणिक महत्व के सांस्कृतिक आयोजन आधुनिकता के दौर में पीछे छूटते जा रहे हैं. जिनसे हमारी युवा पीढ़ी भी धीरे-धीरे दूर होती जा रही है. ऐसे में नरसिंहपुर के सिमरिया गांव में पिछले 75 वर्षों से बुंदेलखंडी देसी रामलीला का आयोजन ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है. जिसे देखने लोगों की भारी भीड़ जुटती है.

बुंदेलखंडी रामलीला

इस रामलीला की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह लोकल भाषा में और ग्रामीण संसाधनों तथा ग्रामीण कलाकारों द्वारा ही प्रस्तुत की जाती है. जहां आज भी राम की लीला का भक्ति भाव के साथ सम्पूर्ण रामायण का नाटकीय रुप नवरात्रि के अवसर पर यहां दिखाया जाता है. बताया जाता है की यहा पर चलने वाली रामलीला कोई नई नहीं है, पिछले लगभग 75 सालो इस रामलीला का मंचन लगातार चलता जा रहा है. यहा पर जिस परिवार के लोग राम लीला में नटकीय रूप कर रहे हैं. वह अपने बच्चो को भी रामलीला सीखा रहे है ताकी यह लीला खत्म ना हो ओर आंगे चलती रहे.

वैसे भी आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी पुरानी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं ऐसे में गांव का प्रयास यही है कि हम आने वाले पीढ़ियों को पुरानी संस्कृति से अवगत कराते चले आए. आधुनिकता के दौर में रामलीला को देखकर लोग अपनी संस्कृति से जुड़ाव महसूस करते हैं और रामलीला से आने वाली पीढ़ी भी भारतीय संस्कृति को पहचान रही है. पिछले 75 सालों से सिमरिया गांव में चल रही इस रामलीला के देखने लोग दूर-दूर से चले आते जहां भगवान श्रीराम के जयघोष से पूरा नौ दिनों तक गुजायमान रहता है.

नरसिंहपुर। पौराणिक महत्व के सांस्कृतिक आयोजन आधुनिकता के दौर में पीछे छूटते जा रहे हैं. जिनसे हमारी युवा पीढ़ी भी धीरे-धीरे दूर होती जा रही है. ऐसे में नरसिंहपुर के सिमरिया गांव में पिछले 75 वर्षों से बुंदेलखंडी देसी रामलीला का आयोजन ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है. जिसे देखने लोगों की भारी भीड़ जुटती है.

बुंदेलखंडी रामलीला

इस रामलीला की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह लोकल भाषा में और ग्रामीण संसाधनों तथा ग्रामीण कलाकारों द्वारा ही प्रस्तुत की जाती है. जहां आज भी राम की लीला का भक्ति भाव के साथ सम्पूर्ण रामायण का नाटकीय रुप नवरात्रि के अवसर पर यहां दिखाया जाता है. बताया जाता है की यहा पर चलने वाली रामलीला कोई नई नहीं है, पिछले लगभग 75 सालो इस रामलीला का मंचन लगातार चलता जा रहा है. यहा पर जिस परिवार के लोग राम लीला में नटकीय रूप कर रहे हैं. वह अपने बच्चो को भी रामलीला सीखा रहे है ताकी यह लीला खत्म ना हो ओर आंगे चलती रहे.

वैसे भी आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी पुरानी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं ऐसे में गांव का प्रयास यही है कि हम आने वाले पीढ़ियों को पुरानी संस्कृति से अवगत कराते चले आए. आधुनिकता के दौर में रामलीला को देखकर लोग अपनी संस्कृति से जुड़ाव महसूस करते हैं और रामलीला से आने वाली पीढ़ी भी भारतीय संस्कृति को पहचान रही है. पिछले 75 सालों से सिमरिया गांव में चल रही इस रामलीला के देखने लोग दूर-दूर से चले आते जहां भगवान श्रीराम के जयघोष से पूरा नौ दिनों तक गुजायमान रहता है.

Intro:पौराणिक महत्व की सांस्कृतिक आयोजन आधुनिकता के दौर में पीछे छूटती जा रहे हैं और आज युवा पीढ़ी उनसे दूर होती जा रही है ऐसे में नरसिंहपुर के सिमरिया गांव में पिछले 75 वर्षों से बुंदेलखंडी देसी रामलीला का आयोजन ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है इस रामलीला की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह लोकल भाषा में और ग्रामीण संसाधनों तथा ग्रामीण कलाकारों द्वारा ही प्रस्तुत की जाती हैBody: _ पौराणिक महत्व की सांस्कृतिक आयोजन आधुनिकता के दौर में पीछे छूटती जा रहे हैं और आज युवा पीढ़ी उनसे दूर होती जा रही है ऐसे में नरसिंहपुर के सिमरिया गांव में पिछले 75 वर्षों से बुंदेलखंडी देसी रामलीला का आयोजन ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है इस रामलीला की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह लोकल भाषा में और ग्रामीण संसाधनों तथा ग्रामीण कलाकारों द्वारा ही प्रस्तुत की जाती है


... ये है नरसिंहपुर के गोटेगांव तहसील का सिमरिया गांव जहा पर आज भी राम की लीला का भक्ति भाव के साथ सम्पूर्ण रामायण का नाटकिय रूप नवरात्रि के अवसर पर दिखाया जाता है ओर देखने के लिए दूर दूर से लोग यहा की रामायण देखने के लिए यहा आते हैै । वही नाटकिय रूप धरने वाले लोगो में भी उत्साह देखा जा रहा है ओर वह पिछले लम्बे समय से इस कार्यक्रम को आंगे बढाते जा रहे है । पौराणिक महत्व की इस रामलीला की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह यहां की लोकल भाषा में ठेठ देसी अंदाज में रामलीला पाठ होता है और रामलीला के चरित्र निभाते हैं वह सभी ग्रामीण होते हैं


वाइट - 01 महेंद्र पटेल, ग्रामीण
वाइट - 02 कीरत पटेल राम का पात्र


... यदी नही बताया जाता है की यहा पर चलने वाली रामलीला कोई नई नही है यहा पर पिछले लगभग 75 सालो इस रामलीला का मंचन लगातार चलता जा रहा है । यहा पर जिस परिवार के लोग राम लीला में नटकिय रूप कर रहे है वह अपने बच्चो को भी रामलीला सीखा रहे है ताकी यह लीला खत्म ना हो ओर आंगे चलती रहे । वैसे भी आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी पुरानी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं ऐसे में गांव का प्रयास यही है कि हम आने वाले पीढ़ियों को पुरानी संस्कृति से अवगत कराते चले आए



वाइट- 03 बाबूलाल कहार रावण पात्रConclusion:यहा पर जिस परिवार के लोग राम लीला में नटकिय रूप कर रहे है वह अपने बच्चो को भी रामलीला सीखा रहे है ताकी यह लीला खत्म ना हो ओर आंगे चलती रहे । वैसे भी आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी पुरानी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं ऐसे में गांव का प्रयास यही है कि हम आने वाले पीढ़ियों को पुरानी संस्कृति से अवगत कराते चले आए
Last Updated : Oct 8, 2019, 1:08 PM IST
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