भोपाल। सूबे की सियासत के दो दिग्गज दोनों ने पार्टी में उपेक्षा के चलते उम्र के आखिरी पड़ाव में पाला बदला लेकिन दोनों के हाथ नाकामी ही आई. एक चुनाव हारकर सियासी परदे के पीछे गुम हो गए और दूसरे को पार्टी बदलने पर भी टिकट नहीं मिला. यह है दिग्गज नेता सरताज सिंह और रामकृष्ण कुसमरिया.
कांग्रेस ने कुसमारिया को खजुराहो और दमोह दोनों सीटों से टिकट नहीं दिया है. हालांकि अब उनका कहना है कि उन्होंने कभी टिकट नहीं मांगा था. उन्हें दमोह सीट जिताने की जिम्मेदारी मिली है, जिसे वे निभा रहे हैं. ऐसी ही कुछ स्थिति सरताज सिंह की है. उधर कांग्रेस में सरताज और रामकृष्ण कुसमरिया की स्थिति पर बीजेपी के कद्दावर नेता नरोत्तम मिश्रा ने कटाक्ष करते हुए कहा है कि जो भी कांग्रेस में गया है, उसका ऐसा ही हाल हुआ है क्योंकि कांग्रेस पार्टी है ही नहीं वह परिवार है जो क्षत्रपों में बंटा है.
75 के फॉर्मूले के चलते टिकट से नकार दिए गए बीजेपी के दिग्गज नेता सरताज सिंह और रामकृष्ण कुसमरिया ने कांग्रेस का दामन थामा था. दोनों को उम्मीद थी की चुनाव में जीतकर वे अपनी क्षमता साबित कर बीजेपी को मुंह तोड़ जवाब देंगे, लेकिन पार्टी छोड़ने उनका फैसला उनके लिए उल्टा साबित हुआ. विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में शामिल होने वाली दिग्गज नेता सरताज सिंह को कांग्रेस ने होशंगाबाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा. लेकिन वो सीताशरण शर्मा से चुनाव हार गए इसके बाद से ही सरताज सिंह की सक्रियता पार्टी में ना के बराबर रह गई है. विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने उन पर लोकसभा चुनाव में दांव लगाना सही नहीं समझा.
ऐसा ही हाल दिग्गज नेता और पांच बार के सांसद रहे रामकृष्ण कुसमरिया का भी है विधानसभा चुनाव में उन्होंने निर्दलीय के रूप में 2 विधानसभा क्षेत्रों पथरिया और दमोह से चुनाव लड़ा था दोनों जगह से वह चुनाव हारे, इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया, इस शर्त के साथ कि कांग्रेस होने लोकसभा चुनाव का टिकट देगी लेकिन, जब टिकट की बारी आई तो उन्हें पार्टी ने ना खजुराहो से उम्मीदवार बनाया और ना ही दमोह से चुनाव मैदान में उतारा. बताया जाता है कि दोनों ही संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने उनकी दावेदारी का कड़ा विरोध किया, जिसके आगे कांग्रेस आलाकमान को झुकना पड़ा. हालांकि रामकृष्ण कुसमरिया कहना है कि उन्होंने कभी लोकसभा का टिकट मांगा ही नहीं पार्टी ने उन्हें दमोह लोकसभा सीट को जिताने की जिम्मेदारी दी है, जिसे वे बखूबी निभा रहे हैं उन्होंने उम्मीद जताई कि दमोह लोकसभा सीट कांग्रेस करीब 50 हजार वोटों से जीतेगी. कुल मिलाकर देखा जाए तो दोनों कद्दावर नेताओं को उम्र के आखिरी पड़ाव में पार्टी से बगावत करना फायदे का सौदा साबित नहीं हुआ है.
बीजेपी ने किया कटाक्ष
उधर कांग्रेस में शामिल हुए कद्दावर नेता सरताज सिंह और रामकृष्ण कुसमरिया के बहाने बीजेपी ने कांग्रेस पर कटाक्ष किया है बीजेपी के कद्दावर नेता नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि जैसी स्थिति दोनों की कांग्रेस में है ऐसा ही होना था। कांग्रेस में जो भी गया उसके साथ ऐसा ही हुआ है हजारीलाल रघुवंशी को ही लीजिए अब उनके पास कोई नहीं जाता। नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि रामकृष्ण कुसमरिया को कल्पना नहीं थी कि कांग्रेस में कैसी गुटबाजी है। कांग्रेस पार्टी है ही नहीं वह तो परिवार है जो कई क्षत्रपों में बटी हुई है।
सरताज का सियासी सफरनामा
सरताज सिंह ने 1970 में इटारसी नगर पालिका चुनाव में एल्डरमैन चुने गए थे, इसके बाद 1975 में नगर पालिका अध्यक्ष 1978 से 1980 तक इटारसी नगर पालिका अध्यक्ष रहे इसके बाद सरताज सिंह ने होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र से 1989 से 1996 तक 3 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रामेश्वर नीखरा को लगातार हराया यह वही सरताज सिंह हैं, जिन्होंने 1998 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अर्जुन सिंह को भी मात दी थी लेकिन 1999 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा. 2004 में भी फिर लोकसभा चुनाव मैदान में कूदे और जीत भी दर्ज की. 2008 में होशंगाबाद जिले के सिवनी-मालवा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और कांग्रेस प्रत्याशी तत्कालीन विधानसभा उपाध्यक्ष हजारीलाल रघुवंशी को हराया. सरताज सिंह ने 28 अक्टूबर 2009 को मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल के सदस्य की शपथ ली और वन मंत्री बने 2013 में सिवनी मालवा क्षेत्र से विधायक चुने गए. लेकिन 2018 के चुनाव में पार्टी हाईकमान ने 75 के फार्मूले के तहत टिकट से किनारा किया तो सरताज सिंह ने बीजेपी छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया. कांग्रेस ने भी तत्काल उन्हें होशंगाबाद विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन सरताज सिंह कांग्रेस में जीत की पारी नहीं खेल सके और तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा से चुनाव हार गए.
रामकृष्ण कुसमरिया का सियासी सफर
बीजेपी के दिग्गज नेता रहे रामकृष्ण कुसमरिया अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने लगातार चार बार दमोह लोकसभा सीट से चुनाव जीता है. उनके अलावा कोई भी नेता इस लोकसभा सीट से दो बार चुनाव नहीं जीत पाया. किसान परिवार से आने वाले रामकृष्ण कुसमरिया लोधी वर्ग का बीजेपी का बड़ा चेहरा माना जाता रहा है. इस वोट बैंक का दमोह, खजुराहो सीटों पर निर्णायक भूमिका रहती है. राम कृष्ण कुसमारिया 10वीं, 11वीं ,12वीं और 13वीं लोकसभा चुनाव में दमोह लोकसभा सीट से लगातार चार चुनाव में जीत दर्ज की 14वीं लोकसभा चुनाव में उन्होंने खजुराहो लोकसभा सीट से चुनाव जीता था, 2008 के विधानसभा चुनाव में रामकृष्ण कुसमरिया पथरिया विधानसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. हालांकि इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें सांसद के चुनाव के लिये मैदान में उतारा गया था. कुसमरिया ने 1976 में सबसे पहले हटा से विधानसभा चुनाव जीता था, इसके बाद 1985, 1990 और 2008 में भी चुनकर विधानसभा पहुंचे. बीजेपी के कद्दावर नेता रहे रामकृष्ण कुसमरिया 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट काटे जाने से खफा होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 2 विधानसभा क्षेत्रों दमोह और पथरिया से चुनाव लड़ा लेकिन दोनों ही जगह से हार उनके खाते में आई. विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया इस उम्मीद के साथ कि कांग्रेस उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारेगी लेकिन, उनके हाथ मायूसी ही लगी.