भोपाल. राजस्थान में कांग्रेस के बिगड़े सियासी हालात को संभालने और अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट के बीच संवाद कायम करने के लिए कमलनाथ को दिल्ली बुलाया गया. राजस्थान के सियासी संकट को सुलझाने के लिए कमलनाथ को मीडिएटर बनाया गया है. कमलनाथ सोनिया गांधी से मुलाकात कर चुके हैं. उधर राजस्थान भेजे के गए पार्टी के दो पर्यवेक्षक केसी वेणुगोपाल और खड़गे भी दिल्ली लौट आए हैं. ऐसे में कुशल प्रबंधक माने जाने वाले कमलनाथ क्या हाईकमान के भरोसे पर खरा उतर पाएंगे.
राजस्थान में कमल'नाथ': राजस्थान में मचे सियासी घमासान के बीच एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ दिल्ली में हैं. अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले कमलनाथ की सचिन पायलट से भी नजदीकियां रही हैं यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें संकटमोचक बनाया है. 2020 के उपचुनाव में सिंधिया के करीबी होते भी पायलट, कमलनाथ के कहने पर एमपी में चुनाव प्राचर किया था. यह वजह है कि दोनों नेताओं से करीबी को चलते एक बार फिर कमलनाथ को राजस्थान में डैमेज कंट्रोल की जिम्मेदारी दी गई है. इससे पहले भी राजस्थान में बगावत के सुर उठने पर कमलनाथ दोनों नेताओं के बीच सुलह करा चुके हैं.
समाधान का एक ही रास्ता बातचीत: वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ऋषि पाण्डे के मुताबिक कांग्रेस की मौजूदा राजनीति में कमलनाथ सबसे अनुभवी और वरिष्ठ नेता है. राजीव गांधी,सोनिया गांधी, राहुल गांधी से लगाकर पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के साथ काम किया है. राज्यों के क्षत्रपों से उनके मधुर और निजी रिश्ते हैं. इसलिए अकसर वे कांग्रेस में संकटमोचक की भूमिका में दिखाई पड़ते हैं. राजस्थान में जहां पर आकर गाड़ी फंस गई है वहां बातचीत ही एकमात्र समाधान का रास्ता दिखता है, ऐसे में कमलनाथ जैसे वरिष्ठ नेता को भेजना कांग्रेस आलाकमान के लिए जरूरी भी है और मजबूरी भी. कमलनाथ भले अपना घर नहीं बचा पाए लेकिन यह हकीकत है कि कांग्रेस के जितने भी आला नेता हैं उन सब के मुकाबले कमलनाथ की प्रबंधन क्षमता सबसे बेहतर है, इसीलिए जब महाराष्ट्र एपिसोड हुआ था तब भी आलाकमान ने उन्हें याद किया था और राजस्थान के समय पहले भी उनकी उपयोगिता को महसूस किया गया है.
कांग्रेस आलाकमान के लिए मुश्किल की स्थिति: राजस्थान का सियासी संकट कांग्रेस हाईकमान के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. एक तरफ अशोक गहलोत हैं जो गांधी परिवार के विश्वासपात्र हैं. दूसरी तरफ सचिन पायलट हैं जो सीएम बनने के इंतजार में हैं. अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव लड़ने की स्थिति में उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना होगा. तब पायलट नए सीएम होंगे, लेकिन गहलोत समर्थक विधायकों की बगावत ने फिलहाल खेल बिगाड़ दिया है. विधायकों के मामले में गहलोत का पलड़ा पायलट से भारी है. कांग्रेस के सामने मुश्किल ये है कि गहलोत को नाराज करने से गांधी परिवार अपने एक भरोसेमंद नेता को खो देगा. दूसरी तरफ सचिन पायलट हैं जो कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं. पायलट को सीएम बनाने के लिए आलाकमान ने कमिटमेंट किया है पूरा नहीं होता है तो पायलट कांग्रेस छोड़ भी सकते हैं. संकट नहीं सुलझा तो गांधी परिवार की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठेंगे.