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इससे घूसखोर अफसरों की होगी मौज, प्राइवेट स्कूल संचालकों ने क्यों लगाया ये आरोप, फिर सड़क पर उतरने की तैयारी

निजी स्कूल संचालक एक बार फिर आंदोलन की राह पर हैं. इस पर उनका विरोध मान्यता के नए नियमों को लेकर है. पहले प्राइवेट स्कूलों को 5 साल के लिए एक बार में ही मान्यता मिल जाती थी. अब नए नियम के मुताबिक निजी स्कूलों को हर साल मान्यता के लिए आवेदन करना होगा.

Recognition Of Private Schools
स्कूलों की मान्यता पर खींचतान
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Published : Sep 21, 2021, 6:57 PM IST

भोपाल। कभी कोरोना काल (Corona) में स्कूल खोलने को लेकर, तो कभी फीस (School Fees) को लेकर प्राइवेट स्कूल और सरकार आमने सामने रहे हैं. अब प्राइवेट स्कूल संचालक शिक्षा विभाग से 5 साल की मान्यता(Recognition Of Private Schools) देने की मांग कर रहे हैं. लेकिन कोरोना के चलते विभाग ने सभी स्कूलों को 1 साल की मान्यता देने के निर्देश दिए हैं. इसी बात को लेकर अब प्राइवेट स्कूल संचालक प्रदेश भर में आंदोलन(Private Schools On Path Of Movement) की राह पर हैं.

हर साल मान्यता का विरोध, आंदोलन की राह पर प्राइवेट स्कूल

निजी स्कूल संचालकों का (Recognition Of Private Schools) कहना है कि अगर पांच साल के लिए एक साथ मान्यता मिल जाती तो अच्छा रहता. अब हमें बार- बार चक्कर लगाने पड़ेंगे. निजी स्कूल संचालकों का आरोप है कि शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार (Corruption In Education Department) इस कदर हावी है कि RTE के पैसे से लेकर स्कूलों की फीस तक संचालकों को नहीं मिली है. ऐसे में मजबूरन आंदोलन करना पड़ रहा है. लेकिन मध्य प्रदेश पालक संघ विभाग के फैसले से खुश है. इनका कहना है कि स्कूल संचालकों की मांग अनुचित है. हर साल अनुमति लेने से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा. क्योंकि 5 साल में अनुमति लेने के बाद स्कूल संचालक निश्चिंत हो जाते हैं और मनमानी करते हैं .

प्रदेश में अब स्कूल पूरी तरह से खुल गए हैं . 20 सितंबर से कक्षा एक से पांचवीं के बाद अब पूरे प्रदेश में कक्षा एक से बारहवीं तक के स्कूल ओपन हैं. सरकारी स्कूलों में ठीक ठाक संख्या में बच्चे पहुंच रहे हैं , लेकिन प्राइवेट स्कूलों में अभी भी बच्चों की (Recognition Of Private Schools) संख्या ना के बराबर है. सीबीएसई स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं. ऐसे में मध्य प्रदेश के प्राइवेट स्कूल संचालकों ने प्रदेश भर में आंदोलन की चेतावनी दी है. ये ताजा चेतावनी स्कूलों की अधिमान्यता को लेकर है.

'नए नियम से घूसखोरी बढ़ेगी'

अभी तक शिक्षा विभाग स्कूलों के अधिमान्यता (Recognition Of Private Schools) के लिए 5 साल का समय देता था, लेकिन करोनाकाल में सरकार ने इसकी अवधि इसी साल से घटाकर एक 1 साल कर दी है. यानि अब हर साल मान्यता लेनी होगी. मध्य प्रदेश के प्राइवेट स्कूल संचालक इसके विरोध में है. इनका आरोप है कि बार-बार रिनुअल के लिए अधिकारियों को रिश्वत के रूप में पैसा देना पड़ता है ,ऐसे में जितनी फीस रिनुअल की लगती है उतना ही पैसा संबंधित अधिकारी को देना पड़ता है. अभी तक 5 साल के ₹1लाख लगते हैं और 1 साल की फीस 20000 रखी है.


प्राइवेट स्कूल संचालकों की परेशानी RTE को लेकर भी है. सरकार ने राइट टू एजुकेशन(Right To Education) के तहत गरीब छात्रों का एडमिशन तो स्कूलों में करवा दिया. लेकिन सरकार द्वारा उसका पैसा अभी तक स्कूलों को नहीं दिया गया है.प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत सिंह के अनुसार यह स्कूलों के माध्यम से टीसी देने को भी तैयार है ,लेकिन ट्यूशन फीस इनको अभी तक नहीं मिली है. शिक्षा विभाग में बैठे अधिकारी इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहे हैं . ऐसे में आंदोलन के अलावा इनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है.

नए नियम के समर्थन में पालक संघ

इधर, मध्य प्रदेश पालक संघ (Guardians Association) प्राइवेट स्कूलों की मनमानी से परेशान है. उनका कहना है कि बच्चों को टीसी नहीं दी जा रही है और पूरी फीस जमा करने को कहा जा रहा है. जबकि सरकार ने सिर्फ ट्यूशन फीस लेने को ही कहा है. पालक संघ के महासचिव प्रबोध पांडेया कहते हैं कि स्कूलों की मान्यता को लेकर प्राइवेट स्कूल संचालक धमकी दे रहे हैं. अगर सरकार ने 1 साल का प्रावधान रखा है तो इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा. स्कूल संचालक 5 साल की परमिशन लेने के बाद स्कूलों में शिक्षा का स्तर नहीं सुधारते. हर साल मान्यता होने से शिक्षा का स्तर सुधरेगा और प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बंद होगी.

उल्टा पड़ा दांव! शिवराज सरकार के गले की फांस बना ओबीसी आरक्षण, सूझ नहीं रहा कोई उपाय

ये हैं अधिमान्यता के नियम

मध्यप्रदेश में 45 हजार छोटे बड़े प्राइवेट स्कूल है . इनकी संबद्धता और मान्यता इन्हें शिक्षा विभाग (Rules Of School Recognition) से लेनी पड़ती है. पहले 5 साल की मान्यता दी जाती थी. इसके बदले में स्कूलों को 5 साल के लिए 1 लाख की फीस जमा करनी होती थी. करोना काल में सरकार ने 5 साल की मान्यता हटाते हुए हर साल मान्यता देने का प्रावधान किया है. इसके लिए फीस को भी पांच भागों में बांट दिया है. अब 1 साल के लिए 20 हजार की राशि का प्रावधान किया गया है.

भोपाल। कभी कोरोना काल (Corona) में स्कूल खोलने को लेकर, तो कभी फीस (School Fees) को लेकर प्राइवेट स्कूल और सरकार आमने सामने रहे हैं. अब प्राइवेट स्कूल संचालक शिक्षा विभाग से 5 साल की मान्यता(Recognition Of Private Schools) देने की मांग कर रहे हैं. लेकिन कोरोना के चलते विभाग ने सभी स्कूलों को 1 साल की मान्यता देने के निर्देश दिए हैं. इसी बात को लेकर अब प्राइवेट स्कूल संचालक प्रदेश भर में आंदोलन(Private Schools On Path Of Movement) की राह पर हैं.

हर साल मान्यता का विरोध, आंदोलन की राह पर प्राइवेट स्कूल

निजी स्कूल संचालकों का (Recognition Of Private Schools) कहना है कि अगर पांच साल के लिए एक साथ मान्यता मिल जाती तो अच्छा रहता. अब हमें बार- बार चक्कर लगाने पड़ेंगे. निजी स्कूल संचालकों का आरोप है कि शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार (Corruption In Education Department) इस कदर हावी है कि RTE के पैसे से लेकर स्कूलों की फीस तक संचालकों को नहीं मिली है. ऐसे में मजबूरन आंदोलन करना पड़ रहा है. लेकिन मध्य प्रदेश पालक संघ विभाग के फैसले से खुश है. इनका कहना है कि स्कूल संचालकों की मांग अनुचित है. हर साल अनुमति लेने से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा. क्योंकि 5 साल में अनुमति लेने के बाद स्कूल संचालक निश्चिंत हो जाते हैं और मनमानी करते हैं .

प्रदेश में अब स्कूल पूरी तरह से खुल गए हैं . 20 सितंबर से कक्षा एक से पांचवीं के बाद अब पूरे प्रदेश में कक्षा एक से बारहवीं तक के स्कूल ओपन हैं. सरकारी स्कूलों में ठीक ठाक संख्या में बच्चे पहुंच रहे हैं , लेकिन प्राइवेट स्कूलों में अभी भी बच्चों की (Recognition Of Private Schools) संख्या ना के बराबर है. सीबीएसई स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं. ऐसे में मध्य प्रदेश के प्राइवेट स्कूल संचालकों ने प्रदेश भर में आंदोलन की चेतावनी दी है. ये ताजा चेतावनी स्कूलों की अधिमान्यता को लेकर है.

'नए नियम से घूसखोरी बढ़ेगी'

अभी तक शिक्षा विभाग स्कूलों के अधिमान्यता (Recognition Of Private Schools) के लिए 5 साल का समय देता था, लेकिन करोनाकाल में सरकार ने इसकी अवधि इसी साल से घटाकर एक 1 साल कर दी है. यानि अब हर साल मान्यता लेनी होगी. मध्य प्रदेश के प्राइवेट स्कूल संचालक इसके विरोध में है. इनका आरोप है कि बार-बार रिनुअल के लिए अधिकारियों को रिश्वत के रूप में पैसा देना पड़ता है ,ऐसे में जितनी फीस रिनुअल की लगती है उतना ही पैसा संबंधित अधिकारी को देना पड़ता है. अभी तक 5 साल के ₹1लाख लगते हैं और 1 साल की फीस 20000 रखी है.


प्राइवेट स्कूल संचालकों की परेशानी RTE को लेकर भी है. सरकार ने राइट टू एजुकेशन(Right To Education) के तहत गरीब छात्रों का एडमिशन तो स्कूलों में करवा दिया. लेकिन सरकार द्वारा उसका पैसा अभी तक स्कूलों को नहीं दिया गया है.प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत सिंह के अनुसार यह स्कूलों के माध्यम से टीसी देने को भी तैयार है ,लेकिन ट्यूशन फीस इनको अभी तक नहीं मिली है. शिक्षा विभाग में बैठे अधिकारी इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहे हैं . ऐसे में आंदोलन के अलावा इनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है.

नए नियम के समर्थन में पालक संघ

इधर, मध्य प्रदेश पालक संघ (Guardians Association) प्राइवेट स्कूलों की मनमानी से परेशान है. उनका कहना है कि बच्चों को टीसी नहीं दी जा रही है और पूरी फीस जमा करने को कहा जा रहा है. जबकि सरकार ने सिर्फ ट्यूशन फीस लेने को ही कहा है. पालक संघ के महासचिव प्रबोध पांडेया कहते हैं कि स्कूलों की मान्यता को लेकर प्राइवेट स्कूल संचालक धमकी दे रहे हैं. अगर सरकार ने 1 साल का प्रावधान रखा है तो इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा. स्कूल संचालक 5 साल की परमिशन लेने के बाद स्कूलों में शिक्षा का स्तर नहीं सुधारते. हर साल मान्यता होने से शिक्षा का स्तर सुधरेगा और प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बंद होगी.

उल्टा पड़ा दांव! शिवराज सरकार के गले की फांस बना ओबीसी आरक्षण, सूझ नहीं रहा कोई उपाय

ये हैं अधिमान्यता के नियम

मध्यप्रदेश में 45 हजार छोटे बड़े प्राइवेट स्कूल है . इनकी संबद्धता और मान्यता इन्हें शिक्षा विभाग (Rules Of School Recognition) से लेनी पड़ती है. पहले 5 साल की मान्यता दी जाती थी. इसके बदले में स्कूलों को 5 साल के लिए 1 लाख की फीस जमा करनी होती थी. करोना काल में सरकार ने 5 साल की मान्यता हटाते हुए हर साल मान्यता देने का प्रावधान किया है. इसके लिए फीस को भी पांच भागों में बांट दिया है. अब 1 साल के लिए 20 हजार की राशि का प्रावधान किया गया है.

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