भोपाल। मध्य प्रदेश से खाली हो रही राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है, वर्तमान में कांग्रेस और बीजेपी के विधायकों की संख्या पर नजर डाली जाए तो दो सीटें कांग्रेस के खातें में जाती दिख रही हैं, जबकि एक सीट बीजेपी को मिलेगी. सत्ताधारी कांग्रेस में राज्यसभा जाने के लिए आधा दर्जन से भी ज्यादा दावेदारों ने जोर-आजमाइश शुरु कर दी है.
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कांग्रेस से पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का नाम राज्यसभा जाने के लिए लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन जैसे ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी का नाम सामने आया. राज्यसभा की राह पकड़ने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई. कांग्रेस के नेता कहते हैं पार्टी में सब ठीक है.
नेता कुछ भी कहें, लेकिन जिस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक खुलकर उनके नाम की पैरवी कर रहे हैं तो कमलनाथ गुट के मंत्रियों और नेताओं ने प्रियंका गांधी को मध्यप्रदेश से राज्यसभा भेजे जाने के लिए लॉबिंग शुरु की, उससे तो यही लगता है कि पार्टी में अंदरूनी घमासान मचा है. इन सब के बीच दिग्विजय सिंह के समर्थक भी उन्हें फिर से राज्यसभा की राह पर भेजने की बात कर रहे हैं.
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इन तीन नेताओं से इतर सुरेश पचौरी, अजय सिंह, मीनाक्षी नटराजन, अरुण यादव के नाम भी दावेदारों में गिने जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस के ये वो नेता हैं, जो विधानसभा और लोकसभा चुनाव हार चुके हैं, लेकिन बड़े सियासी कद के चलते वे अब राज्यसभा की दावेदारी कर रहे हैं. इन सब के बीच कांग्रेस विधायक और आदिवासी संगठन जयस के संरक्षक हीरालाल अलावा ने भी राज्यसभा सीट की मांग शुरु कर दी है. जिससे कांग्रेस के लिए राज्यसभा का गणित उलझता जा रहा है.
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अब जरा राज्यसभा का ये गणित समझिए
सत्ताधारी कांग्रेस के विधायकों की संख्या इस वक्त 114 है, चार निर्दलीय और बसपा-सपा के तीन विधायक कमलनाथ सरकार का समर्थन कर रहे हैं, राज्यसभा की एक सीट के लिए 58 विधायकों के वोटों की जरूरत है, इस हिसाब से एक सीट जीतने के बाद कांग्रेस के पास 56 वोट बचेंगे, यानि दूसरी सीट जीतने के लिए उसे निर्दलीय विधायकों के समर्थन की जरुरत पड़ेगी. पार्टी ऐसे चेहरों पर दांव लगाना चाहती है, जिस पर सब राजी हो जाएं.
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सियासी जानकार मानते हैं कि कांग्रेस एक सीट पर सामान्य और दूसरी सीट पर आरक्षित कैंडिडेट को राज्यसभा भेज सकती है क्योंकि पार्टी विधानसभा उपचुनावों को देखते हुए किसी भी वर्ग के वोटबैंक को नाराज नहीं करना चाहती है. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के सियासी दिग्गजों में से राज्यसभा की राह के लिए किसी न किसी का पत्ता जरूर कटेगा. हालांकि, अंतिम निर्णय कांग्रेस के दिल्ली दरबार में ही होगा, जहां देखना दिलचस्प होगा कि किसके भाग्य में राज्यसभा का राज होगा.