भोपाल. एमपीईबी में हैल्पर संतोष को पोल पर चढ़ा दिया गया. उस वक्त जब पोल पर करंट दौड़ रहा था. जोखिम तो उसकी जिंदगी का हिस्सा है. लेकिन बिना सुरक्षा उपकरणों के ऐसे जोखिम जानलेवा हो जाते हैं. संतोष एमपीईबी का आउट सोर्स कर्मचारी था. संतोष की मौत हो चुकी है, लेकिन अब तक ना उसकी मौत का मुआव़ज़ा मिला औऱ ना परिवार में किसी को अनुकंपा नियुक्ति दी गई. संतोष की मौत को अभी एक महीना भी नहीं हुआ है. संतोष के अलावा पिछले एक साल में गोविंद धुर्वे, उदयभान धुर्वे, विजय सोनेकर, शिवकुमार यादव लंबी फेहरिस्त है एमपीईबी के उन आउटसोर्स कर्मचारियों की जिन्होंने आपके घर, बस्ती, गांव शहर को रोशन करने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी. आप तक इनकी मौत की खबर भी नहीं पहुंचती होगी, फिर इनकी जिंदगी का जिक्र कहां से आएगा. ड्यूटी कर रहे ये आउटसोर्स कर्मचारी सिस्टम का हिस्सा होते हुए भी सरकार से मिलने वाली तमाम सुविधाओं, रियायत और सहायता से मोहताज हैं.
प्रदेश में 2.50 लाख से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारी: प्रदेश के अलग अलग विभागों में ढाई लाख से ऊपर ऐसे आउटसोर्स कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एमपीईबी तो लगभग पूरा ही इन आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है. एमपीईबी में 45 हजार आउटसोर्स कर्मचारी हैं. जो विद्युत वितरण केंद्रों में काम करने के साथ मीटर रीडिंग, बिल वसूली, कंप्यूटर वर्क जैसे सारे काम करते हैं. लेकिन एमपीईबी का पूरा सिस्टम संभालते इन आउटसोर्स कर्मचारियों की खुद एमपीईबी को कितनी परवाह है इसके उदाहरण भी आए दिन सामने आते रहते हैं. आप इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि इन्हें सुरक्षा उपकरण तक नही दिए गए, जबकि इनसे लाईन मैन का काम करवाया जाता है. आए दिन इन्हें बिजली के पोल पर चढ़ाया जाता है और इस जोखिम में आए दिन इनकी मौत की खबरें आती है. खास बात है कि ज्यादातर मामले लापरवाही के चलते सामने आते हैं. जब लाइनमैन पोल पर काम कर रहे होते हैं तभी इलेक्ट्रिक सप्लाई चालू कर दी जाती है और लाइनमैन की मौत हो जाती है. हैरत की बात ये है कि ये आउटसोर्स कर्मचारी सरकार की संवेदना के क्राइटेरिया से बाहर हैं. इन्हें ना मुआवज़ा मिला न परिवार में किसी को अनुकंपा नियुक्ति दी गई. जो लाइनमैन काम करते हुए घायल हुए ना उन्हें ना तो इलाज ही मिल पाया और न ही किसी लाइनमैन की मौत के बाद उठाई गई सुरक्षा उपकरण दिए जाने की मांग भी पूरी नहीं हो सकी. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि ये आउटसोर्स कर्मचारी किस तरह ऐसे हादसों से अपनी जान बचाएंगे.
ऊर्जा मंत्री का बड़ा बयान, आउटसोर्स कर्मचारियों को देंगे कलेक्ट्रेट रेट पर वेतन
लगभग हर विभाग ही आउटसोर्स पर! इस समय सरकार के कमोबेश हर विभाग में आउटसोर्स कर्मचारी हैं. वन विभाग और नगरीय निकाय में इनकी तादात ज्यादा है, लेकिन अस्थाई ठेका,अंशकालीन, दैनिक वेतन भोगी, अनुबंधित कर्मचारियों समेत कई सारे सरकारी विभागो में ढाई लाख से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारी काम कर रहे हैं.
आउटसोर्स हैं तो ना वेतन ना सुविधा: आउट सोर्स कर्मचारी सरकार के हर विभाग की सबसे मजबूत कड़ी हैं. बावजूद इसके इन कर्मचारियों को ना तो उचित न्यूनतम वेतन मिल पा रहा है, न ही पीएफ काटा जाता है. 2019 दिसम्बर में जारी हुए श्रम विभाग के आदेश के मुताबिक आउटसोर्स कर्मियों को न्यूनतम 23,000 वेतन दिए जाने के लिए कहा गया, लेकिन आदेश का पालन नहीं हुआ. आउटसोर्स कर्मचारी लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि जो आउटसोर्स कर्मचारी जिस विभाग में काम करता है उसका उसी विभाग में संविलियन किया जाए. सभी आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति दिनांक से एरियर समेत न्यूनतम वेतन का भुगतान और पीएफ कटौती जमा कराई जाए. स्वास्थ्य विभाग के एनआरएचएम में काम काम कर रहे आउटसोर्स कर्मचारी केवल छह हजार के वेतन पर हैं. यही वजह है कि अलग अलग विभागों में काम कर रहे आउटसोर्स कर्मचारी अब आर पार की लड़ाई के मूड में हैं. 13 सितम्बर को पहली बार सभी विभागों में काम कर रहे कर्मचारी भोपाल में अपनी मांगो को लेकर बड़ा प्रदर्शन करेंगे.