भोपाल। मप्र में 2013 के विधानसभा चुनावों के बाद राजनीतिक पार्टियां जातिगत समीकरणों पर फोकस करने लगी हैं. जिस तरह से यूपी बिहार में पॉलिटिकल पार्टियां जातियो को साधने के साधन तैयार करती थी, उसी तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी जातियों के समीकरण जुटाकर बीजेपी औऱ कांग्रेस दोनों ही अपना अपना वोट बैंक साधने में जुट गई हैं. बीजेपी को 2018 में दलितों की नाराजगी का शिकार होना पड़ा ,तो वहीं ब्राह्मण बहुल माने जाने वाले विंध्य में बीजेपी को बढ़त मिली और कांग्रेस को अपनी सीटें गंवानी पड़ीं.
बीजेपी का फोकस ओबीसी पर: बीजेपी ने निकाय चुनावों में ओबीसी वर्ग को आरक्षण के बगैर चुनाव नहीं कराने का फैसला लिया. निकाय चुनाव में ढोल पीटा गया कि बीजेपी ने ओबीसी को उसका हक दिलाया, जिसका उसे चुनावों में फायदा भी मिला. इसके पहले कमलनाथ सत्ता में आए तो उन्होंने भी ओबीसी आरक्षण के जिन्न को बाहर निकालकर विधानसभा में इस वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल पास कर दिया, हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगा दी. अब विधानसभा चुनावों के लिए महज एक साल ही बचा हुआ है ऐसे में जाति के आधार पर वोट बैंक को जुटाने की कवायद शुरु हो गई है.
कर्मचारियों को भी कई सौगातें: कर्मचारियों और पेंशनर्स का डीए बढ़ाने के बाद चर्चा है कि दिवाली से पहले कर्मचारियों को राहत देने की एक और योजना तैयार है. डीए और एरियर दिया जाने का ऐलान किया जा सकता है. इसके साथ ही सरकार कोर्ट में लटके पदोन्नति में आरक्षण के मामले का भी सरकार हल निकालने में जुटी है. इस मुद्दे को लेकर सामान्य वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी सरकार से नाराज चल रहे हैं. हजारों कर्मचारी बिना पदोन्न्त हुए सेवानिवृत्त हो गए. इसके अलावा राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया, इससे सामान्य वर्ग सहित एससी और एसटी भी असंतुष्ट हैं. सरकार की परेशानी यह है कि इन मुद्दों को लेकर माहौल बनता देख अजाक्स और जयस जैसे संगठन वोट बैंक की जुगत में जुट गए हैं. यही वजह है कि सरकार पदोन्नति के मामले का हल निकालने की कोशिश में जुट गई है.
मध्यप्रदेश में पहले नहीं खेला गया जाति के आधार पर वोटों की जुगाड़ का खेल: प्रदेश की जनता की तासीर की बात करें, तो यहां पर जाति के आधार पर वोट मांगने वाली पार्टियों को जनता ने नकार दिया है . हालांकि यूपी से सटे इलाकों में जरुर जातिगत समीकरणों का फायदा बसपा ने लिया, लेकिन पिछले विधानसभा या उसके पहले के चुनावों में भी देखें तो एमपी की जनता ने जाति के आधार पर वोंट बैंक पर सेंध लगाने वालों को नकारा है. चाहे वो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, सवर्ण समाज पार्टी, बहुजन समाज पार्टी हो या फिर समाजवादी पार्टी.
ग्वालियर चंबल में एट्रोसिटी एक्ट पर मचे बवाल के बाद बढ़ा जाति पर फोकस:
2018 के चुनावों में ग्वालियर चंबल में बीजेपी की हार दलितों के गुस्से की वजह से हुई और प्रदेश से उसकी सरकार चली गई, हालांकि विंध्य में जातिगत समीकरण का बीजेपी को फायदा हुआ उसे 2018 में 30 में से 24 सीटें मिली और कांग्रेस को सिर्फ 6. ग्वालियर चंबल में हुए दंगो का सियासी फायदा भीम आर्मी ने उठाया और अपनी पैठ जमाने की कोशिश की, हालांकि भीम आर्मी को पालिटिकल माइलेज मिलता नहीं दिख रहा है .अंदरखाने कांग्रेस भीम आर्मी को पीछे से सपोर्ट कर रही है, वहीं आदिवासियों को रिझाने के लिए बीजेपी उन्हें सौगातें दे रही है ,लेकिन कांग्रेस जयस के साथ खड़ी दिखाई दे रही है.कांग्रेस के सपोर्ट के चलते जयस भी लगातार आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सक्रीय दिखाई दे रही है.
बीजेपी को सता रहा है डर, सर्वे ने उड़ाई नींद: बीजेपी के ग्वालियर चंबल इलाके के सर्वे ने उसकी नींद उड़ा दी है. फिलहाल इस इलाके की 34 सीटों में बीजेपी के खाते में 16 सीटें हैं, हालांकि 2018 में उसे खासा नुकसान हुआ था. कांग्रेस को 26 सीटें मिली थी. बीजेपी ने इलाके का एक सर्वे भी कराया है जिसमें सामने आया है कि यहां 35 फीसदी सिंटिग एमएलए जिसमें मंत्री भी शामिल हैं वे चुनाव हार रहे हैं, वहीं विंध्य में इस बार बीजेपी के खिलाफ लोगों में गुस्सा है. विंध्य में 40 फीसदी बीजेपी विधायकों से जनता नाराज है. 2028 में बीजेपी यहां 24 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसे यहां पर 50 फीसदी सीटों का नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है .
महाकौशल में सुधार की जरुरत, मालवा निमाड पर भी हो ध्यान: महाकौशल में 38 सीटें हैं 2018 में बीजेपी के खाते में 13 सीटें आई, जबकि कांग्रेस के खाते में 24 सीटें गईं, हाल ही में नगरीय निकाय चुनावों में बीजेपी को यहां झटका लगा है. यहां के सर्वे के मुताबिक बीजेपी अपना विश्वास कायम नहीं रख पा रही है. यदि स्थिति नहीं संभाली तो पार्टी के खाते में यहां भी सीटें भी कम हो जाएगीं. मालवा और निमाड़ को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. इस क्षेत्र में भी पार्टी को जबरदस्त नुकसान हुआ है. 2013 में बीजेपी ने यहां की 66 में से 56 सीटें जीती थीं, लेकिन 2018 में उसे सिर्फ 29 सीटें मिली हैं. बीजेपी को यहां 27 सीटों का नुकसान हुआ है. वहीं कांग्रेस को 29 सीटें मिली थी. बुंदेलखंड में 2018 में बीजेपी को खासा नुकसान हुआ था. पिछली बार ओबीसी वर्ग ने बीजेपी को जीत दिलाई थी , लेकिन इस बार ओबीसी वर्सेस ब्राम्हण होने के आसार नजर आ रहे हैं, सवर्ण मतदाता भी पार्टी से नाराज हैं.
प्रीतम लोधी ने बनाया लोधी vs ब्राह्मण समीकरण: प्रदेश में लोधी वर्सेस ब्राम्हणों के बीच तनातनी जमकर देखी जा रही है , बीजेपी ने बिना देर किए प्रीतम लोधी को बाहर का रास्ता दिखा दिया , पार्टी को लगा कि प्रीतम लोधी के बयान से पार्टी से सवर्ण नाराज हो जाएगा , इसके हटकर बात करें तो बीजेपी का फोकस आने वाले चुनाव में ओबीसी वर्ग पर हैं . क्योकि प्रदेश में इनकी संख्या 52 फीसदी है , वहीं दलित समाज के महापुरुषों को लेकर बीजेपी बड़े कार्यक्रम करने वाली है , जिसमें उस जाति के महापुरुषों को बस्ती संपर्क के दौरान याद किया जाएगा . वहीं आदिवासियों में किस समुदाय के कितने वोटर्स हैं , इसका डेटा तैयार कर सियासी पार्टियां अपना पांसा फेंक रही हैं .
नेताओं के अपने अपने तर्क: बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का कहना है कि बीजेपी कभी भी जाति आधारित राजनीति नहीं करती, बल्कि बीजेपी सबका साथ सबका विकास का नारा लेकर चलती है. बीजेपी ने हमेशा विकास को तवज्जो दी है. ये तो कांग्रेस का चरित्र है जो लोगों को जाति में बांटकर उनको वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती है .
वहीं पूर्व मंत्री पीसी शर्मा का कहना है कि बीजेपी ने अंग्रेजों की नीति फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई है, सत्ता का दुरुपयोग करते हुए आपस में जाति में वैमनस्यता पैदा करना इनका काम है. इनका मानना है कि कैसे भी हो लोगों का वोट मिलना चाहिए, बीजेपी की सरकार में हमने देखा कि ग्वालियर चंबल सहित प्रदेश के कई इलाको में किस तरह आपस में दंगे फसाद हुए. जातियों को बांटने का काम बीजेपी कर रही है.