भोपाल। बीजेपी की बदलती गाइडलाइन से नेताओं के मंसूबों पर पानी फिर रहा है, लेकिन दूसरी तरफ पार्टी अपने ही उसूलों पर पूरी तरह से अमल नहीं कर पा रही.बीजेपी में एक व्यक्ति एक पद का फार्मूला पार्षद प्रत्याशियों के मामले में नहीं चला, पार्टी ने आधा दर्जन से अधिक ऐसे नेताओं को टिकट बांटे जो संगठन में किसी न किसी पद पर हैं. हालांकि जनता ने इस पर फुल स्टॉप लगाते हुए परिवारवाद नहीं चलने दिया. (MP Political Parties break own Guideline) (MP Party Politics)
गाइडलाइन से भटकी पार्टियां: पार्टी विद डिफरेंस का नारा देने वाले बीजेपी अपनी ही गाइडलाइन से भटक गई है. टिकिट वितरण से पहले पार्टी ने कहा था कि वह एक व्यक्ति एक पद के फार्मूले पर काम करेगी, लेकिन निकाय चुनाव में जिला महामंत्री, उपाध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्ष तक शामिल हैं जो कि मैदान में चुनावी मुकाबले में उतरे हैं. प्रदेश में बीजेपी केंद्र सरकार की परिवारवाद की नो एंट्री वाली गाइडलाइन भूल गई है. वही कांग्रेस भी अपने क्राइटेरिया से भटक गई है, टिकट वितरण में कांग्रेस ने बाहरी व्यक्ति को टिकट नहीं देने क्राइटेरिया तय किया था, लेकिन यहां बाहरी लोगों को काफी टिकट बांटे गए.
बीजेपी के वह नेता जो संगठन में पद पर हैं: रविंद्र यति, जिला महा मंत्री हैं, किशन सूर्यवंशी जिला महामंत्री, राहुल राजपूत जिला उपाध्यक्ष, मनोज राठौर जिला उपाध्यक्ष, अशोक वाणी मंडल अध्यक्ष और नीरज पचौरी जिला अध्यक्ष (सुमित पचौरी के चचेरे भाई). यह वे लोग हैं जो कि संगठन में पद पर हैं तो भी इन्हें पार्टी ने पार्षद के लिए टिकट दिया है.
हमने परिवारवाद पर ब्रेक लगाया, अब कई ऐसे नेता है जो पार्टी के कार्यकर्ता है और वर्षों से जिनकी जनता के बीच अच्छी छवि है और वह लगातार मेहनत करते हैं तो ऐसे में पार्टी वही चेहरा चुनाव में उतारेगी जो जीत योग्य हो. यह आरोप झूठे हैं कि बीजेपी परिवारवाद को वरीयता दे रही है. यह कांग्रेस में होता है, जहां की परिवारवाद को ही प्राथमिकता दी जाती है. यदि बीजेपी ऐसा करती तो राज्यसभा में हमने जो चेहरे भेजे हैं, वह किसी परिवार से जुड़े होते, लेकिन यह चेहरे जमीनी कार्यकर्ता हैं.
- वी डी शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष, बीजेपी
कांग्रेस में भी ऐसे ही कुछ स्थिति: अमित शर्मा जिला प्रवक्ता इनकी पत्नी मैदान में, जिला उपाध्यक्ष मोनू सक्सेना की पत्नी पार्षद के लिए खड़ी हुई, संतोष कंसाना जिला महिला कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे देवांशु कन्साना को पार्टी ने पार्षद का टिकट दिया, प्रियंका मिश्रा जिला अध्यक्ष कैलाश मिश्रा की बहू पार्षद प्रत्याशी, मनजीत महाराज नयापुरा ब्लॉक अध्यक्ष पार्षद प्रत्याशी हैं. हालांकि बीजेपी ने परिवारवाद पर बहुत कुछ ब्रेक लगाया, लेकिन कांग्रेस में भी परिवारवाद ही टिकट का पैमाना बना है.
बीजेपी सिर्फ बातें करती है, हमारे यहां जो मेहनत करता है पार्टी उसी को तवज्जो देती है.जहां तक पार्टी गाइडलाइन की बात है तो पूरी तरह से कांग्रेस ने टिकट वितरण में नियमों का पालन किया है.
पी सी शर्मा , कांग्रेस नेता
नेताओं की पत्नियों को मिला मेयर का टिकट: बीजेपी ने परिवारवाद का विरोध किया लेकिन मेयर के टिकट नेताओं की पत्नियों को दिए गए, इसी कड़ी में सागर, देवास, खंडवा में नेताओं के रिश्तेदारों को पार्टी ने टिकट दिया. कांग्रेस से भाजपा में आए सुशील तिवारी की पत्नी संगीता तिवारी को टिकट दिया गया तो देवास में गायत्री राजे परिवार के समर्थक दुर्गेश अग्रवाल की पत्नी गीता अग्रवाल को उम्मीदवार बनाया. इसी तरह खंडवा में पूर्व विधायक हुकुम यादव की बहू अमृता यादव को टिकट दिया गया, अन्य जगहों पर भी नेताओं की पत्नी और पुत्र को टिकट मिला.
जनता ने लगाई परिवारवाद पर रोक: टिकिट वितरण में पार्टियां भले ही कितनी ही मन मानी कर लें, लेकिन जनता की अदालत में जाने के बाद जनता ने पार्टियों के परिवारवाद पर करारा प्रहार किया है. जनता ने परिवारवाद नहीं चलने दिया. विधानसभा स्पीकर गिरीश गौतम के बेटे राहुल गौतम ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा लेकिन वे चुनाव हार गए, वहीं बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा ने बहू और बेटी दोनों को जनपद सदस्य के लिए चुनाव में उतारा, लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए. खरगोन में पूर्व बीजेपी विधायक के बेटे सरपंची का ही चुनाव हार गए. इसका मतलब साफ है. कथनी और करनी में अंतर करने वाले राजनीतिक दल भले ही अपने चहेतों और पार्टी पादाधिकारियों के रिश्तेदारों को टिकट दे दें, लेकिन वे चुनाव जीतेंगे इसकी गारंटी जनता की अदालत में ही मिलेगी. जो फिलहाल होता नजर नहीं आ रहा है. जनता परिवारवाद पर रोक लगाती नजर आ रही है.