भोपाल। क्या 3 बुजुर्ग, लेकिन राजनीतिक रूप से बेहद परपक्व नेता आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे. कांग्रेस आलाकमान ने 62 साल के मुकुल वासनिक से प्रदेश प्रभारी का पद वापस लेकर करीब 77 साल के जय प्रकाश अग्रवाल को मध्यप्रदेश का प्रभारी बनाया है. जेपी अग्रवाल अब अपने से दो साल छोटे 75 साल के अनुभवी नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के साथ मिलकर आगामी विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति तैयार करेंगे. 5 बार के सांसद और संगठन के नेता माने जाने वाले जयप्रकाश के सामने मध्यप्रदेश में कई चुनौतियां हैं, जिसमें से सबसे बड़ी पार्टी संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत और एकजुट कर चुनाव के लिए खड़ा करना है.
संगठन को मजबूत करना बड़ी चुनौती: मध्यप्रदेश के प्रभारी बनाए गए जेपी अग्रवाल संगठन के व्यक्ति माने जाते हैं. वे 4 बार खुद चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे हैं. दिल्ली में पार्टी संगठन में कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं में वे रहे हैं, लिहाजा मध्यप्रदेश कांग्रेस के लिए करो और मरो वाली इस स्थिति में चुनाव में उनकी संगठन में भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी. हालांकि कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए उन्हें जमीन पर खूब पसीना बहाना होगा. वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा कहते हैं कि जेपी अग्रवाल के सामने सबसे बड़े चुनौती बूथ स्तर तक पार्टी को मजबूत और एकजुट करने की है. खास बात है कि निकाय चुनाव में 4 महापौर जीतने से कांग्रेस उत्साहित है, लेकिन दूसरा तथ्य यह भी है कि कई बूथों पर कांग्रेस के पोलिंग एजेंट तक नहीं थे. जाहिर है यह स्थिति आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए नुकसानदायक हो सकती है.
पार्टी को एकजुट करना बड़ी चुनौती: नए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी जेपी अग्रवाल के सामने एक बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट करने की भी होगी. प्रदेश में फिलहाल एक पार्टी के अंदर कई पार्टी बनी हुई हैं. निकाय चुनाव में कई स्थानों पर पार्टी में अंदररूनी कलह सामने आई. नतीजा हार के रूप में सामने आया. इंदौर नगर निगम में कांग्रेस की हार के पीछे अंदरूनी विरोध को बड़ी वजह माना गया. इसी तरह विन्ध, मालवा-निमाड, ग्वालियर-चंबल इलाकों में नेताओं के बीच आपसी खींचतान कई बार सामने आ चुकी है. जातिगत समीकरणों को साधते हुए अग्रवाल यदि सभी को एक झंडे के नीचे लाने में सफल रहे, तो नतीजे कांग्रेस के पक्ष में भी हो सकते हैं.
दिल्ली से दूर एमपी क्यों भेजे गए अग्रवाल: जेपी अग्रवाल की नियुक्ति को लेकर सवाल उठ रहा है कि दिल्ली की राजनीति में बेहद सक्रिय जयप्रकाश अग्रवाल को मध्यप्रदेश क्यों भेजा गया. बताया जाता है कि जेपी अग्रवाल पिछले कुछ समय से दिल्ली में सदस्यता अभियान के जरिए पार्टी के तमाम पुराने नेताओं को एकजुट करने में जुटे थे, लेकिन पार्टी आलाकमान चाहती है कि दिल्ली में नई लीडरशिप को काम करने का स्पेस मिल सके, इसलिए अग्रवाल को मध्यप्रदेश भेजा गया है, जिससे संगठन को एकजुट करने के उनके अनुभव को लाभ एमपी के आगामी चुनाव में मिल सके.
संगठन में काम का अच्छा अनुभव: जयप्रकाश अग्रवाल का लंबा राजनीतिक कैरियर रहा है. वे दिल्ली से चार बार चुनकर लोकसभा जा चुके हैं. 1984, 1989, 1996 और 2006 में वे चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. 2006 में वे राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं. 1992 में वे प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रहे हैं.जयप्रकाश अग्रवाल गांधी परिवार के भरोसेमंद सिपाही माने जा सकते हैं. जेपी अग्रवाल को 1992 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का सदस्य बनाया गया था. उन्हें संगठन में कार्य करने की बेहतर कार्यशैली के लिए पहचाना जाता है. दिल्ली में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद 2013 में उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी आलाकमान को अपना इस्तीफा सौंप दिया था. हालांकि दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष रहते तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से उनकी तनातनी की खबरें सुर्खियां बनती रही हैं.