भोपाल। एक बार आप जनप्रतिनिधि बन गए तो आप का करोड़पति बनना तय है, ये हम नहीं बल्कि जनसेवक बनने के बाद नेताओं की कुंडली बोलती है. मध्य प्रदेश में हाल ही में होने जा रहे उपचुनावों के 90 फीसदी प्रत्याशी भी करोड़पति हैं. इनमें से ज्यादातर वे हैं जो पहले विधायक बन चुके हैं और विधायक नहीं भी बने तो पार्टी ने उन्हें कोई न कोई राजनीतिक पद दे दिया, जिससे इनकी संपत्ति में लगातार इजाफा होता गया. एक नजर डालते हैं उपचुनाव में किस्मत आजमा रहे नेताओं की संपत्ति पर.
खंडवा (लोकसभा सीट)
खंडवा लोकसभा उपचुनाव की बात कर ले तो यहां पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों के प्रत्याशियों की संपत्ति करोड़ों में है. कांग्रेस के प्रत्याशी राज नारायण सिंह ने आयोग को दिए एफिडेविट में अपनी संपत्ति साढ़े तीन करोड़ रुपए बताई है, तो वही ज्ञानेश्वर पाटिल के पास तकरीबन सवा तीन करोड़ रुपए की संपत्ति है.
जोबट (विधानसभा)
जोबट एक आदिवासी बहुल क्षेत्र हैं और तमाम राजनीतिक पार्टियां यहां आदिवासियों के दशा सुधारने के नाम पर राजनीति करती हैं. आदिवासियों की आर्थिक स्थिति भले ही उतनी उन्नति ना हुई हो लेकिन इनके जनप्रतिनिधियों ने अच्छी खासी संपत्ति बना ली है. कांग्रेस ने यहां से महेश यादव को टिकिट दिया है. आयोग को दिए गए ब्यौरे में महेश यादव ने अपनी संपत्ति 50 लाख बताई है. हालांकि क्षेत्र के लोग इसे उनही महज ऑन रिकॉर्ड संपत्ति मानते हैं, स्थानीय लोगों के मुताबिक महेश करोड़ों के आसामी हैं. आपको बता दें कि इन पर शराब और रेत उत्खनन के आरोप भी लगते रहे हैं.
पृथ्वीपुर (विधानसभा)
पृथ्वीपुर विधानसभा पर कांग्रेस ने नितेंद्र सिंह ,जो कि पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह के बेटे हैं को टिकिट दिया है. इन्होंने भी अपनी संपत्ति करोड़ों में दिखाई है, तो वही निर्दलीय चुनाव लड़ रहे अखंड प्रताप सिंह जो कि पूर्व मंत्री भी रहे हैं इनकी संपत्ति भी करोड़ों में है.
रैगांव (विधानसभा)
रैगांव विधानसभा के दोनों प्रत्याशियों की संपत्ति बाकियों के मुकाबले कम है, लेकिन यहां भी दोनों उम्मीदवार लखपति हैं.
विधायक बनने के बाद हजार गुना तक बढ़ी संपत्ति -ADR
विधायकों की संपत्ति और उन पर दर्ज प्रकरणों का विश्लेषण एडीआर और मप्र इलेक्शन वॉच है. इन्ही मामलों का विश्लेषण करने वाली रोली शिवहरे कहती हैं की जो आंकलन किया गया उसमें विधायकों की संपत्ति में 1000 गुना तक की वृद्धि हुई है. एडीआर ने इसकी इनकम टैक्स से शिकायत भी की है. रोली का मानना है कि जो विश्लेषण सामने आया उसमे पाया गया कि जिन नेताओं की संपत्ति शुरू में ना के बराबर थी. उनके विधायक या फिर जनप्रतिनिधि बनने के बाद उनकी संपत्ति में 100 गुना से लेकर 1000 गुना तक की वृद्धि हुई है.
गलत तरीके से अर्जित संपत्ति की हो जांच
जनप्रतिनिधी या विधायक बन जाने के बाद संपत्ति में बढ़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी होना कोई बड़ी बात नहीं है. जन प्रतिनिधियों का मानना है की यदि कोई अपनी संपत्ति की अधिकारिक रूप से घोषणा करता है तो इस पर आपत्ति नहीं उठानी चाहिए, हां लेकिन संपत्ति किसी यदि गलत तरीके से अर्जित की है तो उसकी जांच होनी चाहिए, बीजेपी सरकार में पूर्व मंत्री रहे उमाशंकर गुप्ता का कहना है कि जो भी विधायक अपनी संपत्ति का ब्यौरा देता है वह उसके द्वारा अर्जित की जाती है और यदि अनैतिक तरीके से संपत्ति कमाई गई है तो उस पर कार्रवाई की जानी चाहिए.
बीजेपी ने नेता कालेधंधों में लिप्त- नरेंद्र सलूजा
ऐसा नहीं है कि इस दौरान सिर्फ बीजेपी के नेताओं या विधायकों की संपत्ति बढ़ी है कांग्रेस ने भी करोड़पति उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं. बावजूद इसके वह अपने नेताओं पर बात करने को तैयार नहीं है. कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहते हैं कि हम देख रहे हैं बीजेपी के विधायक और मंत्रियों की संपत्ति में बेहिसाब बढ़ोतरी हो रही क्योंकि इनके विधायक और मंत्री काले कारनामों और अवैध धंधों में जुटे हुए हैं.
दर्ज होती है सिर्फ शिकायत,कार्रवाई नहीं
खास बात यह है कि सांसदों, विधायकों या जनप्रतिनिधियों की संपत्ति और उसमें होने वाली बढ़ोत्तरी का हिसाब किताब रखने वाली एडीआर या इलेक्शन वॉच जैसी संस्थाएं इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर सकती हैं. वे जनप्रतिनिधियों की संपत्ति और काली कमाई का ब्यौरा जनता के सामने रख सकती हैं और इन मामलों में इनकम टैक्स में शिकायत दर्ज कराती हैं. बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों की सरकार होने या इनके रसूखदार होने के चलते इनकी तूती बोलती है. यही वजह है कि चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में, इन पर आर्थिक अपराध के मामले में कार्रवाई करने वाले तमाम विभागों की रेड का प्रतिशत बहुत कम होता है.