भोपाल। सीएम शिवराज सिंह को बतौर मुख्य़मंत्री 17 साल हो गए. हाल ही में इसका उत्सव भी मनाया गया. खास बात यह है इन 17 सालों में मध्य प्रदेश बीजेपी में उनके कद का कोई दूसरा नेता नहीं उभर सका. पांव -पांव वाले भैया से प्रदेश के बच्चे बच्चियों की मामाजी बनने और अब बुलडोजर मामा कहे जा रहे शिवराज राजनीति के भी माहिर खिलाड़ी हैं. अपने धुर विरोधियों को जिस तरह से उन्होंने दरकिनार किया है उसका नतीजा यह है कि बीजेपी लंबे समय से एमपी में शिवराज का विकल्प नहीं ढूंढ पा रही है. ऐसे में जब एक बार फिर चुनाव नजदीक है, उनके विरोधी भी हवा का रुख भांप चुके हैं. कैलाश विजयवर्गीय हो या फिर नरोत्तम मिश्रा सभी खुली जुबान से यह स्वीकार कर रहे हैं कि 2023 में पार्टी का चेहरा शिवराज ही होंगे.
विरोधी माने जाने वाले नेता भी शिवराज के मुरीद
मध्य प्रदेश का आगामी 2023 में होने वाला विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. यगह लगभग तय भी माना जा रहा है. इस बात की पुष्टि हाल ही में आए उन नेताओं के बयानों से भी होती है जो कभी खुद ही सीएम की रेस में शामिल माने जाते रहे हैं. ये लोग अब खुद ही कहने लगे हैं कि प्रदेश में बीजेपी की नैया शिवराज ही पार लगा सकते हैं. खास बात ये है कि बीते कुछ सालों में शिवराज सिंह ने जिस तरह से लॉबिंग को खत्म की है, उसे देखते हुए अब उनके प्रतिद्वंदी समझ गए है कि जब तक एमपी में शिवराज रहेगें शायद तब तक उनका नंबर नहीं आएगा.
कैलाश और नरोत्तम मिश्रा ने भी दोहराई यही बात
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और शिवराज के कद के नेता माने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय भी इस बात को कह चुके हैं कि 2023 में होने वाला विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. मौजूदा गृहमंत्री और सीएम के खिलाफ लॉबिंग के आरोपों में लगातार वहीं बात नरोत्तम मिश्रा ने दोहराई कि 2023 का विधानसभा चुनाव शिवराज के नेतृत्व में ही लड़ेगे.
सफल नहीं हुई विरोध की कोशिशें : शिवराज के विरोधी माने जाने वाले और बंगाल चुनाव के प्रभारी रहे कैलाश विजयवर्गीय ने भी कुछ महिनों पहले भोपाल में पार्टी के कई नेताओं से मुलाकात की, जिसमें गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश संगठन महामंत्री शामिल थे. इन मुलाकातों के दौरान लगातार ये अटकलें चलती रहीं की राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है. कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी पेश करते रहे हैं. शिवराज का विकल्प बनने के प्रयास तो खूब हुए लेकिन दिल्ली दरबार से इन नेताओं को कोई भाव नहीं मिला
संघ और भाजपा का बड़ा धड़ा शिवराज के समर्थन में : माना जाता है कि 2018 में अमित शाह के साथ शिवराज का एक विरोधी धड़ा नहीं चाहता था कि शिवराज फिर से सीएम बनें. इसके पीछे तर्क था कि प्रदेश में बीजेपी के चुनाव हारने की वजह शिवराज का पार्टी के नेताओं की राय लिए बगैर एकतरफा टिकिट नहीं बांटते. विरोधियों ने हार का ठीकरा शिवराज पर फोड़ने की कोशिश की, लेकिन इन सबके बावजूद पीएम मोदी ने शिवराज पर भरोसा जताया और कहा गया कि शिवराज को अनुभव है और वे योग्य व्यक्ति हैं. दूसरी तरफ शिवराज संघ के भी दुलारे शिवराज हैं यही वजह है कि शिवराज के खिलाफ जब भी कोई आवाज उठी संघ शिवराज के समर्थन में रहा है.
शिवराज का नम्र स्वभाव और सोशल इंजीनियरिंग है सफलता का राज
शिवराज सिंह चौहान एक जननेता हैं, यही वजह है कि वे खुद को सामान्य आदमी की तरह रिप्रसेंट करते हैं और सीधे जनता से जुड़ते हैं. लोगों के बीच जाकर उनके बीच मिलना, उनकी परेशानी सुनना और उस पर कार्रवाई का भरोसा देना यही सब चीजें उन्हें कॉमन मैन का नेता बनाती हैं.
शिवराज और पीएम मोदी के नाम पर जनता के बीच जाने की रणनीति
हाल ही में हुए 5 राज्यों के चुनावों में बीजेपी को 4 राज्यों में बंपर जीत मिली है. इसके बाद केेंद्रीय हाईकमान ने नई रणनीति के तहत काम करना शुरु कर दिया है. जिसमें अब चुनाव के पहले कोई सीएम का चेहरा घोषित करके चुनाव नहीं लड़ा जाएगा. बल्कि मोदी के नाम पर ही पार्टी लोगों के बीच जाकर वोट मांगेगी, पार्टी सूत्रों के मुताबिक मप्र सहित दूसरे राज्यों में जहां चुनाव होगें वहां पर पीएम मोदी के नाम को ही जनता के बीच ले जाया जाएगा.