भोपाल। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कर्मचारियो की नाराज़गी क्या एक बार फिर पुरानी कहानी दोहरा सकती है. क्या चुनावों में 2003 के जैसा नतीजा हो सकता है. क्योंकि इस बार भी प्रदेश सरकार से नाराज कर्मचारी अपनी 30 सूत्रीय मांगों को लेकर आर या पार की लड़ाई के मूड में हैं. प्रदेश के साढ़े सात लाख से ज्यादा कर्मचारी चुनावी साल की शुरुआत में सरकार को अपनी ताकत दिखाने की तैयारी कर रहे हैं. तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ ने दिसम्बर तक का सरकार को अल्टीमेटम दिया है और मांगे ना माने जाने की स्थिति में जनवरी से आंदोलन के लिए मैदान में उतर जाएंगे. ऐसे में जाहिर है नाराज कर्मचारियों को शांत करना और उनकी मांगों को मानना सरकार के लिए किसी इम्तेहान से हम नहीं दिखाई देता है.
सबसे अहम मांग पुरानी पेंशन की हो बहाली: आंदोलन की धमकी देने वाले तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ की जो प्रमुख मांगे हैं उनमें-
- नई पेंशन स्कीम को समाप्त कर पुरानी पेंशन स्कीम सभी कर्मचारियों के लिए लागू की जाए.
-पदोन्नति पर लगी रोक हटाकर हाईकोर्ट के निर्देश के मुताबिक पदोन्नति की जाए.
- लिपिकों की वेतन विसंगति दूर की जाए. राज्य के कर्मचारियों के केन्द्र के समान ही मंहगाई भत्ता दिया जाए.
- अनुकंपा नियुक्ति में सीपीसीटी की पूर्ति ना करने पर सेवा समाप्ति की शर्त हटाई जाए.
- सरकार के सभी विभागो में काम कर रहे दैनिक वेतन भोगी, संविदा ,स्थाई कर्मी ,आउट सोर्स पर काम कर रहे कर्मचारियों को नियमित किया जाए.
- प्रदेश के कर्मचारियों के केन्द्र के कर्मचारियों के समान सातवे वेतनमान में गृह भाड़ा भत्ता व अन्य भत्ते दिए जाएं.
- राज्य के कर्मचारियों की पेंशन हेतु मान्य आयु सीमा 33 वर्ष के स्थान पर 25 वर्ष की जाए.
- तृतीय वर्ग कर्मचारी संगठन का ऐसा 30 सूत्रीय मांग पत्र है.जिसमें सहायक शिक्षक, शिक्षक, हैंडपंप तकनीशियन तक के हर वर्ग की मागें शामिल की गई हैं.
सरकार को भारी ना पड़ जाए अनदेखी: कर्मचारी संगठन के प्रदेश सचिव उमा शंकर तिवारी चेतावनी देते हुए कहते हैं कि इस समय प्रदेश में नियमित, स्थाई, संविदा शिक्षक समेत सभी कर्मचारियों को लेकर साढे सात लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं. चुनावी वर्ष में पुरानी पेंशन बहाली समेत अन्य मुद्दों पर सरकार ने अगर कर्मचारियो की मांग पर ध्यान नही दिया तो सरकार को कर्मचारियों की नाराजगी भारी पड़ सकती है. हमने दिसम्बर तक का सरकार को अल्टीमेटम दिया है. इसके बाद जनवरी 2023 से कर्मचारी सड़कों पर सरकार के खिलाफ आर पार की लड़ाई में उतर जाएंगे.
क्या दिग्विजय वाली गलती करेंगे शिवराज: साल 2003 में दिग्विजय सिह की 10 साल की सत्ता जाने की बड़ी वजह थी कर्मचारियों की नाराज़गी थी. उस समय कर्मचारी 2002 से लेकर 2003 तक का 24 महीने का मंहगाई भत्ता ना दिए जान से सरकार से नाराज़ थे. इसके अलावा दिग्विजय सरकार की बड़ी चूक साबित हुई थी करीब 28 हजार से ज्यादा दैनिक वेतन भोगियों को नौकरी से हटा देने का आदेश जारी करना. उस समय दिग्विजय सिंह का वो बयान भी सुर्खियों में रहा था कि चुनाव प्रबंधन से जीते जाते हैं, कर्मचारियों को साधने से नहीं. खास बात यह है कि 2019 के आम चुनाव में दिग्विजय सिंह ने अपनी सियासी भूल स्वीकार की और भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लडते हुए कर्मचारियों से माफी भी मांगी थी.