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MP Congress : कांग्रेस में नेता-कार्यकर्ता सब दरकिनार, हताश- निराश और बिखरा संगठन, कैसे पूरा होगा मिशन 2023... पढ़ें पूरा राजनीतिक विश्लेषण - मध्य प्रदेश कांग्रेस में कलह

अगले साल मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. प्रदेश में कांग्रेस पहले से ही कमजोर है. हाल ही में आए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद नेता और हताश हो गए हैं. भारी अंतर्कलह, अंतर्विरोध, गुटबाजी के चलते कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए मिशन 2023  बहुत बड़ी चुनौती है. सबसे बड़ी समस्या प्रदेश के कांग्रेस नेताओं को कोई दिशा-निर्देश देने वाला नहीं है. इससे नेताओं और कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति है. (Confusion in Madhya Pradesh Congress) ( congress leaders sidelined in MP)

Madhya pradesh congress
मध्य प्रदेश कांग्रेस में कलह
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Published : Mar 19, 2022, 3:35 PM IST

भोपाल। हाल ही में आए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस में चिंता की लकीरें बढ़ा दी हैं. मध्यप्रदेश में डेढ़ साल में विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाने से युवा नेता निराश हैं. वे अपने विधानसभा क्षेत्रों तक सिमटे हैं. इन हालातों में कांग्रेस को मिशन 2023 को पार पाना बड़ी चुनौती हो गई है. 20 मार्च को कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को 2 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन कांग्रेस लगातार रसातल में जा रही है.

अधिकतर समय दिल्ली में रहते हैं कमलनाथ

प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ का अधिकतर समय दिल्ली में गुजरता है. उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर भी चर्चाओं का दौर चला. उनको राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की खबरें भी जोर पकड़ रही हैं. ऐसे में वह मध्यप्रदेश कांग्रेस को कम समय दे पा रहे हैं. वे दिल्ली में बैठकर प्रदेश कांग्रेस को चलाते हैं. कमलनाथ ने सभी जिम्मेदारियां एक दर्जन बुजुर्ग नेताओं को सौंप रखी हैं. प्रदेश में जमीन पर काम करने वाले और लोकप्रिय युवा नेताओं को जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा रही है. ऐसे में वे अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में तक सिमट कर रह गए हैं.

केवल नाम के लिए प्रदेश प्रभारी

मार्च 2020 में कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता से विदाई के बाद अप्रैल 2020 में तत्कालीन प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया को हटाकर मुकुल वासनिक को प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वासनिक को प्रदेश प्रभारी बनाए हुए 2 साल होने को है लेकिन वह चुनिंदा मौकों पर ही प्रदेश के दौरे पर आए हैं. मध्यप्रदेश से संबंधित ज्यादातर मामलों में उनका कोई लेना-देना नहीं रहता है.

हाशिए पर हैं सारे बड़ व छोटे नेता

पीसीसी चीफ और नेता प्रतिपक्ष दोनों ही पदों का फिलहाल कमलनाथ ही आसीन हैं. इसको लेकर भी बयानबाजी का दौर चलता रहता है. नेतृत्व परिवर्तन की बात उठती तो है लेकिन होता कुछ नहीं है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल और पूर्व पीसीसी चीफ अरुण यादव जैसे नेता हाशिए पर बने हुए हैं. ये नेता बीच-बीच में अपनी भड़ास सोशल मीडिया के जरिए निकालते रहते हैं. इसके साथ ही कांग्रेस की युवा दमदार नेता जीतू पटवारी, आदिवासी चेहरा उमंग सिंघार और युवा चेहरा जयवर्धन सिंह को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई है.

कांग्रेस को सिंधिया का कोई विकल्प नहीं मिला

कांग्रेस को पिछले 2 साल में प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का कोई विकल्प नहीं मिल पाया है. ऐसे में मिशन 2023 को पार पाना कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती है. हालांकि कांग्रेस के महामंत्री केके मिश्रा का कहना है कि सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस में मतभेद खत्म हो गए हैं. सिंधिया बहुत गुटबाजी फैलाते थे और लीडरशिप के साथ ब्लैकमेलिंग करते थे. अब उस स्तर का कोई नेता नहीं है, जो पार्टी से अपने राजनीतिक और व्यावसायिक हितों के लिए ब्लैकमेलिंग करे.

"शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश को आत्मनिर्भर नहीं, कर्ज निर्भर प्रदेश बना दिया" , पढ़िए

आसन्न खतरा नहीं, 2023 अस्तित्व की लड़ाई : केके मिश्रा

प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री केके मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस के लिए फिलहाल कोई भी आसन्न खतरा नहीं है. सारे लीडर कमलनाथ के नेतृत्व में काम कर रहे हैं. मिश्रा का कहना है कि कमलनाथ की डीलरशिप और दिग्विजय सिंह का मैदानी काम. दोनों नेताओं की छांव के नीचे सारे लीडर में कोई डिफरेंस नहीं है. मिश्रा का कहना है कि अभी उतनी बड़ी कोई अनबन नहीं है कि कोई नुकसान हो. कमलनाथ सीनियर नेता है और उनके छाते के नीचे सभी एक हैं. मिश्रा का मानना है कि दोनों नेताओं के चलते कांग्रेस के मिशन 2023 को लेकर कोई चिंता नहीं है. यह अस्तित्व की लड़ाई होगी और सभी को साथ मिलकर लड़ना होगा.
कैसे होगा भाजपा के मजबूत संगठन से मुकाबला

कमलनाथ कई बार कह चुके हैं कि कांग्रेस का मुकाबला भाजपा से नहीं बल्कि उनके मजबूत संगठन से है. वह लगातार कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के प्रयास कर रहे हैं लेकिन उम्मीद के मुताबिक उन्हें सफलता नहीं मिल रही है. जानकार कहते हैं कि मध्यप्रदेश उन चुनिंदा राज्यों में शामिल है, जहां कांग्रेस आज भी मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है लेकिन यदि यही हाल रहा और आने वाले चुनाव में जनता को कांग्रेस का कोई विकल्प मिल गया तो पार्टी का हाल बेहाल हो जाएगा.

(Confusion in Madhya Pradesh Congress) ( congress leaders sidelined in MP)

भोपाल। हाल ही में आए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणामों ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस में चिंता की लकीरें बढ़ा दी हैं. मध्यप्रदेश में डेढ़ साल में विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाने से युवा नेता निराश हैं. वे अपने विधानसभा क्षेत्रों तक सिमटे हैं. इन हालातों में कांग्रेस को मिशन 2023 को पार पाना बड़ी चुनौती हो गई है. 20 मार्च को कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को 2 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन कांग्रेस लगातार रसातल में जा रही है.

अधिकतर समय दिल्ली में रहते हैं कमलनाथ

प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ का अधिकतर समय दिल्ली में गुजरता है. उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर भी चर्चाओं का दौर चला. उनको राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की खबरें भी जोर पकड़ रही हैं. ऐसे में वह मध्यप्रदेश कांग्रेस को कम समय दे पा रहे हैं. वे दिल्ली में बैठकर प्रदेश कांग्रेस को चलाते हैं. कमलनाथ ने सभी जिम्मेदारियां एक दर्जन बुजुर्ग नेताओं को सौंप रखी हैं. प्रदेश में जमीन पर काम करने वाले और लोकप्रिय युवा नेताओं को जिम्मेदारी नहीं सौंपी जा रही है. ऐसे में वे अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में तक सिमट कर रह गए हैं.

केवल नाम के लिए प्रदेश प्रभारी

मार्च 2020 में कांग्रेस की प्रदेश की सत्ता से विदाई के बाद अप्रैल 2020 में तत्कालीन प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया को हटाकर मुकुल वासनिक को प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वासनिक को प्रदेश प्रभारी बनाए हुए 2 साल होने को है लेकिन वह चुनिंदा मौकों पर ही प्रदेश के दौरे पर आए हैं. मध्यप्रदेश से संबंधित ज्यादातर मामलों में उनका कोई लेना-देना नहीं रहता है.

हाशिए पर हैं सारे बड़ व छोटे नेता

पीसीसी चीफ और नेता प्रतिपक्ष दोनों ही पदों का फिलहाल कमलनाथ ही आसीन हैं. इसको लेकर भी बयानबाजी का दौर चलता रहता है. नेतृत्व परिवर्तन की बात उठती तो है लेकिन होता कुछ नहीं है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल और पूर्व पीसीसी चीफ अरुण यादव जैसे नेता हाशिए पर बने हुए हैं. ये नेता बीच-बीच में अपनी भड़ास सोशल मीडिया के जरिए निकालते रहते हैं. इसके साथ ही कांग्रेस की युवा दमदार नेता जीतू पटवारी, आदिवासी चेहरा उमंग सिंघार और युवा चेहरा जयवर्धन सिंह को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई है.

कांग्रेस को सिंधिया का कोई विकल्प नहीं मिला

कांग्रेस को पिछले 2 साल में प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का कोई विकल्प नहीं मिल पाया है. ऐसे में मिशन 2023 को पार पाना कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती है. हालांकि कांग्रेस के महामंत्री केके मिश्रा का कहना है कि सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस में मतभेद खत्म हो गए हैं. सिंधिया बहुत गुटबाजी फैलाते थे और लीडरशिप के साथ ब्लैकमेलिंग करते थे. अब उस स्तर का कोई नेता नहीं है, जो पार्टी से अपने राजनीतिक और व्यावसायिक हितों के लिए ब्लैकमेलिंग करे.

"शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश को आत्मनिर्भर नहीं, कर्ज निर्भर प्रदेश बना दिया" , पढ़िए

आसन्न खतरा नहीं, 2023 अस्तित्व की लड़ाई : केके मिश्रा

प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री केके मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस के लिए फिलहाल कोई भी आसन्न खतरा नहीं है. सारे लीडर कमलनाथ के नेतृत्व में काम कर रहे हैं. मिश्रा का कहना है कि कमलनाथ की डीलरशिप और दिग्विजय सिंह का मैदानी काम. दोनों नेताओं की छांव के नीचे सारे लीडर में कोई डिफरेंस नहीं है. मिश्रा का कहना है कि अभी उतनी बड़ी कोई अनबन नहीं है कि कोई नुकसान हो. कमलनाथ सीनियर नेता है और उनके छाते के नीचे सभी एक हैं. मिश्रा का मानना है कि दोनों नेताओं के चलते कांग्रेस के मिशन 2023 को लेकर कोई चिंता नहीं है. यह अस्तित्व की लड़ाई होगी और सभी को साथ मिलकर लड़ना होगा.
कैसे होगा भाजपा के मजबूत संगठन से मुकाबला

कमलनाथ कई बार कह चुके हैं कि कांग्रेस का मुकाबला भाजपा से नहीं बल्कि उनके मजबूत संगठन से है. वह लगातार कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के प्रयास कर रहे हैं लेकिन उम्मीद के मुताबिक उन्हें सफलता नहीं मिल रही है. जानकार कहते हैं कि मध्यप्रदेश उन चुनिंदा राज्यों में शामिल है, जहां कांग्रेस आज भी मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है लेकिन यदि यही हाल रहा और आने वाले चुनाव में जनता को कांग्रेस का कोई विकल्प मिल गया तो पार्टी का हाल बेहाल हो जाएगा.

(Confusion in Madhya Pradesh Congress) ( congress leaders sidelined in MP)

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