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Krishna Temple Without Idol राधाकृष्ण के इस अनोखे मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति, कृष्ण के ज्ञान की होती है उपासना

मंदिर में भगवान को भोग भी लगता है. जन्माष्टमी पर प्रभु का जन्म भी होता है और बांके बिहारी झूले में भी झूलते हैं, लेकिन सारी पूजा उपासना भाव की होती है. यह कृष्ण प्रणामी समाज का मंदिर. इस समाज में भगवान कृष्ण के दिए गए ज्ञान की मानसिक पूजा को ही मान्यता दी गई है. Krishna temple without idol, Krishan pranami community only do Gyan pooja

मंदिर में कृष्ण की मूर्ति नहीं ज्ञान की होती है पूजा
Krishna Temple Without Idol
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Published : Aug 18, 2022, 10:07 PM IST

भोपाल. भगवान कृष्ण का एक ऐसा भी मंदिर जहां प्रभु की मूरत नहीं उनके ज्ञान की पूजा होती है. एक मंदिर जहां मूर्ति को Krishna temple without idol नहीं पूजा जाता इस मंदिर में मानसिक पूजा का विधान है. मंदिर में भगवान को भोग भी लगता है. जन्माष्टमी पर प्रभु का जन्म भी होता है और बांके बिहारी झूले में भी झूलते हैं, लेकिन सारी पूजा उपासना भाव की होती है. यह कृष्ण प्रणामी समाज का मंदिर. इस समाज में भगवान कृष्ण के दिए गए Krishan pranami community only do Gyan pooja ज्ञान की मानसिक पूजा को ही मान्यता दी गई है.

Krishna Temple Without Idol
Krishna Temple Without Idol

समाज के आराध्य हैं कृष्ण, लेकिन मूर्ति पूजा नही: राजधानी भोपाल स्थित कृष्ण प्रणामी समाज के इस मंदिर में जब आप उपासना स्थल पर पहुंचेंगे तो चौंक जाएंगे. वजह ये की श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले इस समाज के मंदिर में कृष्ण की मूर्ति ही नहीं है. मूर्ति के स्थान पर श्री कृष्ण के जीवन और ज्ञान को समेटे हुए ग्रंथ रखा हुआ है. इस ग्रंथ को ही पीताम्बर वस्त्र पहनाए गए हैं. ग्रंथ के साथ श्री कृष्ण का मुकुट और मुरली रखी हुई है. ऐसा इसलिए है कि कृष्ण प्रणामी समाज प्रतीक यानि मूर्ति पूजा को मान्यता नहीं देता. इनके पूजन के दो ढंग हैं. एक जिसमें समाज श्री कृष्ण के संसार को दिए गए ज्ञान की पूजा करता है. दूसरा विधान भाव का है. यहां भगवान को सुबह जगाया भी जाता है. दातुन कराई जाती है, भोग स्नान सबकुछ होता है, लेकिन मानसिक पूजा के रुप में. चौपाईयां और भजन गाकर भाव के साथ भगवान से भक्तों का जुड़ाव होता है.

कृष्ण जन्म में भी मूर्ति नहीं : जन्माष्टमी पर भगवान का जन्म यहां धूमधाम से मनाया जाता है. बधाईयां गाए जाती हैं. माखन मिश्री का प्रसाद भी बांटा जाता है. लेकिन खास बात यह है कि इस दिन भी मूर्ति नहीं होती. झूले में श्री कृष्ण का बालस्वरुप नहीं उनके ज्ञान से संचित ग्रंथ होता है. मंदिर के पंडित रुपराज शर्मा बताते हैं, मूर्ति तो किसी मनुष्य ने बनाई है, कल्पना भी किसी मनुष्य की ही होगी, हमारे भगवान तो भाव के भगवान हैं जो हमारे ह्रदय में विराजे हैं. उसी भाव से हम उन्हें बुलाते हैं और उनका जन्म , पूजन पाठ करते हैं. हमारी उपासना आडम्बर रहित है.

कृष्ण की वाणी का उपासक है यह समाज: कृष्ण प्रणामी समाज कृष्ण की वाणी का उपासक है. पंडित रुपराज शर्मा बताते के मुताबिक 'हमारे शास्त्रों में तीन तरह की पूजा का विधान है प्रतीक पूजा, ग्रंथ पूजा और मानसिक पूजा. इसमें मानसिक पूजा श्रेष्ठ है. यूं समझिए कि प्रतीक पूजा अगर ककहरा पढ़ना है तो मानसिक पूजा पीएचडी है. ईश्वर निराकार है उसका कोई आकार नहीं और अक्षर ही हैं जो अविनाशी हैं. कृष्ण का कोई नाम स्वरुप नहीं जो ज्ञात है वो उनकी वाणी है. और हम उसे ही पूजते हैं. प्रणामी धर्म के संस्थापक महामति प्राणनाथ ने 18 हजार 758 चौपाईयों में लिखे इस ग्रंथ में भगवान के स्वरुप का वर्णन किया है. हमारे समाज में प्रभु के दिए ज्ञान की पूजा की जाती है. हमारी जो यह पूजा है वह उपासना का तीसरा सोपान है और यही श्रेष्ठ है.

भोपाल. भगवान कृष्ण का एक ऐसा भी मंदिर जहां प्रभु की मूरत नहीं उनके ज्ञान की पूजा होती है. एक मंदिर जहां मूर्ति को Krishna temple without idol नहीं पूजा जाता इस मंदिर में मानसिक पूजा का विधान है. मंदिर में भगवान को भोग भी लगता है. जन्माष्टमी पर प्रभु का जन्म भी होता है और बांके बिहारी झूले में भी झूलते हैं, लेकिन सारी पूजा उपासना भाव की होती है. यह कृष्ण प्रणामी समाज का मंदिर. इस समाज में भगवान कृष्ण के दिए गए Krishan pranami community only do Gyan pooja ज्ञान की मानसिक पूजा को ही मान्यता दी गई है.

Krishna Temple Without Idol
Krishna Temple Without Idol

समाज के आराध्य हैं कृष्ण, लेकिन मूर्ति पूजा नही: राजधानी भोपाल स्थित कृष्ण प्रणामी समाज के इस मंदिर में जब आप उपासना स्थल पर पहुंचेंगे तो चौंक जाएंगे. वजह ये की श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले इस समाज के मंदिर में कृष्ण की मूर्ति ही नहीं है. मूर्ति के स्थान पर श्री कृष्ण के जीवन और ज्ञान को समेटे हुए ग्रंथ रखा हुआ है. इस ग्रंथ को ही पीताम्बर वस्त्र पहनाए गए हैं. ग्रंथ के साथ श्री कृष्ण का मुकुट और मुरली रखी हुई है. ऐसा इसलिए है कि कृष्ण प्रणामी समाज प्रतीक यानि मूर्ति पूजा को मान्यता नहीं देता. इनके पूजन के दो ढंग हैं. एक जिसमें समाज श्री कृष्ण के संसार को दिए गए ज्ञान की पूजा करता है. दूसरा विधान भाव का है. यहां भगवान को सुबह जगाया भी जाता है. दातुन कराई जाती है, भोग स्नान सबकुछ होता है, लेकिन मानसिक पूजा के रुप में. चौपाईयां और भजन गाकर भाव के साथ भगवान से भक्तों का जुड़ाव होता है.

कृष्ण जन्म में भी मूर्ति नहीं : जन्माष्टमी पर भगवान का जन्म यहां धूमधाम से मनाया जाता है. बधाईयां गाए जाती हैं. माखन मिश्री का प्रसाद भी बांटा जाता है. लेकिन खास बात यह है कि इस दिन भी मूर्ति नहीं होती. झूले में श्री कृष्ण का बालस्वरुप नहीं उनके ज्ञान से संचित ग्रंथ होता है. मंदिर के पंडित रुपराज शर्मा बताते हैं, मूर्ति तो किसी मनुष्य ने बनाई है, कल्पना भी किसी मनुष्य की ही होगी, हमारे भगवान तो भाव के भगवान हैं जो हमारे ह्रदय में विराजे हैं. उसी भाव से हम उन्हें बुलाते हैं और उनका जन्म , पूजन पाठ करते हैं. हमारी उपासना आडम्बर रहित है.

कृष्ण की वाणी का उपासक है यह समाज: कृष्ण प्रणामी समाज कृष्ण की वाणी का उपासक है. पंडित रुपराज शर्मा बताते के मुताबिक 'हमारे शास्त्रों में तीन तरह की पूजा का विधान है प्रतीक पूजा, ग्रंथ पूजा और मानसिक पूजा. इसमें मानसिक पूजा श्रेष्ठ है. यूं समझिए कि प्रतीक पूजा अगर ककहरा पढ़ना है तो मानसिक पूजा पीएचडी है. ईश्वर निराकार है उसका कोई आकार नहीं और अक्षर ही हैं जो अविनाशी हैं. कृष्ण का कोई नाम स्वरुप नहीं जो ज्ञात है वो उनकी वाणी है. और हम उसे ही पूजते हैं. प्रणामी धर्म के संस्थापक महामति प्राणनाथ ने 18 हजार 758 चौपाईयों में लिखे इस ग्रंथ में भगवान के स्वरुप का वर्णन किया है. हमारे समाज में प्रभु के दिए ज्ञान की पूजा की जाती है. हमारी जो यह पूजा है वह उपासना का तीसरा सोपान है और यही श्रेष्ठ है.

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