ईटीवी भारत डेस्क: हिंदू धर्म में त्रयोदशी को बेहद शुभ माना जाता है. त्रयोदशी तिथि भगवान शंकर को समर्पित है और त्रयोदशी तिथि (Trayodashi Tithi) के दिन प्रदोष व्रत (Guru pradosh vrat december ) किया जाता है. त्रयोदशी प्रत्येक महीने दो बार आती है, इसलिए प्रदोष व्रत भी महीने में दो बार किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन विधि पूर्वक भगवान शिव (Lord shiva ji) की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. प्रदोष व्रत (Pradosh vrat april) करने से संतान सुख और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती, विशेषकर चंद्र ग्रह के दोष दूर होते हैं, भगवान शिव (God shiva ji) की प्रसन्नता लिए प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि (Mashik Pradosh april) करना अति उत्तम होता है.
प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है. भगवान शिव प्रदोष व्रत करने वाले अपने भक्तों की मनोकामनाएं जरूर पूरी करते हैं. ऐसा माना जाता है कि शिव जी को प्रसन्न करना बहुत ही आसान है. भगवान शिव (Lord Shiv ji) केवल सामान्य जलाभिषेक और पूजा-अर्चना से ही खुश हो जाते हैं. प्रदोष व्रत अत्यंत शुभ और फलदाई माना जाता है. जो भी व्यक्ति उपवास करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, उसे कभी भी कोई कष्ट नहीं होता.
ये मिलता है लाभ
गुरुवार (Thursday) के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत (Guru pradosh vrat april ) कहा जाता है. इस व्रत का महात्म्य गुरुवार को होने से और अधिक बढ़ जाता है. इस दिन भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु जी (Lord vishnu ji) जी का पूजन भी किया जाता है. जिन लोगों की कुंडली में गुरु ग्रह खराब होता है, उन्हें विशेष तौर पर ये व्रत करना चाहिये. गुरु ग्रह अच्छा होने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है, आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और कर्ज से मुक्ति मिलती है.
गुरु प्रदोष व्रत विधि
प्रदोष व्रत (pradosh vrat) करने के इच्छुक व्यक्ति को त्रयोदशी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए. नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, भगवान का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें अब पूजा स्थान पर दीप प्रज्वलित करके भगवान को फल फूल आदि अर्पित करें. गुरु प्रदोष (Guru pradosh vrat) के दिन स्न्नान आदि के बाद साफ हल्के पीले या गुलाबी कपड़े पहने या स्वच्छ वस्त्र धारण करें. आप मंदिर जाकर भी पूजन कर सकते हैं. अगर आप घर पर पूजा कर रहे हैं तो रेशमी कपड़े से मंडप सजाएं और शिवलिंग स्थापित करें.
गुरु प्रदोष (Guru pradosh vrat) के दिन भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु (Lord Vishnu ji) जी का पूजन भी किया जाता है. भगवान विष्णु गुरुवार के अधिष्ठाता देव हैं इसलिए भगवान विष्णु की विविध प्रकार से पूजा की जाती है, जैसे कि केले के पेड़ के नीचे गाय के घी का दीपक जलाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, विष्णु भगवान के 108 नामों का जाप, नारायण स्तोत्र, लक्ष्मी-नारायण स्तोत्र, विष्णु सहस्त्रनाम आदि का पाठ करें.
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भगवान शिव का गंगा जल से अभिषेक करें और चंदन लगाएं. धूप-दीप प्रज्जवलित कर महादेव और शिव परिवार पार्वती, गणेश (Lord ganesh), कार्तिक, नंदी, शिवगणों की पूजा करें. पूजा के दौरान शिवलिंग का रुद्राभिषेक (Rudrabhishek) जल, दूध, दही, शक्कर, शहद, शुद्ध घी, गन्ने के रस आदि से करें. शिवलिंग पर धतूरा, बेलपत्र और श्रीफल चढ़ाएं. अब आप शिव जी की धुप-दीप, फल और फूल आदि से पूजा-अर्चना करें. शिव पूजा करते समय आप शिव तांडव स्त्रोत, शिव पुराण, शिवाअष्टक और शिव चालीसा का पाठ करें. प्रदोष व्रत (Pradosh vrat) के दिन भगवान शिव को साबुत चावल की खीर का भोग लगाएं तथा भगवान विष्णु को पीले फल फूल अर्पण करें. इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है. भगवान शिव की आरती करें, इस प्रकार गुरु प्रदोष व्रत (Guru pradosh vrat) करने पर हमें भगवान शिव, विष्णु और बृहस्पति देव और चंद्र देव की कृपा प्राप्त होगी.
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गुरु प्रदोष व्रत महत्वपूर्ण समय (Guru pradosh vrat april 2022)
व्रत- गुरु प्रदोष व्रत, 14 अप्रैल 2022
सूर्योदय- सुबह 05:57 बजे
सूर्यास्त- शाम 06:31 बजे
राहुकाल- दोपहर 1:50 बजे से 03:023 बजे
तिथि- त्रयोदशी पूरे दिन (15 अप्रैल रात 03:53 तक)
निशिता मुहूर्त- रात 11:50 बजे से 12:33 बजे तक
गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha)
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य सेना को पराजित कर खत्म कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को आ गया। आसुरी माया से वृत्तासुर ने विकराल रूप धारण कर लिया, जिससे सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। गुरुदेव बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय देता हूं.
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बृहस्पति महाराज बोले "दैत्यराज वृत्तासुर बड़ा ही तपस्वी और कर्मनिष्ठ है. उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया है. पूर्व जन्म में वह चित्ररथ नाम का राजा था. एक बार चित्ररथ अपने विमान से कैलाश पर्वत पर गया. वहां भगवान शिव के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहास पूर्वक बोला - ‘हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे.
चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी भगवान शिव हंसकर बोले- ‘हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है. मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारण जन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!’ चित्ररथ के ऐसे वचन सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे श्राप देती हूं.
माता जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना. गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- ‘वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिव भक्त रहा है अत: हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर भगवान शंकर को प्रसन्न करो.’ देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन करते हुए बृहस्पति प्रदोष व्रत किया. गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में पुनः शांति स्थापित हुई. अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य ही करना चाहिए.