भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र अभी शुरु भी नहीं हुआ है और सियासत अपने चरम पर पहुंचती दिख रही है. नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने सत्र बढ़ाए जाने की मांग की थी. जिस पर संसदीय कार्यमंत्री गोविंद सिंह ने पत्र के जरिए नेता प्रतिपक्ष को जवाब दिया था. संसदीय कार्यमंत्री के इस पत्र का जवाब नेता प्रतिपक्ष ने भी पत्र के माध्यम से ही दिया है. जिसमें उन्होंने अंत में रामायण की एक चौपाई लिखी है.
संसदीय कार्य मंत्री डॉ गोविंद सिंह नेता प्रतिपक्ष को भेजे पत्र में बीजेपी के 15 साल में हुई सदन की कार्यवाही का ब्यौरा भेजा था. अब मंत्री गोविंद सिंह के पत्र का जवाब देते हुए नेता प्रतिपक्ष ने अपने पत्र में लिखा कि आपके पत्र में 4 दिसंबर 2003 से 18 जून 2018 की अवधि में केवल 20 सत्रों का उल्लेख किया है, जिनमें 97 बैठकें होना बताया गया है. वास्तव में इस अवधि में कुल 51 सत्र हुए हैं, जिनमें अधिक संख्या में बैठक संपन्न हुई हैं.
नेता प्रतिपक्ष ने लिखा कि आपके पत्र में आधी अधूरी जानकारी का उल्लेख है. संसदीय कार्य मंत्री होने के नाते आपको निश्चित रूप से समस्त सत्रों की जानकारी होगी. मेरी जानकारी में इस अवधि में 461 बैठक संपन्न हुई हैं एवं अनेक बैठक निर्धारित होने के पश्चात भी प्रतिपक्ष द्वारा सदन ना चलने देने के कारण निरस्त हुई. इसकी पुष्टि विधानसभा के रिकॉर्ड से की जा सकती है.
कांग्रेस ने नहीं किया बैठकों का उल्लेख
गोपाल भार्गव ने आगे लिखा है कि 15वीं विधानसभा के विगत तीन सत्रों में देर रात तक सदन चलाने का भी पत्र में उल्लेख किया है. लेकिन इन बैठकों की संख्या का उल्लेख नहीं किया गया. वास्तव में तीन सत्रों में केवल 20 बैठकें ही संपन्न हुई हैं. जिनमें कामकाज की दृष्टि से देखें, तो केवल 14-15 बैठक में ही शासकीय,अशासकीय एवं जनहित आदि के कार्य हो चुके हैं. क्योंकि प्रत्येक के सत्र की एक- एक बैठक में निधन उल्लेख के पश्चात स्थगित कर दी गई और प्रथम सत्र की तीन बैठकों में सदस्यों की शपथ, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष निर्वाचन एवं राज्यपाल महोदय का अभिभाषण संपन्न हुए.
सदन देर रात तक चलाने की बजाए ज्यादा बैठकें कराए सरकार
नेता प्रतिपक्ष ने लिखा है कि आप ने आगामी सत्र में देर रात तक कार्रवाई चला कर चर्चा कराने का लिखा. तो मेरा फिर कहना है कि देर रात तक सदन चलाने के बजाय बैठकों की संख्या में वृद्धि की जाएगी. तो अधिक सुविधाजनक एवं सार्थक चर्चा हो सकेगी. जहां तक इस सत्र अवधि के निर्धारण हेतु प्रतिपक्ष की सहमति का प्रश्न है. तो मैं फिर दोहराता हूं कि ऐसा पूर्व में हुआ है. यहां तक की प्रतिपक्ष के साथ चर्चा के बाद बनी सहमति के आधार पर सत्र के अंतिम दिन आगामी सत्र की संभावित तिथि भी सदन में घोषित की गई. इसके लिए कोई स्थाई नियम नहीं है. बल्कि स्थापित परंपरा है. क्योंकि यह मौखिक चर्चा महज औपचारिक होती है।जिसका कोई लिखित प्रमाण नहीं होता है. नेता प्रतिपक्ष ने अपने पत्र की समाप्ति रामायाण की चौपाई से की है. जिसमें उन्होंने लिखा कि का वर्षा जब कृषि सुखाने, समय चूक पुनि का पछिताने.