ईटीवी भारत डेस्क : बुधवार और चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है. भगवान गणेश की प्रसन्नता के लिए बुधवार और चतुर्थी का व्रत करने का विधान है. व्रत से शरीर की शुद्धि होती है और स्वाध्याय से मन की शुद्धि होती है. पहले से किसी संकट की स्थिति बनी हो या किसी संकट के आने की उम्मीद हो इसके लिए बुधवार और गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए. संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत हर महीने में कृष्ण चतुर्थी को किया जाता है. हर महीने में शुक्ल पक्ष चतुर्थी को विनायकी गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है. इसमें चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी ली जाती है. यदि 2 दिन का चंद्रोदय व्यापिनी हो तो प्रथम दिन का व्रत करना चाहिए.
माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की जयंती और विनायक चतुर्थी दोनों मनाई जाती है. इस बार विनायकी गणेश चतुर्थी 04 फरवरी 2022 शुक्रवार को है. सुबह 9 बजे से रात 9 ;30 तक चन्द्रदर्शन का समय वर्जित है. अक्षत, फूल से विधिवत पूजन कर, चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए. भली प्रकार उनका पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए स्वयं तेल वर्जित एक बार भोजन करना चाहिए. इसमें व्रति को सुबह उठकर स्नान ध्यान कर दाहिने हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत और फूल लेकर संकल्प करना चाहिए.इस मंत्र को बोलें- मम् वर्तमान आगमिक सकल संकट निरसन पूर्ण सकल अद्विय सिद्धये संकट चतुर्थी व्रतं अहं करिष्ये.
ऋतु राज और बसंत पंचमी का ये है नाता, ऐसे मिलेगा सरस्वती माता का आशीर्वाद
मंत्र के साथ व्रत का संकल्प लेकर दिन भर उसे मौन रहना चाहिए. इसके बाद शाम को एक बार फिर से स्नान ध्यान कर चौकी या बेदी पर गणेश जी की स्थापना करनी चाहिए. इसके बाद गणेश जी के 16 नामों के द्वारा षोडशोपचार कर,उनका पूजन करना चाहिए. कपूर या घी की बत्ती जला कर उनकी आरती करनी चाहिए.इसके बाद मंत्र पुष्पांजलि करनी चाहिए.मंत्र- यज्ञेन यज्ञं अयजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथामानि आसन् तेह नांक महिमानः सचन्तयत्र पूर्वे साध्याः संति देवा:इस मंत्र के बाद सुपारी अक्षत जो भी सामग्री हो उसे भगवान को चढ़ा कर वहां उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद का वितरण करना चाहिए.
चंद्रमा का पूजन!
इस विषय में ब्रह्मांड पुराण में लिखा है कि पार्वती जी ने गणेश जी को प्रकट किया था. उस समय चंद्र, इंद्र सभी देवताओं ने आकर गणेश जी दर्शन किया, लेकिन शनिदेव इससे दूर ही रहे. इसका कारण यह है कि उनकी दृष्टि जिनके ऊपर पड़ती है, उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता है, वह काला हो जाता है. लेकिन पार्वती जी के उलाहना और ताना मारने से शनि ने बालक को देखने का निर्णय लिया. शनिदेव ने जैसे ही अपनी दृष्टि गणेश जी पर डाली गणेश जी का मस्तक उड़कर अमृतमय चंद्र मंडल में चला गया. माना जाता है कि चंद्रमा में उनका मुख आज भी पड़ा हुआ है, इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन और पूजन किया जाता है.
भूलकर भी ना करें बसंत पंचमी के दिन ये काम, आसान उपायों से मिलेगा सुख-सौभाग्य
दूसरी कथा के अनुसार माता पार्वती को यह वरदान मिला था कि आपको बिना गर्भ धारण किए ही दिव्य और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी. फिर एकबार माता पार्वती ने अपने शरीर का मैल हटाने के लिए हल्दी लगाई, जब उन्होंने हल्दी उबटन उतारी तो उससे एक पुतला बनाकर उसमें प्राण डाल दिए. इस इस तरह भगवान गणपति का जन्म हुआ.
21 मोदक लेकर गणेश जी के 21 नाम से पूजा
इस व्रत के उद्यापन में 21 मोदक लेकर 21 बार गणेश जी के नामों का उच्चारण करना चाहिए. इसके बाद अपनी क्षमता के अनुसार दान कर सकते हैं. 21 मोदक में से 10 मोदक अपने लिए, 10 मोदक ब्राह्मणों के लिए और एक मोदक गणेश जी के लिए छोड़ देना चाहिए. भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा महत्व गणेश जी का है. इसलिए सबसे पहले उनको ही पूजा जाता है. वो हर किसी की रिक्तता की पूर्ति करते हैं. जब कोई रास्ता न दिखे, विघ्न दिखे, तो गणेश जी का पूजन करना चाहिए. इससे इंसान को यश, बुद्धि, धन और वैभव मिलता है. समस्त प्रकार की मंगल कामनाएं गणेश जी की पूजा से पूर्ण होती हैं. रविवार को चतुर्थी तिथि होने की वजह से इस बार पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है.
मार्च में होगी परीक्षा ऐसे करें सरस्वती पूजा माता देंगी विद्या का वरदान