भोपाल। अफगानिस्तान के हालिया घटनाओं पर अब पूरी दुनिया की नजर बनी हुई है. तालिबान ने काबुल में राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है. तालिबान जिसे 09/11 के हमले के बाद 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान से बाहर कर दिया था. अब तक तालिबान ने अफगानिस्तान के 34 प्रांतीय क्षेत्रों पर कब्जा कर चुका है. यहां कई ऐसे भारतीय हैं, जो अब भी अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं, इंटरनेट सेवाएं बंद होने से संपर्क भी नहीं कर पा रहे हैं.
अफगानिस्तान में फंसे भोपाल में रहने वाले परिवार के रिश्तेदार
भोपाल में रहने वाले अब्दुल बहिद बेहद परेशान हैं, उनके ज्यादातर रिश्तेदार अफगानिस्तान में ही रहते हैं, दो महीने पहले उनके रिश्तेदार तालिबान से भोपाल आए थे, उनके साथ ही एक महीने तक रुके थे, लेकिन कोरोना की स्थिति थोड़ी ठीक होने के बाद वह वापस अफगानिस्तान के लिए रवाना हो गए, लेकिन उन्हें मालूम नहीं था, कि ऐसा कुछ होने वाला है, परिवार के सदस्य तालिबान में फंसे परिवार से लगातार संपर्क कर रहे हैं, लेकिन अब उनसे बात नहीं हो पा रहा है.
दो महीने पहले ही अफगानिस्तान के लिए रवाना हुए थे रिश्तेदार
गुलनामा बी बताती हैं कि फोन पर बात हुई, वहां उनके रिश्तेदार डरे हुए हैं, क्या होगा, वो खुद नहीं समझ पा रहे हैं, फोन पर भी संपर्क नहीं हो पा रहा है, लगातार उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं, दो महीने पहले दिल्ली में इलाज कराने के लिए उनके रिश्तेदार भारत आए थे, और भोपाल में एक महीने तक रुके थे, लॉकडाउन लगने के एक दिन पहले ही वो अफगानिस्तान के लिए रवाना हो गए.
कौन हैं तालिबान
मुल्ला मोहम्मद उमर ने 1994 में गृह युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर अपराध और भ्रष्टाचार को चुनौती देने के लिए अपने दर्जनों अनुयायियों के साथ तालिबान की स्थापना की. पश्तो में तालिबान का शाब्दिक मतलब है ‘छात्र’. ये शब्द संस्थापक सदस्यों मुल्ला मोहम्मद उमर के छात्र होने का एक संदर्भ है. समूह ने मूल रूप से तथाकथित ‘मुजाहिद्दीन’ लड़ाकों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिन्होंने 1980 के दशक में तत्कालीन USSR (Union of Soviet Socialist Republics) बलों को अफगानिस्तान से बाहर खदेड़ दिया.
इसके बाद तालिबान ने 1996 में अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. पांच सालों तक तालिबान की सरकार रही. वहीं, 2001 में अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान में घुसपैठ की और तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया. अमेरिका की वजह से मुल्ला मोहम्मद उमर छिप गया. ऐसा माना जाता है कि मुख्य रूप से पश्तून आंदोलन पहली बार धार्मिक मदरसों में दिखाई दिए जो ज्यादातर सऊदी अरब से मिले पैसों के लिए शामिल होते थे और वे सुन्नी इस्लाम के कट्टर रूप का प्रचार करते थे.
1989 में सोवियत आक्रमण की समाप्ति के बाद तालिबान की शक्ति बढ़ी
तालिबान की पहली राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जीत 1994 में हुई, जब उसने कंधार पर कब्जा कर लिया और दक्षिण-पश्चिमी अफगानिस्तान से अपना शासन लागू कर दिया, तब तालिबान ने अपना असर दिखाना तेजी से शुरू कर दिया. 1995 सितंबर में उन्होंने ईरान की सीमा से सटे हेरात प्रांत पर कब्जा कर लिया और ठीक एक साल बाद 1996 में उन्होंने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया, राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी के शासन को उखाड़ फेंका, जो कि सोवियत कब्जे का विरोध करने वाले अफगान मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक थे. 1996 तक, तालिबान अफगानिस्तान के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर चुका था.
अमेरिका की वापसी के बाद आज की स्थिति
तालिबान ने हाल के दिनों में देश की 34 प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया है, जिसमें इसके दूसरे और तीसरे सबसे बड़े शहर, हेरात और कंधार शामिल हैं.
लोंगवार जर्नल के अनुसार, 242 अफगान जिले अब तालिबान के नियंत्रण में हैं, जबकि सरकार के नियंत्रण में 65 जिले हैं.
2021 जनवरी से जुलाई तक 389,645 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हैं, विस्थापित लोगों में से तीन चौथाई 34 में से 10 प्रांतों से आए हैं.
पूरे अफगानिस्तान में तालिबान के तेजी से बढ़ने का कालक्रम
14 अप्रैल : अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की कि 1 मई से 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से सैनिक वापस आ जाएंगे, जिससे अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध समाप्त हो जाएगा.
4 मई : तालिबान लड़ाकों ने दक्षिणी हेलमंद प्रांत में अफगान बलों पर एक बड़ा हमला किया. उन्होंने कम से कम छह अन्य प्रांतों में भी हमला किया.
11 मई : तालिबान ने राजधानी काबुल के ठीक बाहर नेरख जिले पर कब्जा कर लिया क्योंकि देशभर में हिंसा तेज हो गई थी.
7 जून : वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों का कहना है कि लड़ाई बिगड़ने पर 24 घंटे में 150 से अधिक अफगान सैनिक मारे गए.
22 जून : तालिबान लड़ाकों ने दक्षिण में अपने पारंपरिक गढ़ों से दूर देश के उत्तर में हमलों की एक सीरिज शुरू की और अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र के दूत का कहना है कि उन्होंने 370 में से 50 से अधिक जिलों पर कब्जा कर लिया है.
2 जुलाई : अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में अपने मुख्य सैन्य अड्डे बगराम एयरबेस से एक घंटे के भीतर खामोशी से बाहर निकल लेते हैं. सैन्य वापसी के बाद अफगानिस्तान के साथ अमेरिका का युद्ध यहीं समाप्त हो जाता है.
5 जुलाई : तालिबान ने कहा कि वह शांति योजना पर काम कर रहा है. तालिबान का कहना है कि वह जल्द से जल्द अफगान सरकार को एक लिखित शांति प्रस्ताव पेश कर सकता है.
21 जुलाई : तालिबान ने अफगानिस्तान के आधे जिलों पर कब्जा कर लिया. वरिष्ठ अमेरिकी जनरल के अनुसार, तालिबान ने देश के लगभग आधे जिलों पर नियंत्रण हासिल कर लिया.
26 जुलाई : अमेरिका ने तालिबान के हमलों का मुकाबला करने में मदद करने के लिए तीव्र हवाई हमलों के साथ आने वाले हफ्तों में अफगान सैनिकों का समर्थन जारी रखने का वादा किया.
26 जुलाई : संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि मई और जून में बढ़ती हिंसा में लगभग 2,400 अफगान नागरिक मारे गए या घायल हुए, जो 2009 के बाद सबसे अधिक संख्या है.
6 अगस्त : तालिबान ने जरंज, अन्य प्रांतों पर कब्जा कर लिया. देश के दक्षिण में जरंज वर्षों में तालिबान के अधीन होने वाली पहली प्रांतीय राजधानी बन गई.
11 अगस्त : प्रांतीय राजधानियां खत्म हो गईं या उन पर सशस्त्र समूह द्वारा हमला किया गया.
11 अगस्त : अफगान राष्ट्रपति गनी ने तालिबान के हमले से लड़ने का संकल्प लिया.
12 अगस्त : 90 दिनों के भीतर तालिबान के हाथों गिर सकती है अफगान राजधानी.
15 अगस्त : काबुल स्थित राष्ट्रपति भवन पर तालिबान लड़ाकों ने कब्जा किया.
अफगानिस्तान में अमेरिका और सोवियत अनुभवों की तुलना
जब अफगानिस्तान के 10 साल के सैन्य हस्तक्षेप के बाद 1989 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान छोड़ दिया, मुहम्मद नजीबुल्लाह की कम्युनिस्ट सरकार, आईएसआई और सीआईए द्वारा समर्थन पाकर मुजाहिदीन द्वारा बार-बार हमलों के बावजूद काबुल में तीन साल तक सत्ता पर बनी रही. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद मास्को से आपूर्ति में कमी के बाद ही 1992 में नजीबुल्लाह शासन गिर गया. 1996 में तालिबान को काबुल तक पहुंचने में चार साल लग गए.
अमेरिका की वापसी के बाद
अब अमेरिकी कब्जे के दो सप्ताह में समाप्त होने के साथ, तालिबान अमेरिकी विशेषज्ञों की भविष्यवाणी की तुलना में तेजी से समाप्त होने की ओर अग्रसर है, जिन्होंने पहले कहा था कि तालिबान को 06 महीने लगेंगे, अब समय को संशोधित कर 90 दिन कर दिया गया है.
अफगानिस्तान पर तालिबान के अधिग्रहण का प्रभाव
प्रांतों में मानवाधिकारों की समस्याएं सामने आईं, क्योंकि तालिबान द्वारा शासित प्रांतों में पहले भी मानवाधिकारों के हनन का इतिहास है.
अफगान पर तालिबान का कब्जा, जानिए तालिबान कौन हैं और क्या है इसका मतलब
अफगानिस्तान में तालिबान का पुनरुत्थान और भारत पर इसका प्रभाव
भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर करीब से नजर रखे हुए है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियां अफगानिस्तान के घटनाक्रम और विशेष रूप से कश्मीर पर इसके प्रभाव के बारे में भिन्न हैं. आशंका है कि इतिहास खुद को दोहरा सकता है. अफगानिस्तान से सोवियत की वापसी के बाद, कश्मीर घाटी में विदेशी आतंकवादियों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई. सोवियत संघ की वापसी के बाद पाकिस्तान 1990 के दशक में घाटी में परेशानी पैदा करने के लिए कई विदेशी आतंकवादियों को कश्मीर की ओर मोड़ने में सक्षम था.